1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

पाकिस्तानः चुनावों पर सेना का साया

शामिल शम्स
६ फ़रवरी २०२४

पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान को सजा और उनकी पार्टी तहरीक-ए-इंसाफ पर कार्रवाई का साया 8 फरवरी को रहे चुनावों पर दिख रहा है. पाकिस्तान से शामिल शम्स की रिपोर्ट.

https://p.dw.com/p/4c6M8
पाकिस्तान में इमरान खान का पोस्टर
इमरान खान चुनावों में भले ही ना उतर पाएं लेकिन उनकी लोकप्रियता का मुकाबला नहीं है तस्वीर: AKRAM SHAHID/AFP

पाकिस्तान में ऐसी आम राय दिख रही है कि आने वाले चुनावों के नतीजे पर फैसला पहले ही हो चुका है. कई लोगों का कहना है कि पाकिस्तान का बेहद ताकतवर सैन्य प्रशासन, पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ यानी पीटीआई को किसी भी कीमत पर सत्ता से बाहर रखना चाहता है. इस्लामाबाद की रहने वाली आलिया दुर्रानी ने कहा, "मैं अपना वोट नहीं दूंगी. मैं इमरान खान का समर्थन करती हूं और वह चुनावों में हिस्सेदारी करने की हालत में नहीं हैं. इसलिए इन चुनावों में मेरी दिलचस्पी नहीं है."

इमरान खान पाकिस्तान के उन सबसे लोकप्रिय नेताओं में हैं, जिन्हें चुनावों से बाहर रखा गया है. उन्हें भ्रष्टाचार और खुफिया सूचनाएं लीक करने के कई मामलों में सजा दी गई है. लेकिन ओपिनियन पोल उनकी पार्टी पीटीआई को, मुख्य प्रतिद्वंद्वी पार्टियों, नवाज शरीफ की पाकिस्तान मुस्लिम लीग (एन), बिलावल भुट्टो जरदारी की अगुआई वाली पाकिस्तान पीपल पार्टी से आगे बताते आ रहे हैं.

पाकिस्तान में काम करने वाले गैर-सरकारी संगठन ह्यूमन राइट्स कमीशन ऑफ पाकिस्तान के महासचिव हारिस खालिक का कहना है कि देश में पीटीआई, "बेशक एक बड़ी लोकप्रिय पार्टी है." खालिक ने कहा, "अगर फ्री और फेयर तरीके से चुनाव करवाए जाते हैं तो पीटीआई बड़े शहरों में ज्यादातर संसदीय सीटों पर जीत हासिल करेगी. लेकिन मुझे नहीं लगता कि वे चुनावों में धुआंधार प्रदर्शन करते. सोशल मीडिया पर काफी बढ़ा-चढ़ा कर बताया जा रहा है, खान की लोकप्रियता को जरूरत से ज्यादा बताया जा रहा है."

पाकिस्तानी पुलिसकर्मी
इमरान खान के समर्थकों ने सड़क पर उतर कर उनकी गिरफ्तारी का जबरदस्त विरोध किया तस्वीर: Asif Hassan/AFP

इमरान खान और सेना के संबंधों में दरार

इन चुनावों में खड़े भले ही ना हों, लेकिन इसके केंद्र में इमरान खान ही हैं जिन्होंने सत्ता पर सेना के कब्जे को चुनौती पेश की. सन 2018 में, खान के विरोधियों ने आरोप लगाया था कि उन्होंने सेना की मदद से सत्ता हासिल की है. लेकिन अप्रैल 2022 में, अविश्वास प्रस्ताव हारकर कुर्सी गंवाने वाले इमरान खान और सेना के बीच बढ़ता तनाव दिखने लगा था. खान ने आरोप लगाया कि अविश्वास प्रस्ताव के पीछे, तीन दशक से ज्यादा वक्त तक पाकिस्तान में सत्तारूढ़ रहने वाली सेना का हाथ है.

इमरान खान ने यह भी कहा कि अमेरिका और पाकिस्तान में विपक्षी पार्टियों ने मिलकर उन्हें पद से हटाया है. अमेरिका ने इस आरोप को खारिज कर दिया था. रावलपिंडी शहर में पीटीआई के अधिकारी शहरयार रियाज ने, 9 मई को हुए दंगों पर डीडब्ल्यू से बातचीत में कहा, "मैं मानता हूं कि जो दंगे हुए, वह पाकिस्तान की जनता और पार्टी कार्यकर्ताओं की भावनाएं थीं. मेरे ख्याल से उसे सही ढंग से मैनेज नहीं किया गया, इससे पाकिस्तान के राजनीतिक परिदृ्श्य पर गहरा असर पड़ा है."

