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गंगा किनारे मिल रहे हैं और शव

चारु कार्तिकेय
१७ मई २०२१

उत्तर प्रदेश में गंगा किनारे एक के बाद एक कर कई स्थानों पर दफनाए हुए शव मिल रहे हैं. यह शव कोविड-19 से संक्रमित लोगों के हैं या नहीं इस बात की पुष्टि नहीं हुई है, लेकिन शवों का इस तरह नदी किनारे दफना दिया जाना जारी है.

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Indien Coronavirus l Beisetzung einer an Covid verstorbenen Person im Kreise der Familie
तस्वीर: Prabhat Kumar Verma/Zumapress/picture alliance

उत्तर प्रदेश में गंगा नदी में तैरती और उसके किनारे पर रेत में दफनाए गए शवों पर कई मीडिया रिपोर्टों के सामने आने के बाद पुलिस और प्रशासन इसकी जांच और रोकथाम में लग गए हैं. जीपों और नावों में पुलिस लाउडस्पीकरों पर घोषणा करवा रही है कि शवों को नदियों में नहीं डालना है. पुलिस कह रही है, "हम अंतिम संस्कार करने में आपकी मदद करने के लिए तत्पर हैं." लेकिन शवों के मिलने का सिलसिला थम नहीं रहा है.

स्थानीय मीडिया में आई कई खबरों के मुताबिक प्रयागराज में एक बड़े घाट पर रेत में दफनाए हुए करीब 5,000 शव मिले हैं. बारिश और तेज हवा की वजह से शवों के ऊपर डाली गई मिट्टी हट गई. अधिकारियों का कहना है कि वैसे तो नदी किनारे इस तरह शवों को दशकों से दफनाया जा रहा है, पर इस बार महामारी की छाया में इतनी बड़ी संख्या में शवों के मिलने से इस समस्या पर लोगों का ज्यादा ध्यान जा रहा है.

प्रशासन का इनकार

राज्य सरकार के एक प्रवक्ता नवनीत सहगल ने नदियों में इतनी बड़ी संख्या में शवों के मिलने की खबरों को खारिज करते हुए कहा, "मैं शर्त लगा कर कह सकता हूं कि इन शवों का कोविड-19 से कोई लेना देना नहीं है." उनका कहना है कि कुछ गांवों में लोगों के बीच साल में कभी कभी कुछ धार्मिक कारणों की वजह से मृतकों का दाह संस्कार करने की जगह उनके शवों को नदियों में बहा देने या नदी किनारे दफना देने की परंपरा है.

Indien Coronavirus l Beisetzung einer an Covid verstorbenen Person im Kreise der Familie
प्रयागराज में गंगा के किनारे रेत में एक मृतक के शव को दफना कर प्रार्थना करते हुए उसके परिवार के सदस्य.तस्वीर: Rajesh Kumar Singh/AP/picture alliance

दाह संस्कार करने में लोगों की मदद करने वाली परोपकारी संस्था बंधु महल समिति के सदस्य रमेश कुमार सिंह ने बताया कि ग्रामीण इलाकों में इस समय मृत्यु दर बहुत बढ़ी हुई है. उन्होंने बताया कि लकड़ी की कमी भी हो गई है और अंतिम संस्कार करने का खर्च बहुत बढ़ गया है, इसलिए गरीब लोग शवों को नदी में बहा दे रहे हैं. अंतिम संस्कार का खर्च तीन गुना बढ़ कर 15,000 रुपयों तक पहुंच गया है.

गांवों में स्वास्थ्य व्यवस्था

ग्रामीण इलाकों में कोविड जांच की व्यवस्था ही नहीं है, इसलिए इस बात की पुष्टि नहीं हो पा रही है कि इतने लोग महामारी की वजह से मरे या किसी और वजह से. कई गांवों में पत्रकारों को मरने वालों के परिवार के सदस्यों ने बताया कि मृतक को कुछ दिनों तक बुखार रहा, फिर सांस फूलने लगी और उसके बाद मृत्यु हो गई. इस तरह के बयानों से इस अनुमान को बल मिल रहा है कि ग्रामीण इलाकों में महामारी का प्रसार प्रशासन की पकड़ में नहीं आ रहा है, लेकिन जब तक इन गांवों में पर्याप्त जांच ना हो तब तक इसकी पुष्टि होना मुश्किल है.

इसी स्थिति को देखते हुए केंद्र सरकार ने कहा है कि ग्रामीण इलाकों में प्राथमिक चिकित्सा केंद्र, उप-केंद्र और अन्य स्वास्थ्य संस्थानों में रैपिड एंटीजन टेस्ट की व्यवस्था की जाए. आशा स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को भी गांवों में स्थिति पर नजर रखने को कहा गया है. थर्मामीटरों और ऑक्सीमीटरों का भी इंतजाम करने को कहा गया है और जिला स्तर पर कम से कम 30 बिस्तरों के कोविड केंद्र बनाने को कहा गया है. अब देखना यह है कि यह सारे इंतजाम कितनी जल्दी शुरू हो पाते हैं. (एपी)

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