1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें
समाज

अपने तीन बच्चे खोने के बाद अनाथों की जिंदगी संवार रहा दंपति

२० दिसम्बर २०१९

2004 के सूनामी की वजह से तमिलनाडु में जानमाल की काफी ज्यादा क्षति हुई थी. इस दौरान अपने तीन बच्चों को खोने के बाद एक दंपति आत्महत्या के बारे में सोचने लगा था लेकिन आज वे कई अनाथ बच्चों की जिंदगी संवार रहे हैं.

https://p.dw.com/p/3V8TB
Indonesien Vulkan Anak Krakatau
तस्वीर: picture-alliance/dpa/F. Chaniago

भारत के दक्षिणी हिस्से में 26 दिसंबर 2004 यानि अब से 15 साल पहले 9.1 की तीव्रता वाले भूकंप की वजह से सूनामी आई थी. इस सूनामी ने कई बच्चों के सिर से मां-बाप का साया छिन लिया तो कई मां-बाप की गोदें सूनी हो गईं. दक्षिण भारतीय राज्य तमिलनाडु के नागापट्टिनम शहर के रहने वाले करिबेरन परमेश्वरन और उनकी पत्नी चूड़ामणि के तीन बच्चे भी इस सूनामी की वजह से मारे गए. इन बच्चों में एक पांच साल का बेटा और नौ तथा 12 साल की दो बेटियां शामिल थी. तीनों बच्चों को खोने के दुथ के कारण दंपति ने आत्महत्या करने का विचार किया. लेकिन इस बीच वे शहर से गांव चले गए. यहां उन्होंने सड़कों पर कई अनाथ बच्चे देखें और आत्महत्या का विचार छोड़ इन अनाथ बच्चों की जिंदगी संवारने का फैसला किया.

चूड़ामणि बताती हैं, "हमने कई ऐसे बच्चों को सड़क किनारे देखा जिनके पास न रहने को घर था और न उनके माता-पिता थे. मैंने सोचा कि मेरे बच्चे तो अब रहे नहीं, क्यों न इन बच्चों को आश्रय दिया जाए." शुरुआत में दंपति चार अनाथ बच्चों को अपने घर लेकर आए. इसके बात उन्होंने अपने घर को ही अनाथालय में बदल दिया और नाम रखा 'नांबिक्केई'. तमिल भाषा में इसका मतलब होता है 'उम्मीद'. कुछ ही दिनों में बच्चों की संख्या बढ़कर 36 पहुंच गई और दंपति को जिंदगी जीने का एक नया मकसद मिल गया.

Indonesien Vulkan Anak Krakatau
तस्वीर: picture alliance/AP Photo

सूनामी की वजह से काफी ज्यादा जानमाल की क्षति हुई थी. तटीय जिला नागापट्टिनम में छह हजार से ज्यादा लोग मारे गए थे. यह क्षेत्र सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ था. यहां मुख्यभूमि पर रहने वाले करीब नौ हजार से ज्यादा लोग मारे गए थे. करीब 42 हजार लोग बेघर हो गए थे. परमेश्वरन इंजीनियर हैं और उनकी पत्नी जीवन बीमा कंपनी की स्थानीय शाखा प्रमुख. सूनामी के बाद से अब तक दोनों ने 45 अनाथ बच्चों की देखरेख की और इसके लिए दो बिल्डिंग बनवाए हैं. इसमें एक लड़कियों के लिए है और दूसरा लड़कों के रहने के लिए. इसके लिए शुरू में दोनों ने खुद के पैसे खर्च किए लेकिन बाद में दोस्तों का साथ मिलने लगा.

यहां रहकर बड़े हुए कई बच्चे अब दूसरे जगह चले गए हैं. कुछ उच्च शिक्षा हासिल कर रहे हैं तो कुछ बहुराष्ट्रीय कंपनियों में काम कर रहे हैं. इन्हीं में से एक हैं 21 वर्षीय स्निग्धा. अनाथालय में आने के बाद उन्होंने इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी में डिप्लोमा किया. आज वे अनाथालय में ही काम कर रही हैं. वे कहती हैं, "मैं बच्चों की सेवा करने के लिए नांबिक्केई में आयी हूं." 54 वर्षीय परमेश्वरन और उनकी पत्नी चूड़ामणि को अब एक पूर्णता का आभास होता है. परमेश्वरन कहते हैं, "हमारा यह मिशन आजीवन जारी रहेगा क्योंकि हम अपने बच्चों को सम्मान देना चाहते हैं."
आरआर/आरपी (रॉयटर्स)

______________

हमसे जुड़ें: WhatsApp | Facebook | Twitter | YouTube | GooglePlay | 

आग की 11 घटनाएं जिन्होंने भारत को हिलाकर रख दिया

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी