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सिर्फ पेड़ लगाने से नहीं दूर होगा जलवायु संकट

नताली मुलर | नाइल किंग
५ अगस्त २०२२

ग्लोबल वार्मिंग से निपटने में पेड़ मददगार साबित हो सकते हैं, क्योंकि वे CO2 को अवशोषित करते हैं और धरती गर्म होने से बचाते हैं. हालांकि, सिर्फ लाखों पेड़ लगाना ही जलवायु संकट से निपटने के लिए पर्याप्त नहीं है.

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सिर्फ पेड़ लगाने भर से नहीं बचेगी धरती
सिर्फ पेड़ लगाने भर से नहीं बचेगी धरतीतस्वीर: blickwinkel/IMAGO

पेड़ ना सिर्फ देखने में सुंदर और प्रभावशाली होते हैं, बल्कि वे निर्माण कार्य के लिए लकड़ी, सांस लेने के लिए ऑक्सीजन, और वन्य जीवों को आवास देते हैं. इन सब के अलावा, वे कार्बन डाइऑक्साइड को जमा और अवशोषित भी करते हैं. यह गैस जीवाश्म ईंधनों के जलने से निकलती है और वातावरण को गर्म करती है. यही वजह है कि पेड़ों को जलवायु संकट से निपटने के समाधानों में से एक माना जाता है.

दुनिया के जंगलों में हर साल लगभग 16 अरब मीट्रिक टन कार्बन डाइऑक्साइड जमा होता है, जो कि यूरोपीय देशों के सालाना उत्सर्जन से तीन गुना अधिक है. अब ये जंगल तेजी से सिकुड़ रहे हैं. संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन के अनुसार, हर साल लगभग 10 मिलियन हेक्टेयर जंगल खेती के लिये जमीन तैयार  करने की वजह से नष्ट हो रहे हैं. साथ ही, जब पेड़ों को काटा जाता है, तो वहां जमा कार्बन डाइऑक्साइड वातावरण में शामिल हो जाता है.

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इस नुकसान की भरपाई के लिए, हाल के दशकों में दर्जनों कार्यक्रमों की शुरुआत की गई है, ताकि अरबों की संख्या में पेड़ लगाए जा सकें और वे वातावरण में मौजूद कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित कर सकें. दुनिया भर की सरकारों के साथ-साथ माइक्रोसॉफ्ट और नेस्ले जैसी कंपनियों ने जंगली क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए वृक्षारोपण का संकल्प लिया है. 

यूके के रॉयल बोटैनिकल गार्डन, केव में मिलेनियम सीड बैंक पार्टनरशिप में कार्यरत संरक्षण वैज्ञानिक केट हार्डविक ने कहा, "इन कार्यक्रमों ने वाकई में आम लोगों का ध्यान आकर्षित किया है. यह अच्छी बात है कि इसने लोगों को इस बारे में सोचने के लिए प्रेरित किया, लेकिन मुझे लगता है कि इस संदेश ने समस्या की गंभीरता को कम कर दिया है. फिर से जंगल लगाना समाधान का एक हिस्सा है, लेकिन सिर्फ पेड़ लगाने पर ही ध्यान केंद्रित करने से समस्या पूरी तरह हल नहीं हो सकती.”

राजनेता भी प्रतीकात्मक रूप से पेड़ लगाने में दिलचस्पी लेते हैं
राजनेता भी प्रतीकात्मक रूप से पेड़ लगाने में दिलचस्पी लेते हैंतस्वीर: Andrew Harnik/AP Photo/picture alliance

सिर्फ पेड़ लगाने से कितना फर्क आ सकता है

अपने जीवन काल के दौरान पेड़ प्रकाश संश्लेषण की क्रिया के लिए कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करते हैं और इसे अपनी पत्तियों, जड़ों, शाखाओं और मिट्टी में जमा कर देते हैं. हालांकि, वैज्ञानिकों के बीच इस बात को लेकर बहस जारी है कि आखिर लाखों अतिरिक्त पेड़ लगाकर वातावरण से कितना CO2 कम किया जा सकता है.

हर साल जीवाश्म ईंधन जलाने और भूमि के इस्तेमाल में बदलाव से औसतन 40 अरब मीट्रिक टन CO2 का उत्सर्जन होता है. शोध से यह अनुमान लगाया गया है कि नए जंगल लगाने और मौजूदा जंगलों को फिर से स्थापित करने से 40 से 100 अरब टन CO2 अवशोषित किया जा सकता है. हालांकि, यह तभी संभव है जब नये पेड़ पूरी तरह तैयार हो जाएं, जिसमें दशकों लगते हैं.

यूके की रॉयल सोसायटी के एक अनुमान में कहा गया है कि जंगलों को फिर से स्थापित करने से हर साल 3 से 18 अरब टन और जंगलों के बेहतर प्रबंधन से 1 से 2 अरब टन CO2 वातावरण से कम हो सकता है.

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अमेरिकी संगठन नेचर कंजरवेंसी में जंगलों को फिर से स्थापित करने से जुड़ी वरिष्ठ वैज्ञानिक सुसान कुक-पैटन का कहना है कि ठोस आंकड़े मिलने मुश्किल हैं. उनकी शोध से पता चलता है कि ‘दुनिया की अलग-अलग जगहों के मुताबिक कार्बन को अवशोषित करने की क्षमता में सौ गुना से अधिक का फर्क है.'

वह कहती हैं कि जंगलों को फिर से स्थापित करना ‘वाकई में असरदार विकल्प है', लेकिन इसके लिए आपको वह जगह ढूंढनी होगी जहां लोग पेड़ लगाना चाहते हैं. समय के साथ इनकी निगरानी भी करनी होगी, ताकि ये पूरी तरह तैयार हो सकें. अगर वृक्षारोपण परियोजनाओं के लिए बेहतर योजना नहीं बनाई जाएगी, तो लंबे समय में वे सफल नहीं होंगे. इसका नतीजा यह होगा कि संसाधनों की काफी ज्यादा बर्बादी होगी. 

उष्णकटिबंधीय जंगलों को बचाना ज्यादा जरूरी है क्योंकि वो बाकियों की तुलना में ज्यादा कार्बन सोखते हैं
उष्णकटिबंधीय जंगलों को बचाना ज्यादा जरूरी है क्योंकि वो बाकियों की तुलना में ज्यादा कार्बन सोखते हैंतस्वीर: Wolfgang Kaehler/Avalon/picture alliance

आखिर क्या गलत हो सकता है?

हार्डविक और केव के अन्य वैज्ञानिकों ने पिछले साल जंगलों को फिर से स्थापित करने के लिए 10 कारगर नियम प्रकाशित किए हैं. उन्होंने माना कि "बहुत कुछ चल रहा है और यह इतने बड़े पैमाने पर किया जा रहा है कि काफी बड़ी गलती होने का खतरा है.”

पैटन का कहना है कि सिर्फ काफी ज्यादा संख्या में पेड़ लगाने पर ही ध्यान नहीं होना चाहिए, बल्कि प्राकृतिक निवास को भी फिर से बहाल करने पर ध्यान देना चाहिए. आखिर, घास के मैदान और दलतदल भी काफी ज्यादा मात्रा में कार्बन को अवशोषित करते हैं, लेकिन आमतौर पर वहां पेड़ नहीं होते हैं.

किसी परियोजना की सफलता इस बात पर भी निर्भर करती है कि सही जगह पर सही पेड़ लगाए जाएं, अन्यथा नतीजे नुकसान पहुंचाने वाले हो सकते हैं. हार्डविक ने कहा, "अगर दलदल जैसी जगहों पर पेड़ लगाया जाता है, तो आपके पेड़ जितना कार्बन अवशोषित करेंगे, उससे ज्यादा उस जगह से निकलकर वापस वातावरण में मिल जाएगा. उस स्थिति में आप कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा कम करने की जगह वातावरण में उसकी मात्रा बढ़ा रहे होते हैं.”

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ऐसा ही एक अन्य उदाहरण देते हुए हार्डविक ने बताया कि दक्षिण अफ्रीका के स्क्रबलैंड में मूल प्रजातियों की जगह विदेशी बबूल और देवदार के पेड़ों को व्यापक तौर पर लगाया गया. इससे स्थानीय वनस्पतियों की प्रजातियां विलुप्त होने के कगार पर पहुंच गई और इलाके में पानी की कमी हो गई. उन्होंने कहा, "बबूल के पेड़ काफी ज्यादा फैल गए. दक्षिण अफ्रीका अब इन पेड़ों को हटाने के लिए लाखों डॉलर खर्च कर रहा है.”

केप टाउन शहर और इसके आसपास के इलाके में 2018 में सूखे की विकराल समस्या पैदा हो गई थी. जल-स्तर लगभग सूख गया था. एक अनुमान के मुताबिक, यहां हर साल करीब 55 बिलियन लीटर पानी ये विदेशी पेड़-पौधे इस्तेमाल कर लेते हैं.

दक्षिण अफ्रीका में बाहरी पेड़ों को काट कर स्थानीय पेड़ लगाये जा रहे हैं
दक्षिण अफ्रीका में बाहरी पेड़ों को काट कर स्थानीय पेड़ लगाये जा रहे हैंतस्वीर: Nic Bothma/dpa/picture alliance

जंगलों को बचाए रखने का सही तरीका क्या है?

केव के रिसर्चरों के बनाए गए 10 नियमों के मुताबिक, सबसे पहली प्राथमिकता मौजूदा जंगलों को बचाने की होनी चाहिए. जब कार्बन को अवशोषित करने और जैव विविधता की बात आती है, तो नये पेड़ सदियों से विकसित जंगलों को मात नहीं दे सकते.

हार्डविक ने जोर देकर कहा कि जंगल लगाने की परियोजनाओं में स्थानीय समुदायों को शामिल करना चाहिए और उन्हें इन पेड़ों का संरक्षण करते हुए इनसे आर्थिक लाभ पाने की अनुमति देनी चाहिए. जैसे, स्थानीय लोग जंगली इलाकों में पर्यटन से कमाई कर सकें, इनके फलों से अपनी आजीविका चला सकें वगैरह.

वृक्षारोपण परियोजनाओं का लक्ष्य यह होना चाहिए कि पहले से जो प्राकृतिक रूप से मौजूद था उसे ही फिर से स्थापित किया जाए. अगर किसी क्षेत्र में पहले से मौजूद प्रजातियों के पेड़ उस इलाके में लगाए जाते हैं, तो इसका फायदा यह होता है कि उन्हें नए वातावरण में ढलने की जरूरत नहीं होती है. वे तेजी से विकसित होते हैं और स्थानीय पारिस्थितिक तंत्र को भी किसी तरह का नुकसान नहीं पहुंचता है. हार्डविक यह भी सलाह देती हैं कि किसी एक प्रजाति के बजाय अलग-अलग देशी प्रजातियों के पेड़ों को लगाना चाहिए. 

उन्होंने कहा, "मोनोकल्चर ‘आग, तूफान, कीड़े और बीमारियों के प्रति संवेदनशील होते हैं' जबकि स्थानीय प्रजातियों के मिश्रण वाले पेड़ ज्यादा स्थिर होते हैं. इन्हें नुकसान पहुंचने की संभावना कम होती है. जलवायु परिवर्तन, सूखे और कीटों के हमलों से जंगलों पर बढ़ते दबाव के कारण, स्थानीय प्रजातियों के मिश्रण वाले पेड़ों को लगाना भविष्य में और अधिक महत्वपूर्ण हो जाएगा.”

चीन में किसानों ने ऐसे पेड़ लगाये हैं जो सूखे के दौर में ज्यादा दिन तक टिक सकते हैं
चीन में किसानों ने ऐसे पेड़ लगाये हैं जो सूखे के दौर में ज्यादा दिन तक टिक सकते हैंतस्वीर: How Hwee Young/dpa/picture alliance

जलवायु परिवर्तन का कोई एक समाधान नहीं

पेड़ CO2 को अवशोषित करने और जमा करने के महत्वपूर्ण साधन हो सकते हैं, लेकिन वैज्ञानिकों का कहना है कि सिर्फ जंगलों पर निर्भर रहकर जलवायु संकट को दूर नहीं किया जा सकता. 

कुक-पैटन ने कहा, "जलवायु परिवर्तन की समस्या का कोई एक समाधान नहीं है. अगर सिर्फ एक समाधान होता, तो वह जीवाश्म ईंधन पर हमारी निर्भरता को कम करना होता. मौजूदा जंगलों को बचाए रखना और सही तरीके से योजना बनाकर नए पौधे लगाना महत्वपूर्ण कदम है. हालांकि, कुछ मामलों में हमें एक कदम पीछे हटना चाहिए. प्रकृति को अपने-आप ठीक होने का मौका देना सबसे अच्छा विकल्प हो सकता है.”

उन्होंने आगे कहा, "हम पेड़ लगाना पसंद करते हैं. यह बहुत अच्छा लगता है, लेकिन पेड़ों को अपने-आप फिर से बढ़ने देना सस्ता, आसान और अधिक प्रभावी उपाय हो सकता है.”