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सदी के अंत तक यूरोप में गर्मी से मौतें तीन गुना बढ़ सकती हैं

२३ अगस्त २०२४

इंसानी बसाहट वाली जगहों में यूरोप पृथ्वी का सबसे ठंडा महादेश है. बढ़ते तापमान के कारण यहां गर्मी से होने वाली मौतों में बड़ा इजाफा हो सकता है. सदी के आखिर तक गर्मी से होने वाली मौतों की संख्या तीन गुना तक बढ़ सकती है.

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तुर्की में लगी जंगल की आग में एक घर की जलती हुई रसोई.
अब तक के रिकॉर्ड में यूरोप के लिए सबसे गर्म रहे 10 सालों में सभी वर्ष 2000 के बाद दर्ज किए गए हैं. इनमें भी सबसे गर्म पांच साल 2014 के बाद के रहे हैं. यूरोप में तापमान संबंधी लंबे समय के रुझान सालाना और मौसमी, दोनों तरह के औसतों में वृद्धि का संकेत देते हैं. तस्वीर: YASIN AKGUL/AFP

प्रकृति और पर्यावरण में तेजी से हो रहे बदलावों के बीच यूरोप में बेतहाशा बढ़ रही गर्मी के कारण होने वाली मौतों की संख्या बढ़ रही है. इस सदी के आखिर तक इसमें तीन गुना तक इजाफा हो सकता है. इटली और स्पेन जैसे दक्षिण यूरोप के इलाके ज्यादा खतरे में होंगे और यहां ज्यादा मौतें हो सकती हैं.

'लांसेट पब्लिक हेल्थ' पत्रिका में छपे एक नए शोध से भविष्य की यह तस्वीर सामने आई है. शोधकर्ताओं ने पाया कि अगर दुनिया के गर्म होने की रफ्तार बढ़कर तीन या चार डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गई, तो गर्मी से होने वाली मौतें भी विकराल हो जाएंगी.

बेल्जियम की राजधानी ब्रसेल्स में हीटवेव के दौरान गर्मी से राहत पाने के लिए मुंह पर पानी डालता एक लड़का.
पिछले साल यूरोप में गर्मी के कारण 47,000 से ज्यादा मौतें हुईं. सबसे ज्यादा असर दक्षिणी यूरोप के देशों पर रहा. ग्रीस, इटली, स्पेन और बुल्गारिया में ऐसी मौतें सबसे ज्यादा दर्ज की गईं.तस्वीर: Yves Herman/REUTERS

क्या बताते हैं मौजूदा अनुमान  

रिसर्चरों ने इस स्टडी में जिन परिस्थितियों को रेखांकित किया, वे ग्लोबल वॉर्मिंग में तीन डिग्री सेल्सियस के इजाफे पर अनुमानित हैं. नवंबर 2023 में आई संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट बताती है कि मौजूदा नीतियों के हिसाब से चलते रहे, तो ग्लोबल वॉर्मिंग को इस सदी में 3 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ने पर सीमित किया जा सकता है.

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साल 2100 के बाद तापमान और बढ़ने की उम्मीद है क्योंकि अब भी कार्बन उत्सर्जन के नेट-जीरो स्तर तक पहुंचने की उम्मीद नहीं है. बहुत आशावादी भी हो लें, तब भी पेरिस जलवायु समझौते में तय हुए डेढ़ डिग्री के लक्ष्य को हासिल करने की संभावना केवल 14 फीसदी ही है.

अभी यूरोप की क्या हालत है

पिछले साल यूरोप में गर्मी के कारण 47,000 से ज्यादा मौतें हुईं. सबसे ज्यादा असर दक्षिणी यूरोप के देशों पर रहा. ग्रीस, इटली, स्पेन और बुल्गारिया में ऐसी मौतें सबसे ज्यादा दर्ज की गईं. यह जानकारी बार्सिलोना इंस्टिट्यूट फॉर ग्लोबल हेल्थ (आईएसग्लोबल) ने जारी की है.

2023 वैज्ञानिकों की जानकारी में दुनिया का अब तक का सबसे गर्म साल रहा. अगर बीते दो दशकों में लोगों को बढ़ते तापमान के प्रति ज्यादा अनुकूल बनाने की कोशिशें ना की गई होतीं, तो मौतों की संख्या 80 फीसदी तक ज्यादा हो सकती थी. 

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जलवायु परिवर्तन के असर से यूं तो पृथ्वी का कोई कोना नहीं बचा है, लेकिन कुछ इलाके ज्यादा मुश्किल में हैं. ठंडा महादेश यूरोप सबसे तेजी से गर्म हो रहा है. यूरोप की जलवायु एजेंसी कोपरनिकस ने इसी साल अपनी रिपोर्ट में बताया कि यूरोप का तापमान, वैश्विक औसत की तुलना में करीब दोगुनी तेजी से बढ़ रहा है.

बीते पांच सालों का औसत तापमान दिखाता है कि औद्योगीकरण से पहले की तुलना में वैश्विक वृद्धि जहां 1.3 फीसदी ज्यादा है, वहीं यूरोप में यह इजाफा करीब 2.3 डिग्री अधिक है.

2021 में तुर्की में लगी जंगल की आग में दहकते पेड़ों की एक तस्वीर.
2023 वैज्ञानिकों की जानकारी में दुनिया का अब तक का सबसे गर्म साल रहा. अगर बीते दो दशकों में लोगों को बढ़ते तापमान के प्रति ज्यादा अनुकूल बनाने की कोशिशें ना की गई होतीं, तो मौतों की संख्या 80 फीसदी तक ज्यादा हो सकती थी. तस्वीर: YASIN AKGUL/AFP

ठंड से भी मरते हैं लोग

अभी यूरोप में ठंड से ज्यादा लोग मरते हैं. लांसेट की स्टडी के मुताबिक, 1991 से 2020 के बीच समूचे यूरोप में सर्दी और गर्मी, दोनों से जुड़ी मौतों की सालाना संख्या 4,07, 538 पाई गई. इनमें 3,63, 809 मौतें ठंड के कारण हुईं. दक्षिणी यूरोप में जहां गर्मी से जुड़ी मृत्यु दर ज्यादा है, वहीं पूर्वी यूरोप में ठंड से होने वाली मौतें ज्यादा पाई गईं.

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1991 से 2020 के बीच पश्चिमी यूरोप की तुलना में पूर्वी यूरोपीय इलाकों में ठंड से हुई मौतें ढाई गुना तक ज्यादा रहीं. वहीं, उत्तरी यूरोप की तुलना में यूरोप के दक्षिणी हिस्से में गर्मी के जुड़ी मौतें छह गुना तक ज्यादा हुईं.

स्टडी के मुताबिक, ऐसा नहीं है कि तापमान में हो रहे इजाफे के कारण ठंड से होने वाली मौतें रुक जाएंगी या कम हो जाएंगी. इसमें मामूली बदलाव का अनुमान है. हालांकि, तब गर्मी से होने वाली मौतों की संख्या कहीं ज्यादा होगी.

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गर्मी कैसे मारती है

ज्यादा गर्मी एक चरम मौसमी स्थिति है. जब हमें गर्मी लगती है, तो हमारा शरीर अपना कुदरती एसी चलाकर, यानी पसीना बहाकर खुद को ठंडा करने की कोशिश करता है. इस सिस्टम की भी अपनी सीमा है.

अत्यधिक गर्मी हमारे शरीर पर कई तरह से असर करती है. पसीने के साथ शरीर से पानी और नमक भी बहता है. बहुत पसीना निकले, तो  डिहाइड्रेशन हो सकता है. शरीर में खून की मात्रा कम हो सकता है और ऐसी स्थिति में ब्लड प्रेशर सामान्य नहीं रह जाएगा. इसके कारण किडनी काम करना बंद कर सकती हैं. रक्तचाप कम होने, धड़कन बढ़ने से दिल पर दबाव बढ़ सकता है और हार्ट अटैक आ सकता है.

धरती अब गर्म नहीं हो रही है बल्कि उबल रही है

बेहद गर्मी का सामना करने के लिए शरीर की अंदरूनी मशीनरी त्वचा में रक्त का बहाव बढ़ा देती है, ताकि उसे ठंडा कर सके. इसकी वजह से शरीर के दूसरे हिस्सों में खून और ऑक्सीजन की आपूर्ति घट सकती है. यह प्रक्रिया ऐसा चक्र शुरू कर सकती है, जिसमें कई अंग काम करना बंद कर सकते हैं.

एसएम/वीके (रॉयटर्स, डीपीए, एपी, एएफपी)