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जर्मनी को बाढ़ से बचाएंगे ये जंगल और नदी

आने सोफी ब्रैंडलीन
२ अगस्त २०२४

दूसरे प्राकृतिक आपदा की तुलना में बाढ़ से दुनिया के लोगों को ज्यादा खतरा है. इससे बचने का प्राकृतिक समाधान यह है कि ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाए जाएं. जर्मनी में जंगलों को अधिक पानी सोखने के लिए तैयार किया जा रहा है.

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जर्मनी के लाइपजिग में अपने प्राकृतिक रास्ते पर बहती नदी
नदियों के किनारे मौजूद खाली जगह और जंगल बाढ़ को रोक सकते हैंतस्वीर: UFZ

हम सैकड़ों सालों से उद्योग, ऊर्जा, खेती और घर बनाने के लिए नदी के प्राकृतिक स्वरूप को बदल रहे हैं. दुनिया भर में नदियों के रास्ते सीधे किए गए हैं, नियंत्रित किए गए हैं, उन पर तटबंध बनाए गए हैं और उन्हें गहरा किया गया है.

नदी के किनारे मौजूद कुछ हिस्से, नदी में ज्यादा पानी आने पर उन्हें फैलने की जगह देते हैं. इन्हें आम तौर पर बाढ़ का मैदान कहा जाता है. इससे नदी का पानी रिहायशी इलाकों तक नहीं पहुंच पाता है, लेकिन धीरे-धीरे इंसानों ने बाढ़ के इस मैदान पर भी निर्माण शुरू कर दिया. उनका विचार था कि इससे बाढ़ को रोकने में मदद मिलेगी. हालांकि, अब यह पता चला है कि ऐसा करने से उलटा प्रभाव पड़ता है.

हमने नदियों को बर्बाद कर दिया

सिर्फ जर्मनी में, 79 मुख्य नदियों के किनारे स्थित बाढ़ के दो-तिहाई मैदान अब अतिरिक्त पानी को जमा करने के अपने मूल उद्देश्य को पूरा नहीं कर पा रहे हैं. इसकी वजह यह है कि इन मैदानों तक पहुंचने से रोकने के लिए बांध बना दिए गए हैं. बाढ़ के बचे हुए एक तिहाई क्षेत्रों में या तो खेती हो रही है या उन जगहों पर घर बन गए हैं. प्रकृति और पर्यावरण को इससे बहुत नुकसान हुआ है. 

ऐसा सिर्फ जर्मनी में ही नहीं, बल्कि पूरे यूरोप में हुआ है. यहां 70 से 90 फीसदी बाढ़ के मैदान पर्यावरणीय रूप से खराब हो चुके हैं और अब हम सब इसकी कीमत चुका रहे हैं. जैसे-जैसे जलवायु परिवर्तन की वजह से चरम मौसम की घटनाएं बढ़ रही हैं, ये बदले हुए परिदृश्य विनाशकारी बाढ़ की संभावनाओं को और ज्यादा बढ़ा रहे हैं. 

लाइपजिग में प्राकृतिक रूप में लौटाई गई नदी और उसके किनारे के इलाके
नदियों के किनारे की खाली जमीन को उसी रूप में बनाए रखना जरूरी हैतस्वीर: UFZ

जर्मनी के पूर्व में स्थित एक शहरी वेटलैंड क्षेत्र ने इस समस्या को जल्दी पहचान लिया. लाइपजिग स्थित हेल्महोल्त्स सेंटर फॉर एनवॉयरनमेंटल रिसर्च में बाढ़ के मैदान से जुड़े पारिस्थितिकी के विशेषज्ञ माथियास शॉल्त्स दशकों से नदियों और तटीय जमीन के महत्व का अध्ययन कर रहे हैं. शॉल्त्स बताते हैं, "हमने 30 साल पहले ही महसूस कर लिया था कि हमारे औद्योगिक और तकनीकी विकास ने इस क्षेत्र के जंगल को गलत तरीके से विकसित कर दिया है. इसलिए, अब हमारा पारिस्थितिकी तंत्र मजबूत नहीं है. हमें पुराने तरीकों पर वापस जाने की जरूरत है और प्रकृति को अपना काम करने देना चाहिए.”

