1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें
समाज

मदद की आस में ठगी के शिकार हो रहे हैं कोरोना के मरीज

मनीष कुमार
१८ मई २०२१

साइबर ठग कम कीमत पर जरूरी चीजें उपलब्ध कराने का भरोसा दिला कर बतौर एडवांस कुछ धनराशि खाते में जमा करने को कहते हैं और जैसे ही पैसा ट्रांसफर होता है, उनका फोन स्विच ऑफ हो जाता है.

https://p.dw.com/p/3tYED
Remdesivir
तस्वीर: AFP/U. Perrey

कोरोना की दूसरी लहर के बीच बिहार समेत देश के कई राज्यों में ऑक्सीजन सिलेंडर, अस्पतालों में बेड, प्लाज्मा व रेमडेसिविर इंजेक्शन जैसी जीवनरक्षक दवाओं की मारामारी से परेशान कोविड के मरीज या उनके परिजन सोशल मीडिया पर अपना पता व टेलीफोन नंबर सार्वजनिक कर लोगों से मदद की गुहार लगा रहे हैं.

इस गुहार का कई मामलों में फायदा होता है और उनकी जरूरतें पूरी भी हो जातीं हैं. किंतु, सोशल मीडिया पर ऐसे शातिरों के गैंग सक्रिय हैं जो विपदा की इस घड़ी में ठगी को अंजाम दे रहे हैं. ये शातिर बतौर कोरोना वॉरियर अपना नंबर फेसबुक, ट्विटर या व्हाट्सऐप पर भी वायरल करते हैं या फिर सोशल मीडिया में दिए गए मरीजों को कॉल करते हैं और फिर कांफ्रेंस में बातचीत कर उचित मदद का आश्वासन देते हैं, बतौर एडवांस पंद्रह सौ से लेकर पचास हजार की राशि ट्रांसफर करने को कहते हैं. जैसे ही पैसा उनके खाते में चला जाता है, वे फोन बंद कर लेते हैं या पीड़ित का नंबर ब्लॉक कर देते हैं.

बिहार में बैठ कई राज्यों में कर रहे ठगी

दिल्ली, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, झारखंड, उत्तराखंड, बंगाल, असम व बिहार के सैकड़ों लोग ऑनलाइन ठगी के शिकार हो चुके हैं. अधिकतर मामलों में इनके तार बिहार से जुड़े हैं. केवल दिल्ली में ऐसे तीन सौ से अधिक मामले दर्ज किए जा गए हैं.

बिहार की आर्थिक अपराध इकाई (ईओयू) तथा दिल्ली पुलिस के संयुक्त अभियान में ऐसे करीब सौ शातिरों को गिरफ्तार किया जा चुका है. पिछले कई दिनों से दिल्ली पुलिस की टीम बिहार में डेरा डाले हुई है. दिल्ली पुलिस ने करीब 900 से ज्यादा फोन नंबरों ट्रेस किए हैं जिनका इस्तेमाल दिल्ली में करीब चार सौ लोगों से ठगी में किया गया.

ट्रू-कॉलर में इनके कई फोन नंबर कोविड हेल्पलाइन से सेव किए गए हैं, जो प्रथमदृष्टया काफी हद तक लोगों को यह भरोसा दिलाते हैं कि वे सही जगह पर कॉल कर रहे हैं. करीब साढ़े तीन सौ से अधिक फोन नंबरों को ब्लॉक कर दिया गया है. इनके अधिकतर सिम पश्चिम बंगाल से लिए गए हैं.

ऐसे 300 से अधिक बैंक खातों का पता चला है जिनमें ठगी के पैसे कोविड पीड़ितों या उनके परिजनों से जमा कराए गए. अधिकतर अकाउंट पटना, महाराष्ट्र तथा दिल्ली की शाखाओं के हैं. इनमें कई खातों को फ्रीज कर दिया गया है.

नालंदा-नवादा बना ठगी का ठिकाना

साइबर क्राइम खासकर बैंक फ्रॉड का अड्डा रहे झारखंड के जामताड़ा के बाद कोरोना की दूसरी लहर में बिहार का नालंदा-नवादा जिला शातिरों का नया ठिकाना बन गया है. इसके अलावा पटना के दानापुर व बख्तियारपुर तथा शेखपुरा से भी ठगी के तार जुड़े हैं. नालंदा-नवादा से एक दर्जन से ज्यादा लोग पकड़े गए हैं. इनके करीब ढाई सौ बैंक खातों का पता चला है.

स्थानीय पुलिस की मदद से ईओयू व दिल्ली पुलिस की टीम पिछले कई दिनों से इन इलाकों में ताबड़तोड़ छापेमारी कर रही है. हालांकि मास्टरमाइंड अभी गिरफ्त से बाहर है.

मजबूर लोगों से ऑक्सीजन सिलेंडर के नाम पर पचास हजार से एक लाख तक की वसूली करने के आरोप में बीते दिनों चार ठगों को गिरफ्तार किया गया. इनके कब्जे से तेरह एटीएम कार्ड, 19,500 रुपये नकद, लैपटॉप व नौ मोबाइल फोन जब्त किए गए. नालंदा के एसपी एस हरि प्रसाथ कहते हैं, "‘कोविड काल में भी कुछ बदमाश परेशान लोगों को ठगने का काम कर रहे हैं. सोशल मीडिया पर मदद के नाम मैसेज वायरल किए जा रहे हैं. लोग मदद की उम्मीद में पैसे भेजकर ठगी का शिकार हो जा रहे हैं."

इसी तरह दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने ईओयू के सहयोग से पटना से विजय बेनेडिक्ट नामक साइबर अपराधी को गिरफ्तार किया. इसके पास से चेक बुक, कई एटीएम कार्ड व पासबुक जब्त किए गए. इसके अकाउंट में 16 लाख रुपये पाए गए. विजय ने खाता खोलते समय अपनी बहन का फोन नंबर दिया था. इसी फोन नंबर के आधार पर बहन से पूछताछ पर पुलिस ने विजय बेनेडिक्ट को गिरफ्तार किया.

नकली दवा बेचने वाले भी सक्रिय

इनके साथ-साथ कालाबाजारी करने वाले भी सक्रिय हैं. पुलिस ने पटना के एसपी वर्मा रोड से रेमडेसिविर की कालाबाजारी करने के आरोप में रेनबो अस्पताल के निदेशक अशफाक अहमद, एजेंट अल्ताफ अहमद व मेडिकल रिप्रजेंटेटिव राजू कुमार को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. पटना में ऐसे कई कालाबाजारियों को पुलिस ने गिरफ्तार किया है.

पड़ोसी देश नेपाल में पुलिस ने एक सूचना के आधार पर नकली रेमडेसिविर इंजेक्शन जब्त किए. बताया गया कि स्टॉसेफ नामक एंटीबॉयोटिक इंजेक्शन की शीशी के ऊपर रेमडेसिविर का लेबल लगाकर उसे बाजार में बेचा जा रहा है. दोनों की शीशी की साइज एक होने का फायदा धंधेबाज उठा रहे थे. रेमडेसिविर के नाम पर 40 से 50 हजार रुपये तक की वसूली की जा रही थी.

ऐसा नहीं है कि सोशल मीडिया में जारी सभी नंबरों पर गलत ही हो रहा है. कई लोग वाकई आगे बढ़-चढ़कर मदद कर भी रहे हैं. विपदा की इस घड़ी में जरूरत है आपदा के अवसर समझने वालों को बेनकाब करने की.

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी