1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

त्रिपुरा में सीएम की टिप्पणी के बाद पत्रकारों पर हमले बढ़े

प्रभाकर मणि तिवारी
१५ सितम्बर २०२०

पूर्वोत्तर राज्य त्रिपुरा में कोरोना की कवरेज के मुद्दे पर सरकार और मीडिया के बीच ठन गई है. मुख्यमंत्री बिप्लब देब ने कोविद पर कथित गुमराह करने वाली रिपोर्टों के लिए मीडिया को धमकाया है.

https://p.dw.com/p/3iUvz
Indien Biplab Kumar Deb Chief Minister Bundesstaat Tripura
तस्वीर: Imago/Hindustan Times

दो पत्रकारों पर मुख्यमंत्री के विरोध में पोस्ट डालने के आरोप में हमले हो चुके हैं. पत्रकारों के संगठन ने इसकी निंदा करते हुए मुख्यमंत्री को अपनी टिप्पणी वापस लेने के लिए तीन दिन का समय दिया है. लेकिन उसके तुरंत बाद एक अखबार को कोविड-19 के बारे में छपी खबर से संबंधित सबूत मांगते हुए नोटिस भेज दिया गया.

किसी पूर्वोत्तर राज्य में यह अपने किस्म का पहला मामला है. हालांकि अब परिस्थिति बिगड़ते देख कर मुख्यमंत्री कार्यलय ने सफाई दी है कि देब की टिप्पणी को संदर्भ से काट कर पेश किया गया है. लेकिन पत्रकारों का कहना है कि मुख्यमंत्री की सार्वजनिक धमकी के बाद वह लोग आतंक के माहौल में जी रहे हैं.

क्या है मामला

मुख्यमंत्री बिप्लब देब ने बीते शुक्रवार को त्रिपुरा के पहले स्पेशल इकोनामिक जोन (सेज) के उद्घाटन समारोह में कहा था कि कुछ अखबार कोविड-19 के मुद्दे पर लोगों को गुमराह करने का प्रयास कर रहे हैं. उनका कहना था, "ऐसे अखबारों और पत्रकारों को इतिहास, राज्य के लोग और मैं माफ नहीं करूंगा. इतिहास गवाह है कि मैं जो कहता हूं उसे कर दिखाता हूं.”

मुख्यमंत्री की उक्त टिप्पणी के बाद राज्य के अलग-अलग हिस्सों में दो पत्रकारों के साथ अज्ञात लोगों ने मारपीट की. ढालाई जिले में पत्रकार पराशर विश्वास के साथ आधी रात को उनके घर में घुस कर मारपीट की गई. पराशर कहते हैं, "अगर मुख्यमंत्री ने ऐसी टिप्पणी जारी रखी तो वह सोशल मीडिया पर खुल कर इसका विरोध करते रहेंगे. सोशल मीडिया पर इसका विरोध करने की वजह से ही मेरे साथ मारपीट की गई है.”

सवाल पूछने वाले पत्रकारों को मिला यह जवाब

उसी दिन यानी शनिवार को दक्षिण त्रिपुरा के बेलोनिया में एक चैनल के रिपोर्टर अशोक दासगुप्ता के साथ भी मारपीट की गई. पराशर ने पुलिस में हमले की रिपोर्ट दर्ज कराई है. लेकिन इस मामले में अब तक किसी को गिरफ्तार नहीं किया गया है.

राज्य के पत्रकारों ने देब की टिप्पणियों को प्रेस की आजादी के लिए खतरा करार दिया है. पत्रकार संगठनों का कहना है कि मुख्यमंत्री की धमकियों की वजह से राज्य में पत्रकार आतंक के साए में काम कर रहे हैं. वरिष्ठ पत्रकार और मीडिया के अधिकारों की रक्षा के लिए बने फोरम फार प्रोट्क्शन आफ मीडिया एंड जर्नलिस्ट्स के अध्यक्ष सुबल कुमार दे कहते हैं, "हम मुख्यमंत्री की अलोकतांत्रिक और असंवैधानिक टिप्पणियों की निंदा करते हैं. हमने उनको अपनी टिप्पणी वापस लेने के लिए तीन दिनों का समय दिया है.”

