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राजनीतिफ्रांस

फ्रांस में अंतिम दौर का मतदान, पंगु हो सकती है संसद

७ जुलाई २०२४

फ्रांस में दूसरे दौर का मतदान चल रहा है, जिसके नतीजे में धुर-दक्षिणपंथी ताकतों के संसद में अभूतपूर्व उभार या फिर विभाजित और अक्षम होने के आसार हैं.

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दक्षिणी फ्रांस के एक पोलिंग बूथ पर वोट डालती महिला
फ्रांस के संसदीय चुनाव में दूसरे दौर का मतदान हो रहा हैतस्वीर: Patricia Huchot-Boissier/abaca/picture alliance

शनिवार को फ्रांस के देश के बाहर मौजूद इलाकों में वोटिंग की शुरुआत हुई, जबकि फ्रांस की मुख्यभूमि पर रविवार सुबह छह बजे से लोगों ने वोट डालना शुरू किया. यह रविवार की शाम छह बजे तक जारी रहेगा. चुनाव खत्म होने के तुरंत बाद से ही रुझान आने शुरू हो जाएंगे, जिनसे नतीजों का अनुमान मिलने लगेगा.

राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों ने समय से तीन साल पहले हीचुनाव का एलान करके बड़ा जुआ खेला था. यूरोपीय संघ के चुनाव में उनकी पार्टी को मिली हार और धुर दक्षिणपंथियों की जीत से तिलमिलाए माक्रों को उस वक्त शायद यही सबसे उचित लगा था. हालांकि, 30 जून को पहले दौर के चुनाव में मरीन ली पेन की नेशनल रैली (आरएन) ने भारी सफलता हासिल कर उनकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया.

धुर दक्षिणपंथियों की बढ़ेगी ताकत

तमाम संकेत इस ओर इशारा कर रहे हैं कि रविवार को दूसरे दौर के नतीजे भी इसी लाइन पर रहेंगे और धुर-दक्षिणपंथी पार्टी संसद में मजबूत हो जाएगी. हालांकि, यह भी हो सकता है कि पार्टी को पूर्ण बहुमत हासिल ना हो. बहुमत हासिल होने पर माक्रों को ली पेन के सिपहसालार और पार्टी के उभरते नेता जॉर्डन बार्देला को देश का प्रधानमंत्री नियुक्त करना होगा. ऐसी स्थिति में ओलंपिक खेलों के आयोजन से कुछ ही हफ्ते पहले देश का प्रधानमंत्री बदल जाएगा.

आरएन पार्टी के नेता जॉर्डन बार्देला पहले दौर के नतीजों के बाद प्रतिक्रिया देते हुए
धुर दक्षिणपंथी पार्टी के उभरते नेता जॉर्डन बार्देला बन सकते हैं फ्रांस के प्रधानमंत्रीतस्वीर: Sarah Meyssonnier/REUTERS

अगर आरएन पार्टी को उम्मीदों के मुताबिक सफलता नहीं मिलती है और संसद में किसी को बहुमत हासिल नहीं होता है, तो भी हालात बहुत अच्छे नहीं रहेंगे. आप्रवासी-विरोधी पार्टियों का संसद में ताकतवर होना सिर्फ माक्रों को ही कमजोर नहीं करेगा. इसकी वजह से संसद का कामकाज भी प्रभावित हो सकता है. यूक्रेन पर रूसी हमले के बाद से यूरोपीय देशों ने जिस तरह एकता दिखाई है, फ्रांस के चुनावी नतीजे उस पर भी असर डाल सकते हैं.

रिपब्लिकन फ्रंट की वापसी

धुर-दक्षिणपंथियों को संसद में बहुमत पाने से रोकने के लिए पिछले हफ्ते मध्यमार्गी और वामपंथी धड़े के उम्मीदवारों ने आपसी सहमतिसे 200 सीटों पर उम्मीदवारी वापस ली है. इसे "रिपब्लिकन फ्रंट"की वापसी कहा जा रहा है. 2002 के राष्ट्रपति चुनाव में मरीन ली पेन के पिता ज्यां मारी के सामने जैक शिराक इसी फ्रंट के उम्मीदवार बने थे.

इस सहमति के बाद ओपिनियन पोल में उम्मीद जताई गई है कि आरएन को 577 सीटों वाली नेशनल असेंबली में बहुमत के लिए जरूरी 289 सीटें हासिल होने में दिक्कत हो सकती है. हालांकि, वह फिर भी सबसे बड़ी पार्टी बनेगी.

पहले दौर के चुनाव के बाद कार्यकर्ताओं का अभिवादन स्वीकार करतीं मरीन ली पेन
मरीन ली पेन के लिए 2027 का राष्ट्रपति चुनाव में चौथी बार उम्मीदवारी के लिहाज से शानदार मौका होगातस्वीर: Thibault Camus/AP Photo/picture alliance

ऐसा नतीजा माक्रों को आरएन के सामने एक बड़ा गठबंधन बनाने का रास्ता खोल देगा. ऐसे हालात में गाब्रिएल अटाल केयरटेकर प्रधानमंत्री के रूप में बने रहेंगे. हालांकि, फ्रांस में यह नतीजा लंबे समय के लिए एक पंगु सरकार की स्थिति भी पैदा कर सकता है.

माक्रों का भविष्य?

बहुत सारे लोग अब भी यह समझ नहीं पा रहे हैं कि माक्रों ने आखिर जल्दबाजी में मध्यावधि चुनाव क्यों कराए. इसके नतीजे में संसद के अंदर आरएन की ताकत दोगुनीहो सकती है. हालांकि, राष्ट्रपति माक्रों अपने फैसलों को लेकर किसी दुविधा में नहीं हैं. उनका कहना है कि इसके बाद फ्रांस की राजनीति में "स्पष्टता" होगी. उन्हें उम्मीद है कि इन चुनावों के बाद फ्रांस में धुर-दक्षिणपंथी, मध्यमार्गी और धुर-वामपंथी के रूप में तीन प्रमुख राजनीतिक धड़े होंगे.

पिछले कुछ दिनों में माक्रों सार्वजनिक रूप से कम नजर आए हैं, ताकि चुनाव के दौरान लोगों की भावनाएं और ज्यादा ना उभरें. उन्होंने 2027 तक अपने पद पर बने रहने का वादा किया है. इसके बाद मरीन ली पेन के लिए फ्रांस का राष्ट्रपति बनने की चौथी कोशिश का वक्त आएगा. यह मरीन के लिए सफलता पाने का सबसे शानदार मौका होगा.

एनआर/वीएस(एएफपी)