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तेल के धन और हरी किताब पर लडखडाता लीबिया

२५ फ़रवरी २०११

लीबिया तेल उत्पादन करने वाले देशों की सूची में 17वें नंबर पर है. तेल से मिलने वाले डॉलर लीबिया की साठ लाख जनसंख्या में असमान रूप से बंटे हुए हैं. किसी के पास बहुत ज्यादा है, किसी के पास कुछ नहीं.

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तस्वीर: AP

पेट्रो डॉलर 40 साल तक लीबिया की स्थिरता और मोअम्मर गद्दाफी की सत्ता को बचाते रहे. यही लीबिया की अर्थव्यवस्था और सत्ता का केंद्र बिंदु भी रहा. बर्लिन में लीबिया मामलों की जानकार इसाबेल वेरेनफेल्स का मानना है कि गद्दाफी तेल से मिलने वाले धन के जरिए लीबिया में रहने वाले कुलों को खरीद रहे हैं. "लीबिया में कबीले पारंपरिक और राजनीतिक तौर पर अहम हैं."

Libyen Unruhen Proteste in Bengasi
तस्वीर: dapd

लीबिया में 10 बड़े कबीले हैं. गद्दाफी खुद भी एक छोटे कबीले गद्दाफा के हैं और लीबिया में यह मामूली वंश है. लेकिन चालीस साल से भी ज्यादा के राज में गद्दाफी ने अपने कबीले को बहुत फायदा दिया. वेरेनफेल्स मानती हैं कि अभी के विरोध प्रदर्शन इस राजनीति के कारण भी हो रहे हैं. "यह असंतोष का एक बड़ा कारण रहा है. अगर हम बेनगाजी में देखें तो प्रदर्शन सबसे पहले पिछड़े इलाकों और पीछे रह गए कबीलों के लोगों ने ही शुरू किए थे. पूर्वी लीबिया विकास में पिछड़ा हुआ है और यही प्रतिशोध का कारण बना."

पिछड़े लोगों का प्रदर्शन

हालांकि लीबिया उत्तरी अफ्रीका के सबसे अमीर देशों में है. लेकिन सब अमीर नहीं हैं. 2010 में लीबिया ट्रांसपरेंसी इंटरनेशनल की भ्रष्टाचार से ग्रस्त 178 देशों की सूची में 146वें नंबर पर था, ईरान और नेपाल के पीछे. वेरेनफेल्स को इसमें कोई आश्चर्यनक बात नही लगती. सत्ताधारी "परिवार और संभ्रांत लोग बहुत ही भ्रष्ट हैं. तेल से मिलने वाले धन से देश का कोई विकास नहीं हुआ. उन्होंने बहुत धन अफ्रीका के विद्रोहियों को मदद देने में खर्च कर दिया."

इस बीच लीबिया के सबसे बड़े कबीले वार्फेला के अलावा कई और कबीले भी विरोध प्रदर्शनकारियों के साथ हो गए हैं. लेकिन अरब के समाजशास्त्री बुरहान घालियों नहीं मानते कि इन वंशों या जातियों का विरोध प्रदर्शन में कोई हाथ रहा है. "कबीले आधुनिक देश को खड़ा करने के विरोध में नहीं हैं. अरब में कई देशों में अलग अलग कबीलों की सहमति रही है. 1950 से ही संसद में अलग अलग कबीलों को प्रतिनिधित्व दिया गया है ताकि वह अपने कबीलों की बात रख सकें."

लोकतंत्र नहीं, गद्दाफी तंत्र

लीबिया में वैसे भी अभी लोकतंत्र की बहुत जरूरत है. देश में राजनीतिक दलों पर रोक है अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर पहरा है. समाज के सभी धड़ों पर सत्ता का भारी दबाव है. गिने चुने विपक्षी खतरे में रह रहे हैं. 2003 में गद्दाफी के यू टर्न से पहले लीबिया बहुत ही अलग थलग पड़ा हुआ देश था. यहां कोई विदेशी भाषा नहीं पढ़ाई जाती थी. व्यक्तिगत स्वतंत्रता और राजनीतिक अधिकारों के मामले में इसे उत्तर कोरिया या तुर्कमेनिस्तान की तानाशाही जितना ही खराब माना जाता रहा है. घालियों इसके लिए गद्दाफी प्रणाली को जिम्मेदार मानते हैं. "लीबिया में एक ही शासन प्रणाली है लेकिन यह कोई राजनीतिक प्रणाली नहीं है. यह एक ऐसा सिस्टम है जहां एक गुट शासन करता है और देश की आय अपने गुट के बाकी लोगों में बांट देता है. सरकार सरकार की हैसियत से नहीं, एक गुट की हैसियत से बात करती है. जब वह आम जनता से बात करती है तो बिना आदर के करती है. इसलिए मैं लीबिया की प्रणाली को राजनीतिक नहीं मानता बल्कि ऐसा मानता हूं जो लोगों पर नियंत्रण रखती है ताकि तेल के धन को लूट सके."

1979 के बाद से लीबिया में एक ऐसी प्रणाली चल रही है जो पार्टी राजनीति और संसदीय लोकतंत्र को नकारती है. लीबिया में सत्ता के बारे में गद्दाफी के विचार एक हरी किताब में बंद हैं जो किसी भी मुद्दे पर उनके लिए सबसे अहम किताब है.

रिपोर्टः डॉयचे वेले/आभा एम

संपादनः एम गोपालकृष्णन

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