बहुत धीमी है इंसानी दिमाग की डेटा प्रोसेसिंग
२२ जनवरी २०२५ऐसा कहा जाता है कि इंसान के दिमाग में एक बार में दर्जनों बातें एक साथ चल रही होती हैं. इससे इंसान का व्यवहार बहुत तेज और असरदार दिखता है. कीबोर्ड पर टाइपिंग हो या बातचीत करना, ऐसा लगता है जैसे सब कुछ बिजली की गति से हो रहा है. लेकिन रिसर्च से पता चला है कि हमारा दिमाग हर सेकंड सिर्फ 10 बिट्स की रफ्तार से जानकारी प्रोसेस करता है.
अमेरिका के कैलिफोर्निया इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के जू जेंग और मार्कुस माइस्टर ने इस पर गहराई से अध्ययन किया. उन्होंने बताया कि हमारे दिमाग की धीमी गति, उसकी संरचना और काम करने के तरीके को समझने के लिए नए सवाल खड़े करती है.
दिमाग की धीमी रफ्तार का रहस्य
न्यूरोन्स पत्रिका में प्रकाशित एक शोध में जेंग और माइस्टर ने बताया है कि इंसानी इंद्रियां हर वक्त भारी मात्रा में डेटा जमा करती हैं. हमारी आंखें, कान और त्वचा से मिली जानकारी हर सेकंड लगभग एक अरब बिट्स की दर से हमारे दिमाग तक पहुंचती है. लेकिन इस जानकारी को समझने और फैसले में बदलने में दिमाग को बहुत ज्यादा वक्त लगता है.
यह धीमी गति तब भी रहती है जब हम तेज-तर्रार काम कर रहे हों, जैसे वीडियो गेम खेलना या याददाश्त से जुड़े कठिन काम करना. हर परिस्थिति में दिमाग की प्रोसेसिंग स्पीड 10 बिट्स प्रति सेकेंड के करीब रहती है.
जेंग और माइस्टर के अनुसार, दिमाग दो अलग-अलग तरीकों से काम करता है. एक हिस्सा है, बाहरी दिमाग जो तेज और बड़े पैमाने पर डेटा प्रोसेस करता है. दूसरा हिस्सा भीतरी दिमाग है, जो डेटा को छांटकर, जरूरी हिस्सों पर ध्यान केंद्रित करता है.
शोधपत्र में वैज्ञानिक रेटिना की मिसाल देते हैं. हमारी आंखें शुरुआती स्तर पर बहुत सारा डेटा प्रोसेस करती हैं. लेकिन बाद में, यह डेटा धीरे-धीरे छांटा जाता है, ताकि सिर्फ जरूरी जानकारी ही हमारे विचारों और फैसलों का हिस्सा बने. इसके साथ ही दिमाग अपनी सफाई करता रहता है, ताकि गैरजरूरी डेटा हटता रहे.
असल जिंदगी से उदाहरण
रिसर्चर कहते हैं कि तेज प्रोसेसिंग की गलतफहमी कई बार हमारे दैनिक जीवन में देखने को मिलती है. खेल और गेमिंग से जुड़े उदाहरण इसे ज्यादा स्पष्ट कर सकते हैं. वीडियो गेम टेट्रिस खेलने वाले प्रोफेशनल खिलाड़ी हर मिनट में 200 बार ब्लॉक को घुमाते या गिराते हैं. लेकिन इनमें भी असल फैसले वही 10 बिट्स प्रति सेंकेंड की दर से लिए जाते हैं.
स्टारक्राफ्ट वीडियो गेम खेलते खिलाड़ियों को देखने से लगता है कि वे बिजली की रफ्तार से कीबोर्ड पर उंगलियां चला रहे हैं. लेकिन शोध दिखाता है कि केवल कुछ ही मूव गेम का परिणाम तय करते हैं.
स्पीडक्यूबिंग एक और दिलचस्प उदाहरण है. कुछ लोग तो आंख बंद करके कुछ सेकेंड्स में रुबरिक क्यूब को हल कर देते हैं. लेकिन जेंग और माइस्टर ने शोध में पाया कि उनकी प्रोसेसिंग स्पीड भी वही 10 बिट्स प्रति सेकेंड होती है.