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हमें बाढ़ के मैदानों की जरूरत है

शॉल्त्स कहते हैं कि हमें ऐसे बाढ़ के मैदानों की जरूरत है जो अपनी प्रकृति के मुताबिक काम कर सकें. ये मैदान लंबे समय तक पानी रोके रखते हैं और स्पंज की तरह काम करते हैं. वे प्राकृतिक रूप से जलवायु संरक्षक और बाढ़ नियंत्रक हो सकते हैं, लेकिन ऐसा तब होगा जब वहां पानी पहुंचता रहे.”

उन्होंने आगे बताया, "इससे पौधों को गर्मियों में सूखे का बेहतर तरीके से सामना करने में मदद मिलती है. जब अगली बार बाढ़ आती है और नदी का पानी इसके किनारों से ऊपर बहने लगता है, तब आस-पास के जंगल और घास के मैदानों में बाढ़ आती है. इससे बाढ़ का पानी दूसरी जगहों पर नहीं फैलता और हमें विनाशकारी परिणाम नहीं झेलने पड़ते हैं. यह बाढ़ से होने वाले नुकसान को कम करने का सबसे प्रभावी तरीका है.”

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अगर हमारे पास बाढ़ के मैदान और वहां मौजूद जंगल नहीं होते हैं, तो पानी तेजी से नदियों से बहकर रिहायशी इलाकों तक पहुंचता है. इससे बाढ़ की लहरें और भी भयावह हो जाती हैं और काफी ज्यादा नुकसान होता है. हाल के वर्षों में यही हो रहा है. यही वजह है कि शॉल्त्स ने लाइपजिग शहर और जर्मनी के पर्यावरण संघ एनएबीयू के साथ मिलकर लाइपजिग, मार्कलीबर्ग और श्खॉयडित्स शहरों के आसपास बाढ़ के मैदान को फिर से प्राकृतिक स्वरूप में बहाल करने का फैसला लिया है. 

बाढ़ में डूबा इलाका
बाढ़ का नुकसान दूसरी आपदाओं की तुलना में कहीं ज्यादा है लेकिन प्रकृति के पास समाधान हैतस्वीर: André Künzelmann/UFZ

शॉल्त्स ने बताया, "यहां कई ऐसे पेड़ उग आए हैं जो बाढ़ से बचाने में मददगार नहीं हैं. इससे बाढ़ के मैदान के जंगलों में पाए जाने वाले पेड़ों की मूल प्रजातियां गायब हो रही हैं.”

उन्होंने उदाहरण के तौर पर ओक और एल्म के पेड़ों का हवाला दिया. बाढ़ के मैदान के जंगलों में नदियों का पर्याप्त पानी नहीं पहुंचने की वजह से ये पेड़ खत्म होने लगे. समस्या यह है कि ये देशी पेड़ बाढ़ और सूखे जैसी स्थिति को अन्य प्रजातियों, जैसे कि मेपल की तुलना में बेहतर तरीके से संभाल सकते हैं. ओक और एल्म के पेड़ मिट्टी से नमी सोखते हैं. ये पेड़ पानी की उस मात्रा को कम कर देते हैं जिससे अचानक बाढ़ आती है.

जंगल पानी सोखें

शॉल्त्स और उनकी टीम के दिमाग में एक विचार आया. उन्होंने दशकों तक हर वसंत में जंगल के एक छोटे से हिस्से में जानबूझकर बाढ़ लानी शुरू कर दी और इसके नतीजों का आकलन किया. 30 वर्षों में उन्होंने जो डेटा इकट्ठा किया वह पारिस्थितिकी तंत्र के अपनी प्राकृतिक स्थिति में वापस आने की कहानी बताता है.

शॉल्त्स कहते हैं, "हमें एहसास हुआ कि हम सूखे की अवधि के दौरान भी जंगल में तीन महीने तक नमी बनाए रख सकते हैं. इससे बाढ़ के मैदान के जंगल इन गीली और बदलती परिस्थितियों के अनुकूल हो सकते हैं. इससे जो प्रजातियां इन जंगलों की मूल प्रजातियां नहीं हैं वे खत्म हो गईं. इससे बाढ़ के मैदान के जंगल की खास प्रजातियों को बढ़ने के लिए जगह और पर्याप्त रौशनी मिल गई.”

लाइपजिग में सूखते एल्म के पेड़
जब जंगलों को पर्याप्त पानी नहीं मिला तो यहां के स्थानीय और बाढ़ को झेलने में सक्षम पेड़ सूखने लगेतस्वीर: André Künzelmann/UFZ

उन्होंने जंगल को फिर से ज्यादा पानी सोखने के लिए तैयार किया. यह इसलिए भी जरूरी है कि भले ही ये पेड़ बाढ़ को रोकने में मददगार हैं, लेकिन अगर वे लंबे समय तक बाढ़ का अनुभव नहीं करते हैं, तो वे ‘भूल' सकते हैं कि बाढ़ से कैसे निपटना है.

शॉल्त्स ने कहा, "इसलिए, इन पारिस्थितिकी प्रणालियों को फिर से पानी को संभालने के लिए तैयार करना महत्वपूर्ण है, ताकि वे बाढ़ की पहली घटना के बाद ढह ना जाएं.” 

पुराने जलमार्गों को बहाल करना

सकारात्मक नतीजे मिलने के बाद, लाइपजिग शहर ने कुछ और बेहतर करने का फैसला लिया. वह 2019 में वैज्ञानिकों, गैर-सरकारी संगठनों और स्थानीय अधिकारियों को एक साथ लाया, ताकि अगले 30 वर्षों में यहां बाढ़ के पूरे मैदान को फिर से बहाल किया जा सके और उसे जीवंत बनाया जा सके.

उन्होंने अभी-अभी अपनी पहली परियोजना पूरी की है. उन्होंने एक पुरानी नदी की धारा को फिर से बहाल किया और नदी के बहाव को जंगल के किनारे से काफी दूर ले गए. साथ ही, उन्होंने कई जगहों पर नदी से पानी निकलने का रास्ता बनाया और कई जगहों को उथला किया, ताकि बाढ़ आने पर पानी ऊपर उठकर सीधे जंगल में बह सके.

लाइपजिग शहर के हरियाली और जल निकाय विभाग से जुड़ी क्रिस्टियान फ्रोहबर्ग ने कहा, "मुझे बहुत खुशी हो रही है, क्योंकि यह पांच साल की मेहनत थी. हमने हर रोज लोगों से मुलाकात की, बात की और यह सुनिश्चित किया कि थोड़ा पानी आने पर उन्हें डर न लगे. अब यह देखकर बहुत अच्छा लग रहा है कि इस छोटी सी नदी में पानी है, जिसका बड़ा असर पड़ता है.”

लाइपजिग शहर की नदी का मार्ग
लाइपजिग शहर ने अपनी नदियों को उनका प्राकृतिक बहाव लौटाया हैतस्वीर: UFZ

अगले 10 से 15 वर्षों का लक्ष्य यह है कि इस क्षेत्र में नदी के 16 किलोमीटर से अधिक पुराने रास्ते को बहाल किया जाए. वे सूखी हुई नदी की शाखाओं को फिर से जोड़ना चाहते हैं और बाढ़ के कम से कम 30 फीसदी मैदान में नई नदी के जरिए पानी भरना चाहते हैं, ताकि बाढ़ के मैदान फिर से अपने प्राकृतिक रूप में आ सकें. हालांकि, इसके लिए बहुत समय और धन की जरूरत होगी. साथ ही, लोगों को भी समझाना होगा. 

कितना पैसा खर्च होगा?

इस तरह की परियोजनाओं के लिए काफी ज्यादा धन की जरूरत होती है. लाइपजिग शहर ने जमीन खरीदने और नई नदी पर नए पुल बनाने के लिए पहले ही 6.5 मिलियन यूरो खर्च कर दिए हैं. इनमें से ज्यादातर पैसा जर्मन सरकार ने दिया है. इस दौरान सबसे मुश्किल काम किसानों को साथ लाना था. शॉल्त्स ने बताया, "आप बिना विकल्प दिए लोगों को आसानी से नहीं हटा सकते.”

उन्होंने आगे कहा, "बाढ़ के मैदान में ज्यादा पानी लाने का मतलब यह नहीं है कि खेती करना बंद कर दिया जाए. इसका मतलब सिर्फ इतना है कि खेती के तरीकों को बदलना होगा. इसलिए, खेती वाली जमीन को जंगली चरागाह में बदलना जरूरी है, लेकिन इस बदलाव के लिए उचित मुआवजा भी दिया जाना चाहिए.”

इस खर्च को देखकर ऐसा लगता है कि यह शहर नदियों को बहाल करने की योजना पर काफी ज्यादा पैसा खर्च कर रहा है, लेकिन ऐसा नहीं है. बाढ़ से वास्तव में यूरोप को काफी ज्यादा आर्थिक नुकसान पहुंचता है. यूरोपीय आयोग के एक अध्ययन के अनुसार, इस सदी के अंत तक नदी की वजह से आने वाली बाढ़ से होने वाला नुकसान दस गुना बढ़कर 9.3 अरब यूरो तक पहुंच सकता है.

लाइपजिग में नदियों के किनारे के जंगलों को ज्यादा पानी सोखने के लिए तैयार करने का काम
रिनेचुरलाइजेशन की प्रक्रिया सस्ती नहीं है लेकिन बाढ़ होने वाला नुकसान कहीं ज्यादा बड़ा हैतस्वीर: UFZ

यूरोप के अधिकांश बड़े शहर बाढ़ के मैदानों पर स्थित हैं. अध्ययन के मुताबिक, हैम्बर्ग, पेरिस, फ्लोरेंस, लंदन, जिनेवा, सरागोसा, लिंत्स और गेंट ऐसे शहर हैं जिन्हें भविष्य में बाढ़ से सबसे ज्यादा नुकसान होने की आशंका है. 

इसलिए, यूरोपीय संघ के पर्यावरण मंत्रियों ने हाल ही में एक विवादित प्रकृति बहाली कानून (नेचर रेस्टोरेशन लॉ) को मंजूरी दी है. इसका उद्देश्य जंगलों को फिर से उगाना, दलदली जगहों को बनाए रखना और नदियों को उनकी प्राकृतिक स्थिति में वापस लाना है. शॉल्त्स इस कदम का स्वागत करते हैं.

उन्होंने कहा, "जब हम चरम मौसम की वजह से समाज पर पड़ने वाले आर्थिक नुकसान को देखते हैं और उन समस्याओं को हल करने के लिए लंबे समय के प्रयासों पर विचार करते हैं, तो यह स्पष्ट हो जाता है कि पारिस्थितिकी तंत्र को बहाल करने के लिए निवेश करना भविष्य को सुरक्षित करने वाला निवेश है."

दूसरे देशों में भी हो रही है ऐसी कोशिशें

बाढ़ वाले इलाकों में स्थित कई अन्य यूरोपीय शहर भी प्रकृति-आधारित तरीकों को आजमा रहे हैं. लाइपजिग की यह परियोजना दूसरों के लिए एक खाका बन गया है. शॉल्त्स एस्टोनिया, स्पेन और पुर्तगाल के साथियों के साथ मिलकर ज्ञान और अच्छे तरीकों को साझा कर रहे हैं, जैसे कि किसी क्षेत्र में पानी को जितना हो सके उतना समय तक कैसे रोका जा सकता है.

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शॉल्त्स कहते हैं, "दुनिया भर के लोगों को मेरी सलाह है कि जो आपके पास पहले से है उसकी रक्षा करें, अधिक दलदल से छुटकारा ना पाएं, अपनी क्षमता को पहचानें और प्रकृति-आधारित समाधानों में निवेश करें. किसी पारिस्थितिकी तंत्र को बहाल करके, हम सिस्टम को अधिक मजबूत बनाते हैं. इससे भविष्य की पीढ़ियों के लिए संभावित नुकसान कम हो जाता है.”

वह आगे बताते हैं, "शुरुआत में आपको इसके लिए कुछ पैसे खर्च करने पड़ सकते हैं, लेकिन लंबे समय में यह फायदेमंद साबित होगा. चरम मौसम की वजह से होने वाली घटनाएं फिर से होंगी और उससे होने वाला नुकसान आपके शुरुआती निवेश से कहीं ज्यादा महंगा होगा."