दंगों के बाद के महीनों में प्रशासन ने संदिग्ध प्रदर्शनकारियों के खिलाफ सैन्य अदालतों में कार्रवाई शुरु की. इनमें पीटीआई के सदस्य भी शामिल थे. नतीजा यह हुआ कि पार्टी के कई वरिष्ठ और मझोले अधिकारियों ने इस्तीफा देकर सेना के साथ खड़े होने की बात कही. रिटायर्ड ब्रिगेडियर वकार हसन खान ने डीडब्ल्यू से बातचीत में कहा, "खान को अविश्वास प्रस्ताव के जरिए हटाए जाने के बाद से पीटीआई लगातार एक कहानी बनाने की कोशिश कर रही थी. 9 मई को हमने देखा कि राज्य पर सोचा-समझा हमला किया गया."

हाल के हफ्तों में ऐसी रिपोर्टें आई हैं कि पीटीआई के सदस्यों को नामांकन पत्र भरने से रोका गया और सुप्रीम कोर्ट ने पार्टी को अपने मशहूर प्रतीक, क्रिकेट बैट का इस्तेमाल करने से मना कर दिया. हारिस खालिक का मानना है, "चुनाव आजाद माहौल में, पारदर्शी तरीके से होने चाहिए. जो भी चुना जाए, उसे ऐसे फैसले करने चाहिए जो लोगों की रोजीरोटी पर सकारात्मक असर डाले." एक ब्यूटी सैलून में काम करने वाली इकरा रफीक ने भी यही बात दोहराते हुए कहा कि चुनाव आजाद माहौल में हों ताकि देश का अगला प्रधानमंत्री "लोगों की मर्जी से चुना जाए."

कराची स्थित पत्रकार नौरीन शम्स का मानना है कि पाकिस्तान का इतिहास ''इंजीनियर'' किए गए चुनावों से भरा है. उन्होंने कहा, "इस वक्त जो हो रहा है वह पहले के चुनावों में भी हो चुका है. जो लोग सत्ता के करीबी थे, अब वो सब विलेन बन चुके हैं और जो लोग 2018 में विलेन थे (पूर्व पीएम नवाज शरीफ) अब वो पसंदीदा हैं." नौरीन शम्स यह भी कहती हैं कि पाकिस्तान में हमेशा से ही एक हाइब्रिड सरकार रही है, जहां चुने हुए नेता, सेना के साथ सत्ता बांटते हैं.

आगे क्या होगा?

8 फरवरी के चुनाव सिर्फ किसी पार्टी या नेता की लोकप्रियता के नाम नहीं हैं क्योंकि और बहुत कुछ दांव पर लगा है. पाकिस्तान वित्तीय संकट से जूझ रहा है, महंगाई, बेरोजगारी और पर्यावरणीय आपदाएं भी सिर पर हैं. एक बड़ी चिंता यह भी है कि आम जनता बुनियादी जरूरतें पूरी करने में यूं जुटी है कि चुनावों में किसी की दिलचस्पी ही नहीं है. इस्लामाबाद में स्कूल टीचर, सायरा खान ने कहा, "इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि सत्ता में कौन आता है. जो भी पावर में होता है, उसे देश में स्थायित्व लाने की जरूरत है और यह जनता में भरोसा जगाए बिना नहीं हो सकता. इसलिए चुनाव अहम हैं लेकिन मुझे नहीं लगता कि कोई खास अंतर पड़ेगा."

फिलहाल पाकिस्तान में जो माहौल है, उसमें पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को जीत के लिए सबसे पसंदीदा उम्मीदवार माना जा रहा है. उनकी पार्टी ने इस बात पर जोर दिया है कि देश की अर्थव्यवस्था और राजनीति पीटीआई की सत्ता में वापसी का बोझ नहीं उठा सकती. पाकिस्तान मुस्लिम लीग के अधिकारी तारिक फजल चौधरी ने डीडब्ल्यू से बातचीत में कहा, "खान और उनकी पार्टी ने अपनी मानसिकता को पूरी तरह उजागर कर दिया है. वे पाकिस्तान में संस्थाओं को कभी स्वतंत्र रूप से काम करने नहीं देंगे. उन्होंने सत्ता और विपक्ष में पर्याप्त वक्त गुजारा है लेकिन सुरक्षा संस्थाओं के खिलाफ गहरी घृणा दिखाई है, हिंसक शब्दों और शारीरिक हिंसा का सहारा लिया है." 

9 मई और उसके बाद की घटनाओं में देखा गया कि सेना ने साफ तौर पर पीटीआई से अपना समर्थन हटा लिया है. लेकिन इससे इमरान खान की लोकप्रियता खत्म नहीं हुई. एक बात साफ है कि जो भी पार्टी सत्ता में आएगी उसे सेना से निपटना ही होगा. अगर पीटीआई पावर में आती है और सेना के साथ पुराने झगड़ों को खत्म नहीं कर पाती है, तो देश एक बार फिर राजनीतिक अनिश्चितता के दलदल में फंस सकता है.

तोशाखाना केस: इमरान खान की गिरफ्तारी पर क्या बोले लोग