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'जंग के मूड में आ गया था भारत'

२९ अक्टूबर २०११

संसद पर आतंकवादी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान सीमा पर परमाणु हथियारों से लैस मिसाइलें तैनात कर दी थीं. पूर्व अमेरिकी विदेश मंत्री कोंडोलीजा राइस के मुताबिक भारत उस वक्त बेहद नाराज और युद्ध के मूड में आ रहा था.

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तस्वीर: AP

अमेरिका की पूर्व विदेश मंत्री और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार कोंडोलीजा राइस ने ये दावे किए हैं. राइस का कहना है कि 2001 में भारतीय संसद पर हुए आतंकवादी हमले ने भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव बेहद बढ़ा दिया था. भारत की नाराजगी इतनी ज्यादा थी कि उसने पाकिस्तान से सटी पश्चिमी सीमा पर परमाणु हथियार ले जाने वाली मिसाइलें तैनात कर दी थीं. राइस उस वक्त तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश की राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार थीं.

अमेरिका में खींचतान हुई

राइस के मुताबिक भारत के कदमों से अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए और रक्षा मंत्रालय में भी मतभेद उभरे. सीआईए का कहना था कि भारत युद्ध की तरफ जा रहा है, जबकि अमेरिकी रक्षा मंत्रालय ऐसा नहीं मान रहा था. राइस के मुताबिक सीआईए पाकिस्तान की भाषा बोल रही थी. दुनिया भर में और खासकर अमेरिका में वह यह साबित करने में जुट गई थी कि भारत युद्ध छेड़ने जा रहा है. अपनी किताब नो हायर ऑनर में राइस लिखती हैं, "सीआईए को लग रहा था कि युद्ध अब टाला नहीं जा सकता क्योंकि भारत पाकिस्तान को दंड देने का फैसला कर चुका था. पाकिस्तान को भी ऐसा ही लग रहा था और वह (पाकिस्तान) चाह रहा था कि हम भी ऐसा ही सोचें."

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तस्वीर: AP

अमेरिकी रक्षा मंत्रालय के बारे में राइस ने कहा, "काफी हद तक रक्षा विभाग डिफेंस इंटेलिजेंस एजेंसियों की रिपोर्टिंग और समीक्षा को आधार बना रहा था. उसे लगा कि इस तरह की परिस्थितियों में हर सेना ऐसी ही तैयारी करती है. पेंटागन का मानना था कि युद्ध छेड़ने के फैसले का आधार सिर्फ तैयारी नहीं हैं."

पूर्व अमेरिकी विदेश मंत्री के मुताबिक हमले के बाद के तीन दिन अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश के लिए बेहद तनाव भरे थे. सीआईए और पेंटागन के मतभेदों की वजह से स्थिति साफ ही नहीं हो पा रही थी. भारत ने पाकिस्तान से एकदम किनारा कर दिया. तनाव को कम करने के लिए अमेरिका और ब्रिटेन के नेता व बड़े अधिकारी साथ आए. अमेरिकी और ब्रिटिश अधिकारियों ने दोनों देशों के कई चक्कर लगाए. राइस लिखती हैं, "हमें लगा कि जब इतने बड़े विदेशी अधिकारी इलाके में हैं तो दोनों देश युद्ध की तरफ नहीं जाएंगे. उन्होंने हर बार हमें आने दिया. इससे काफी राहत मिल रही थी. हमें समय की जरूरत थी."

युद्ध के मोड़ पर

10 दिन के भीतर हालात बिगड़ते चले गए. ऐसी खबरें आईं कि भारतीय सेना सीमा की तरफ बढ़ रही है. साथ ही यह भी जानकारी मिली कि भारत ने कम दूरी तक मार करने वाली और परमाणु हथियार ढोने में सक्षम मिसाइलें बॉर्डर पर तैनात कर दी हैं. राइस कहती हैं, "हमने इलाके में तैनात उच्च अधिकारियों की सूची का निरीक्षण करना शुरू कर दिया. हम संभावित मध्यस्थकारों की तलाश करने लगे जिनके जरिए हम विरोध दर्ज करा सकें."

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बढ़ते तनाव की वजह से राइस को अपनी क्रिसमस की छुट्टियां रद्द करनी पड़ीं. वह लिखती हैं, "27 दिसंबर तक इन रिपोर्टों की पुष्टि हो गई कि भारत ने सीमा की तरफ परमाणु क्षमता वाली मिसाइलें बढ़ा दी हैं. कोलिन (पावेल) ने भारतीय विदेश मंत्री जसवंत सिंह को फोन किया और कहा कि दोनों देशों को बैठकर बातचीत करनी चाहिए. इस सुझाव को सीधे नकार दिया गया."

जब पावेल कुछ नहीं सके तो बुश की सुरक्षा सलाहकार राइस ने भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ब्रजेश मिश्र को फोन किया. राइस कहती है, "हमेशा शांत और तर्कसंगत रहने वाले मिश्र उस समय चिड़चिड़े हो गए थे. उन्होंने कहा कि मुशर्रफ और पाकिस्तानियों ने कुछ नहीं किया." इस मौके पर राइस को अहसास हुआ कि भारत पर युद्ध का बुखार चढ़ रहा है.

मिश्र और राइस की काफी लंबी बात हुई. धीरे धीरे वह शांत हुए. इसके बाद अमेरिका ने पाकिस्तान पर दवाब डाला. 31 दिसंबर को पाकिस्तान ने लश्कर ए तैयबा के नेता और संस्थापक को गिरफ्तार किया. पारा ठंडा करने वाले उन पलों को याद करते हुए राइस लिखती हैं, "एकाध हफ्ते के भीतर 12 जनवरी को मुशर्रफ ने टेलीविजन पर भाषण दिया और हर तरह के आतंकवाद की निंदा की. उन्होंने कश्मीर के नाम पर हो रही आतंकवादी गतिविधियों को खारिज किया और सभी आतंकवादी संगठनों पर प्रतिबंध लगाने का वादा किया."

भारतीय संसद पर 13 दिसंबर 2001 को पांच आतंकवादियों ने हमला किया. लश्कर ए तैयबा और जैश ए मोहम्मद के आतंकवादी शीतकालीन सत्र के दौरान संसद में घुसे. संसद के बाहर ही सुरक्षाकर्मियों से उनकी मुठभेड़ हुई. पांच आतंकवादी मारे गए. भारत में उस वक्त बीजेपी की अगुआई वाली एनडीए की सरकार थी. अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री थे. वाजपेयी के कार्यकाल में भारत और पाकिस्तान के बीच दिल्ली-लाहौर बस सेवा बस सेवा शुरू हुई. लेकिन दोस्ती की इन कोशिशों को 1998 के कारगिल युद्ध और फिर 2001 के संसद हमले से गहरा झटका लगा.

रिपोर्ट: पीटीआई/ओ सिंह

संपादन: वी कुमार

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