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मुशर्रफ ने की अफगानिस्तान में आईएसआई की पैरवी

२७ अक्टूबर २०११

पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ ने कहा है कि अगर अमेरिका अफगानिस्तान को अस्थिर हालत में छोड़ कर चला जाता है या भारत से अफगानिस्तान की ज्यादा नजदीकियां हो गईं तो वहां आईएसआई को जवाबी कदम उठाने होंगे.

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निर्वासन में रह रहे हैं मुशर्रफतस्वीर: AP

एक दौरे पर वॉशिंगटन पुहंचे मुशर्रफ ने अमेरिका और पाकिस्तान के बीच मौजूदा रिश्तों को "भयानक" बताया लेकिन उन्होंने अपने देश की खुफिया एजेंसी आईएसआई का बचाव किया है जबकि अमेरिका आईएसआई पर चमरपंथियों का साथ देने के आरोप लगाता है.

2008 में सत्ता से हटने के बाद मुशर्रफ निर्वासन में रह रहे हैं, लेकिन उन्हें अगले साल पाकिस्तान लौटने की उम्मीद है. उन्होंने एक राजनैतिक पार्टी भी बनाई है. मुशर्रफ ने जोर देकर कहा कि भारत से पाकिस्तान की प्रतिद्वंद्विता अफगानिस्तान को पाकिस्तान के खिलाफ कर रही है. वह कहते हैं, "हमारी आजादी से ही अफगानिस्तान पाकिस्तान विरोधी रहा है क्योंकि सोवियत संघ और भारत के बीच अफगानिस्तान में बहुत अच्छे रिश्ते थे. हम इसे जारी नहीं रहने देना चाहिए. अगर पाकिस्तान अपने हितों को रक्षा के लिए आईएसआई को जवाबी कदम उठाने के लिए कहता है तो हमें उस पर भड़कना नहीं चाहिए."

Pervez Musharraf
पाकिस्तान लौटना चाहते हैं मुशर्रफतस्वीर: AP

'हर कोई हितों की सोचेगा'

मुशर्रफ ने कहा कि 2014 में जब अमेरिकी और दूसरी सभी विदेशी फौजें अफगानिस्तान छोड़ देंगी तो देश जातीयता के आधार पर संघर्ष में घिर सकता है. वह सवाल कहते हैं, "आप एक अस्थिर अफगानिस्तान छोड़ रहे हैं या एक स्थिर अफगानिस्तान. क्योंकि उसी के आधार पर, मुझे पाकिस्तान में होने के नाते अपनी जवाबी रणनीति तैयार करनी होगी." उन्होंने कहा कि इस सब का "पाकिस्तान पर बुरा असर होगा और पाकिस्तान में कोई भी नेता देश के हितों को सुरक्षित करने के बारे में सोचेगा ही."

तालिबान को खड़ा करने में पाकिस्तान ने मदद दी और जब अफगानिस्तान में इस कट्टरपंथी आंदोलन की सरकार थी तो पाकिस्तान उसके गिने चुने समर्थकों में से एक था. लेकिन 1999 में चुनी हुई सरकार का तख्ता पलट कर सत्ता में आए मुशर्रफ ने अमेरिका पर 11 सितंबर 2001 के हमले के बाद पाला बदल लिया और तालिबान के खिलाफ अमेरिका का साथ दिया.

Bundespraesident Christian Wulff (2.v.r.) begruesst am Sonntag (16.10.2011) in Masar-i Scharif in Afghanistan neben dem Regionalkommandeur der internationalen Schutztruppe Isaf, Generalmajor Markus Kneip, deutsche Bundeswehrsoldaten. Das deutsche Staatsoberhaupt haelt sich zu einem Staatsbesuch in Afghanistan auf. (zu dapd-Text) Foto: Wolfgang Kumm/POOL/dapd
जर्मनी सहित कई पश्चिमी देशों की सेनाएं अफगानिस्तान में तैनात हैंतस्वीर: dapd

'पाकिस्तान को मेहनत करनी होगी'

लेकिन इस वक्त अमेरिका और पाकिस्तान के बीच रिश्ते बेहद खराब चल रहे है जिसकी एक वजह पाकिस्तानी शहर एबटाबाद में अमेरिकी सैन्य अभियान में अल कायदा नेता ओसामा बिन लादेन की मौत है, जिसे पाकिस्तान ने अपनी संप्रभुता के उल्लंघन का नाम दिया. तब से अमेरिकी सैन्य अधिकारियों ने आईएसआई पर हक्कानी नेटवर्क जैसे खतरनाक चरमपंथियों का साथ देने के कई आरोप लगाए हैं. हक्कानी नेटवर्क खास तौर से अफगानिस्तान में अमेरिकी प्रतिष्ठानों को निशाना बनाता है. इनमें पिछले महीने काबुल में अमेरिकी दूतावास पर हुआ हमला भी शामिल है.

हाल ही में पद छोड़ने से पहले अमेरिकी सेना प्रमुख एडमिरल माइक मुलेन ने तो यहां तक कह दिया कि आईएसआई हक्कानी नेटवर्क को अपने हथियार के तौर पर इस्तेमाल करती है. मुशर्रफ ने मुलेन के बयान की आलोचना की लेकिन यह भी कहा कि पाकिस्तान को अपना रुख बयान करने के लिए और बेहतर तरीके से काम करने की जरूरत है. वह कहते हैं, "उन्हें पूरी दुनिया और अमेरिका के सामने यह साबित करना होगा. क्या इसमें कोई दिक्कत है. जहां तक सिराजुद्दीन हक्कानी का संबंध है क्या उसे लेकर उनके पास कोई अलग रणनीति है. क्या इसमें कोई समस्या है कि सेना जरूरत से ज्यादा फैली हुई है."

बेतुका बयान

भारत ने युद्ध से तबाह अफगानिस्तान को 2 अरब डॉलर से ज्यादा की मदद दी है और इसी महीने राष्ट्रपति हामिद करजई ने भारत के साथ रणनीतिक साझेदारी के समझौते पर हस्ताक्षर किए. वैसे पाकिस्तान से रिश्ते बेहतर करने के लिए करजई ने हालिया इंटरव्यू में कहा कि अगर पाकिस्तान और अमेरिका की लड़ाई होती है तो वे पाकिस्तान का साथ देंगे. हालांकि बाद में वे अपने इस बयान से यह कह कर पलट गए कि इसे गलत संदर्भ में पेश किया गया है.

मुशर्रफ कहते हैं कि यह पहला मौका है जब करजई ने पाकिस्तान के समर्थन में कोई बयान दिया है, लेकिन उन्होंने अफगान राष्ट्रपति के बयान को "बेतुका" बताया.

रिपोर्टः एएफपी/ए कुमार

संपादनः आभा एम

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