इस शोध में वैज्ञानिकों ने "ट्वेंटी क्वेश्चन” गेम का उदाहरण दिया है. इसमें एक व्यक्ति हां/ना के सवाल पूछकर किसी चीज का अंदाजा लगाता है. इस बारे में लेखक लिखते हैं, "अगर सवाल सही तरीके से डिजाइन किए गए हैं, तो हर सवाल से 1 बिट जानकारी मिलती है. अगर अनुमान सही है, तो यह दिखाता है कि कुछ सेकंड में दिमाग 20 बिट्स जानकारी प्रोसेस करता है. इसका मतलब है कि सोचने की रफ्तार, बिना किसी बाहरी रुकावट के, 10 बिट्स प्रति सेकेंड या उससे कम होती है."
यह उदाहरण दिखाता है कि चाहे कल्पना हो, कुछ काम करना हो, या किसी चीज को याद करना, हर मामले में दिमाग की प्रोसेसिंग क्षमता लगभग समान रहती है.
इतने धीमे क्यों हैं हम?
यह सवाल अब भी बड़ा रहस्य है. हमारे दिमाग में अरबों न्यूरॉन (तंत्रिका कोशिकाएं) होते हैं, जो भारी मात्रा में डेटा प्रोसेस कर सकते हैं. फिर भी, हमारे फैसले लेने की गति इतनी कम क्यों है? यह बात और अहम हो जाती है, जबकि अब ऐसे तेज सुपर कंप्यूटर बना लिए गए हैं, जो हजारों या लाखों बिट्स प्रति सेकेंड की रफ्तार से डेटा प्रोसेस कर सकते हैं.
शोधकर्ता कहते हैं कि एक संभावित कारण यह हो सकता है कि दिमाग की आंतरिक संरचना लचीली और सटीक फैसले लेने पर जोर देती है. कई वैज्ञानिकों का मानना है कि हमारी इंद्रियां समानांतर तरीके से डेटा प्रोसेस करती हैं. लेकिन हमारे विचार और फैसले एक क्रम में होते हैं.
यह शोध ब्रेन-कंप्यूटर इंटरफेस (बीसीआई) तकनीकों के लिए बेहद महत्वपूर्ण साबित हो सकता है. बीसीआई का मकसद है कि दिमाग से सीधे कंप्यूटर या डिवाइस को कंट्रोल किया जाए.
दिमाग की प्रोसेसिंग स्पीड की तुलना आधुनिक तकनीक से करें तो यह बेहद धीमी लगती है. एक स्मार्टफोन प्रति सेकेंड कई गिगाबिट्स प्रोसेस कर सकता है, या एक आधुनिक कंप्यूटर की प्रोसेसिंग क्षमता सैकड़ों गीगाबाइट्स प्रति सेकंड है. इन दोनों की तुलना में इंसानी दिमाग की स्पीड कछुए जैसी लगती है. यह अंतर दिखाता है कि इंसानी दिमाग डेटा प्रोसेसिंग में कितना प्रभावी और अर्थपूर्ण छंटाई करता है. असल फर्क यह है कि मशीनें हर जानकारी को समान रूप से प्रोसेस करती हैं.
यही वजह है कि अभी तक कोई भी तकनीक इंसान के बोलने या टाइपिंग जैसी सटीकता और स्पीड को पीछे नहीं छोड़ पाई है. इसका कारण यही हो सकता है कि दिमाग की 10 बिट्स प्रति सेकेंड्स की लिमिट हर प्रकार की तकनीक के लिए एक बाधा है.
दिमाग की इस धीमी प्रोसेसिंग के पीछे का कारण अब भी एक पहेली है. कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि यह हमारी विकास प्रक्रिया का नतीजा है. कुछ का कहना है कि हमारे अंदर ऐसी प्रक्रियाएं हो सकती हैं जो तेज गति से काम करती हैं, लेकिन हमें उनका पता नहीं चलता.
भविष्य में शोध का केंद्र इन अनदेखी प्रक्रियाओं को समझने पर हो सकता है. यह भी देखा जा सकता है कि अन्य जीव-जंतु कैसे डेटा प्रोसेस करते हैं.