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ब्राजील में जमीन और पानी पर अधिकार की लड़ाई

२२ जून २०१८

ब्राजील में हाइड्रोइलेक्ट्रिक बिजली के लिए नदी पर बांध बनाए जाने का विरोध हो रहा है. जमीन की मिल्कियत साफ नहीं है और पूर्व गुलामों के वंशज जमीन और पानी पर अधिकार की लड़ाई लड़ रहे हैं.

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Brasilien
तस्वीर: DW/N.Pontes

हर सुबह वाल्देमिर फ्रांसिस्को दा कंसेसाओ अपने फूस के घर से बाल्टी लेकर ब्राजील के पहाड़ों से निकलने वाली नदी से पानी लेने टहल कर जाते हैं. उनके गांव वाओ दे अल्मास में पीने के पानी की सप्लाई नहीं है, लेकिन वे कसावा, गेहूं और चावल की खेती कर किसान की अपनी साधारण जिंदगी से खुश हैं. ब्राजील के भगोड़े दासों की 1.6 करोड़ संतानों में से एक दा कंसेसाओ तथाकथित किलोमबोआला हैं.

इन दासों ने जमींदारों के फार्मों और खदानों में काम की कठिन परिस्थियों से भागकर दूर के इलाकों में बस्तियां बसाई थीं जिन्हें किलोमबोआला कहा जाता था. अब वाओ दे अल्मास की देहाती खूबसूरत वादियां हाइड्रोइलेक्ट्रिक बिजली के लिए बांध बनाए जाने की योजना से खतरे में है.  बांध बनाने के समर्थकों का कहना है कि इससे राजधानी ब्राजीलिया से 354 किलोमीटर दूर स्थित इस पिछड़े इलाके में बिजली पैदा होगी और इलाके के लोगों को रोजगार मिलेगा. 

सुरक्षा की चिंता

दा कंसेसाओ की चिंता ये है कि बांध बन जाने से उनके लिए नदी से पानी लेना संभव नहीं रहेगा. इतना ही नहीं, यदि बांध की सुरक्षा के साथ कोई समस्या होती है तो ये उनके परिवार और बच्चों की सुरक्षा के लिए भी खतरा होगा. 37 वर्षीय दा कंसेसाओ कहते हैं, "हम हाथ मुंह धोते हैं, खाना बनाने के लिए पानी लेते हैं, हम नहाते हैं, हम हर चीज के लिए नदी पर निर्भर हैं." सैंटा मोनिका बांध परियोजना ने इस गांव को दो दशक से ज्यादा से जमीन के दावों और विरोधी दावों के जाल में जकड़ रखा है.

दक्षिणी अमेरिका का सबसे बड़ा देश ब्राजील विकास के लिए जमीन की उपलब्धता के मामले में अत्यंत समृद्ध है, लेकिन जमीन के रिकॉर्ड रखने के मामले में अत्यंत पिछड़ा है. इसकी वजह से जमीन की मिल्कियत साबित करना बहुत ही मुश्किल है. इससे न सिर्फ तनाव पैदा होते है, बल्कि जानलेवा विवाद भी सामने आते हैं.

हर्जाने की लड़ाई

ब्राजील ने 130 साल पहले ही दास प्रथा का अंत कर दिया था. किलोमबोआला के उत्तराधिकारियों को 1988 के संविधान के तहत संपत्ति का अधिकार दिया था. बहुत से लोग अब भी अपनी जमीनों के कानूनी हक के लिए लड़ रहे हैं.  सरकार ने सर्वे और समुदायों के उत्तराधिकार की जांच की लंबी प्रक्रिया के बाद करीब 5,000 किलोमबोआला को मान्यता दी है. वाओ दे अल्मास गांव ब्राजील के सबसे बड़े किलोमबोआला में शामिल कालंगा का हिस्सा है जिसे सरकार ने 2009 में मान्यता दी थी. 

Brasilien ein Quilombola vor dem Obersten Bundesgericht in Brasilia
तस्वीर: ABr/A.Cruz

उसके करीब एक दशक बाद अब तक सिर्फ कालुंगा के 645,000 एकड़ में से 20 फीसदी जमीन का पट्टा दिया गया है. हालांकि किलोमबोआला की सरहदें तय कर दी गई हैं, लेकिन सरहदों के अंदर किसकी जमीन कहां है और कौन किस जमीन का मालिक है, इसके बारे में कोई जानकारी नहीं है. ब्राजील में सिर्फ 250 किलोमबोआला समुदाय को जमीन के कानूनी अधिकार हैं. यदि जायदाद निजी होती है तो सरकारी संस्था इंक्रा उसके अधिग्रहण की कार्रवाई शुरू करती है और मालिकों को मिल्कियत साबित करने पर हर्जाना दिया जाता है. जमीन का पट्टा देने में जटिलता के अलावा इंक्रा के पास हर्जाना देने के लिए बजट का भी अभाव है. सरकार ने पिछले पांच सालों में बजट में 93 फीसदी कटौती की है.

Brasilien Landwirtschaft im Bundesstaat Goias
तस्वीर: Getty Images/AFP/E. Sa

किसानों की जंग

वाओ दे अल्मास में करीब 700 हेक्टेयर जमीन बांध बनाने वाली कंपनी रियालमा को बेची गई. कंपनी ने बांध बनाने के लिए पर्यावरण लाइसेंस लेने के लिए आवेदन दिया है. कंपनी के प्रवक्ता का कहना है कि गांव के लोगों ने बांध बनाने की योजना के साथ सहमति जताई है और इसके लिए एक दस्तावेज पर दस्तखत भी किए हैं. विवाद सिर्फ किलोमबोआला और निर्माण कंपनियों के बीच ही नहीं है, बस्तियों के बाहर किसानों के साथ भी है. दोनों ही एक दूसरे पर जमीन हथियाने का आरोप लगाते हैं. 

जमीन के पट्टों को लेकर होने वाले विवादों के बावजूद किलोमबोआला लोग खुशनसीब हैं कि उनका 35 मीटर ऊंचे सैंटा बारबरा जलप्रपात पर नियंत्रण है. एक झील से घिरा ये जलप्रपात दुनिया भर के पर्यटकों को आकर्षित करता है और स्थानीय समुदायों की आमदनी का महत्वपूर्ण जरिया है. टूरिस्ट जलप्रपात तक जाने के लिए फीस चुकाते हैं और लोग ट्रांसपोर्ट और घरों के किराए से भी कमाते हैं. सैंटा बारबरा से होने वाली आय ने गांवों की हालत सुधारने में मदद दी है. 
एमजे/एके (थॉम्पसन रॉयटर्स)

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