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अकेले बचे पेड़ ने इंसान को कैसे बदल दिया

८ अप्रैल २०२२

जंगल साफ हो गया और आखिर में एक ही पेड़ बच गया. इसी अकेले पेड़ ने पूर्वी केन्या के लोगों को अपनी भूल सुधारने का मौका दिया. अब कहा जा रहा है कि इस पेड़ से दूसरे देशों को सीख लेनी चाहिए.

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मैंग्रोव का पेड़
तस्वीर: Christian Goupi/imago images

सबाकी नदी, कुछ सहायक नदियों से मिलकर बनने वाली केन्या की दूसरी बड़ी नदी है. हमेशा पानी से लबालब रहने वाली सबाकी नदी हिंद महासागर में ताजा पानी उड़ेलती है. लेकिन जिस जगह नदी समंदर में मिलती हैं, वहां अब सिर्फ एक मैंग्रोव का पेड़ बचा है. यह पेड़ कभी वहां मौजूद घने जंगल की आखिरी निशानी है. 42 साल के जोसेफ मवानदेंगे मान्गी को उस जंगल की अच्छे से याद है. स्थानीय पेड़ पौधों की बढ़िया जानकारी रखने वाले मान्गी आखिरी पेड़ को निहारते हुए कहते हैं, "ये अकेला पेड़ है. बाकी अब नहीं रहे."

केन्या में हिंद महासागर के तट पर बसे स्वाहिली लोग, पारंपरिक घर बनाने के लिए आज भी मैंग्रोव की लकड़ी पर निर्भर हैं. इलाके में जैसे-जैसे टूरिज्म बढ़ता गया वैसे-वैसे मालिंदी समेत तमाम नए कस्बे और शहर पनपने लगे. इन इंसानी बस्तियों के विस्तार की कीमत मैंग्रोव के वनों ने चुकाई.

बेहद सेहतमंद इकोसिस्टम बनाते हैं मैंग्रोव के जंगल
बेहद सेहतमंद इकोसिस्टम बनाते हैं मैंग्रोव के जंगलतस्वीर: DW

अकेले पेड़ का संदेश

मैंग्रोव के जंगल साफ होने के बाद समंदर में मछली पकड़ना मुश्किल होने लगा. फिर स्थानीय लोगों ने सबाकी नदी को छानना शुरू किया. अब नदी में भी बहुत ज्यादा मछलियां नहीं हैं. रही सही कसर खेती में कीटनाशकों के बढ़ते इस्तेमाल ने पूरी कर दी.

68 साल के फ्रांसिस न्याले कहते हैं, "प्राकृतिक नजारा पूरी तरह बदल चुका है. पुराने दौर में यहां बड़ा जंगल था, जिसमें हाथी और बंदर थे." अब अकेला पेड़ बचा है और यही पेड़ अब लोगों को फिर से हरियाली बढ़ाने को प्रेरित कर रहा है.

जनवरी 2022 में सूखे के चलते केन्या में मारे गए हजारों मवेशी
जनवरी 2022 में सूखे के चलते केन्या में मारे गए हजारों मवेशीतस्वीर: BAZ RATNER/REUTERS

नदी के किनारों पर बीते कुछ बरसों में हजारों मैंग्रोव के पौधे रोपे गए हैं. प्रकृति संरक्षण ग्रुप नेचर केन्या के कोस्ट रीजनल कोऑर्डिनेटर फ्रांकसिस कागेमा के मुताबिक ज्यादातर पौधे अब पेड़ बनने की राह पर हैं. कागेमा कहते हैं, "मैंग्रोव के पौधे अपनी पुरानी जमीन पर जिस तरह फैल रहे हैं, उसे देखना वाकई शानदार है."

पर्यावरण रक्षा का प्राकृतिक तरीका

मैंग्रोव का जंगल दूसरे पेड़ों के मुकाबले पांच गुना ज्यादा कार्बन सोखता है. मैंग्रोव के पेड़ वातावरण में घुले कार्बन को सोखकर जमीन में लौटाते हैं. इस तरह कार्बन साइक्लिंग का प्राकृतिक चक्र चलता रहता है. मैंग्रोव के पेड़ समुद्री तूफानों और लहरों से भी तटों की रक्षा करते हैं. ये बैरियर की तरह काम करते हैं.

जापान, अमेरिका और नीदरलैंड्स समेत कई विकसित देशों में लहरों से तटों की रक्षा के लिए बड़ी बड़ी दीवारें बनाई जाती हैं. संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) के मुताबिक ऐसी दीवारों के मुकाबले मैंग्रोव के जंगल 1000 गुना सस्ते पड़ते हैं.

दिसंबर 2021 के सूखे में मारे गए जिराफ
दिसंबर 2021 के सूखे में मारे गए जिराफतस्वीर: Ed Ram/Getty Images

मैंग्रोव के जंगलों का आर्थिक और सामाजिक फायदा भी है. यूएनईपी का अनुमान है कि एक हेक्टेयर में फैला मैंग्रोव का जंगल हर साल 33,000 से 57,000 अमेरिकी डॉलर का फायदा पहुंचाता है. और यह लाभ किसी एक की जेब में भी कैद नहीं होता, फायदा पूरे समुदाय को होता है. मछुआरों का ज्यादा मछलियां मिलती हैं. पर्यटक को अनोखी वाइल्डलाइफ दिखती है. पैसा आने से इलाके में नौकरियां पैदा होती हैं और पलायन कम होता है.

सबाकी से मिले सबक

सबाकी इलाके के चार गांव अब टिकाऊ संरक्षण के इस अभियान में शामिल हैं. जंगल को फिर से बसाने की मुहिम में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने वाले मान्गी, मछुआरों से लगातार बातचीत करते हैं. रेंजर लकड़ी काटने पर कार्रवाई करते हैं. मान्गी कहते हैं, "हम उन्हें पुलिस के हवाले नहीं करते हैं. हम उनसे बात करते हैं. हम उनसे गुजारिश करते हुए कहते हैं कि इन पेड़ों में लकड़ी से कहीं ज्यादा बड़ी संभावना छिपी है."

मुंबई में भी मैंग्रोव संरक्षण की मुहिम
मुंबई में भी मैंग्रोव संरक्षण की मुहिमतस्वीर: Bombay61

जैरेड बोसायर, नैरोबी संधि नाम के अभियान के प्रोजेक्ट मैनेजर हैं. वे पश्चिमी हिंद महासागर में संरक्षण के कामों को बढ़ावा देते हैं. बोसायर के मुताबिक, सबाकी के गांव दुनिया को दिखा रहे हैं कि स्थानीय लोगों को साथ लाकर सबके हितों की रक्षा कैसे की जा सकती है. वह कहते हैं, "उम्मीद तो यही है कि यहां मिले सबकों को दूसरे इलाकों में लागू किया जा सकेगा."

वहीं अकेले पेड़ का जिक्र करते हुए मान्गी कहते हैं कि ये पेड़ हमारे पूरे समुदाय का रक्षक है, अगर ये पेड़ अपने साथियों के साथ नहीं फला, तो "हम भी अपनी विरासत खो देंगे."

ओएसजे/एडी (एएफपी)

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