दे बताते हैं कि राज्य में पत्रकारों पर हमले की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं. इस पर तुरंत अंकुश लगाना होगा. उनके मुताबिक, अगर मुख्यमंत्री ने अपनी टिप्पणी वापस नहीं ली तो एडिटर्स गिल्ड के साथ ही प्रेस कौंसिल, मानवाधिकार संगठनों और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से इसकी शिकायत की जाएगी.

ये भी पढ़िए: कहानी पुलित्जर जीतने वाले भारतीय फोटो पत्रकारों की

सरकार की सफाई

दूसरी ओर, मुख्यमंत्री के मीडिया सलाहकार संजय कुमार मिश्र ने दावा किया है कि बिप्लब देब के शब्दों को संदर्भ से काट कर पेश किया गया है. उनका कहना था, "हमने कोरोना महामारी के दौरान पत्रकारों की भी जांच कराई है और उनके कामकाज की सहूलियत के लिए हरसंभव सहायता मुहैया कराई है. लेकिन कुछ स्थानीय अखबार एक तय एजंडे के तहत काम कर रहे हैं.”

लेकिन इस सफाई से पत्रकार संतुष्ट नहीं हैं. उनका दावा है कि सरकार की कथनी और करनी में भारी अंतर हैं. इन संगठनों ने सबूत के तौर पर दैनिक संबाद अखबार को जिला प्रशासन की ओर से भेजे गए नोटिस की मिसाल दी है. इस अखबार की प्रबंध संपादक पारामिता लिविंगस्टोन कहती हैं, "नोटिस की भाषा स्वीकार्य नहीं हैं. इसमें अखबार का पक्ष जाने बिना ही उसे दोषी करार दिया गया है. उक्त नोटिस में सरकार ने कहा है कि अखबार ने कोविड-19 के बारे में एक निराधार खबर छाप कर लोगों को आतंकित करने और कोविड योद्धाओं का मनोबल गिराने का प्रयास किया है. इसमें अखबार से कोविड अस्पतालों की स्थिति के बारे में छपी खबर से संबंधित कागजी सबूत मांगे गए हैं. ऐसा नहीं करने की स्थिति में अखबार और संपादक के खिलाफ महामारी अधिनियम, प्राकृतिक आपदा अधिनियम और भारतीय दंड संहिता के तहत कार्रवाई की धमकी दी गई है.”

अखबार ने अपने जवाब में तमाम आरोपों को निराधार ठहराते हुए कहा है कि वह महज अपना कर्त्तव्य निभा रहा है. सही तस्वीर जनता के सामने रखना उसकी पेशागत जिम्मेदारी है.

सुबल कुमार दे, जो अगरतला प्रेस क्लब के अध्यक्ष भी हैं, आरोप लगाते हैं, "राज्य में सत्तारुढ़ बीजेपी मीडिया संगठनों को धमकियां दे रही हैं.” लेकिन बीजेपी ने इस आरोप का खंडन किया है. प्रदेश बीजेपी के प्रवक्ता नवेंदु भट्टाचार्य कहते हैं, "पत्रकारों पर हमले में पार्टी के किसी व्यक्ति का हाथ नहीं है. पुलिस ने इन हमलों की जांच शुरू की है. हम इन हमलों की निंदा करते हैं. इस मामले में कानून अपना काम करेगा.”

मुख्यमंत्री के मीडिया सलाहकार संजय मिश्र कहते हैं, "त्रिपुरा सरकार प्रेस की आजादी के प्रति कृतसंकल्प है. हमने हमेशा मीडिया की सहायता की है.” लेकिन पत्रकारों के रवैए से साफ है कि फिलहाल वह लोग इस मुद्दे पर सरकार के साथ आर-पार की लड़ाई से पीछे हटने के मूड में नहीं हैं.

__________________________

हमसे जुड़ें: Facebook | Twitter | YouTube | GooglePlay | AppStore

ये भी पढ़िए: प्रेस को कहां कितनी आजादी है?

 

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी