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क्या महामारी के बीच महाराष्ट्र में भी सत्ता-पलट होगा?

चारु कार्तिकेय
१ मई २०२०

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को 27 मई तक राज्य की विधायिका का सदस्य बनना है नहीं तो उन्हें पद से इस्तीफा देना पड़ेगा. क्या महामारी के बीच, मध्य प्रदेश के बाद महाराष्ट्र भी संवैधानिक संकट की तरफ बढ़ रहा है?

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Uddhav Thackeray indischer Politiker
तस्वीर: Getty Images/AFP

भारत में जब से कोरोना वायरस के संक्रमण के फैलने की शुरुआत हुई, तबसे महाराष्ट्र संक्रमण के खिलाफ लड़ी जा रही लड़ाई का केंद्र रहा है. अभी भी और राज्यों के मुकाबले संक्रमण के सबसे ज्यादा मामले महाराष्ट्र में ही हैं. इस चुनौती से लड़ने की पूरी कोशिश में लगी महाराष्ट्र सरकार धीरे धीरे एक संवैधानिक संकट की तरफ भी बढ़ रही थी. उस संकट का समाधान तो अब खोज लिया गया है, लेकिन यह समाधान अब सत्तारूढ़ गठबंधन के मुख्य दल शिवसेना और उसके मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के लिए व्यक्तिगत चुनौती बन गया है.

नवंबर 2019 में जब उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी, उस समय वो ना राज्य की विधानसभा के सदस्य थे और ना विधान परिषद के. भारतीय संविधान के प्रावधानों के अनुसार उनके पास दोनों में से किसी भी एक सदन का सदस्य चुने जाने के लिए छह महीनों का समय था. वो अवधि 28 मई को समाप्त हो जाएगी और इसी बात को ध्यान में रखते हुए राज्य के मंत्री-परिषद ने नौ अप्रैल राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी को ठाकरे को विधान परिषद की सदस्यता के लिए मनोनीत करने की अनुशंसा की थी.

अमूमन राज्यपाल मंत्री-परिषद की अनुशंसा नजरअंदाज नहीं करते हैं. लेकिन कोश्यारी ने अभी तक इस अनुशंसा को स्वीकार नहीं किया है और इसी वजह से राज्य महज छह महीनों में एक बार फिर एक संवैधानिक संकट की तरफ बढ़ता नजर आ रहा था. अगर कोश्यारी ठाकरे को सदस्यता के लिए मनोनीत नहीं करते तो वो विधायिका के सदस्य नहीं बन पाते और 28 मई तक उन्हें मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे देना पड़ता.

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तस्वीर: AFP

विधान परिषद में चुनाव के जरिए भरी जाने वाली भी नौ सीटें रिक्त हैं लेकिन महामारी की वजह से चुनाव आयोग ने देश में सभी चुनाव स्थगित किए हुए हैं. इसलिए शिवसेना और पूरे सत्तारूढ़ गठबंधन की सारी उम्मीदें राज्यपाल द्वारा मनोनीत किए जाने वाले तरीके पर ही टिकी हुई थीं. लेकिन मंत्री-परिषद द्वारा दो बार अनुशंसा भेजे जाने के बावजूद राज्यपाल ने अनुशंसा पर अभी तक कोई निर्णय नहीं लिया था.

बताया जा रहा है कि इस स्थिति से परेशान हो कर गुरूवार 30 अप्रैल को ठाकरे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बात की और उसके बाद राज्यपाल कोश्यारी ने एक महत्वपूर्ण कदम उठाया. राज्यपाल ने ठाकरे का नाम सदस्यता के लिए मनोनीत तो नहीं किया लेकिन चुनाव आयोग से विधान परिषद की नौ रिक्त सीटों पर जल्द से जल्द चुनाव कराने का अनुरोध किया. राज्यपाल ने चिट्ठी में चुनाव आयोग को लिखा है कि ये चुनाव राज्य में अनिश्चितता का अंत करने के लिए जरूरी हैं क्योंकि मुख्यमंत्री का 27 मई से पहले राज्य की विधायिका का सदस्य बनना जरूरी है.

राज्यपाल ने चिट्ठी में यह भी लिखा है कि चूंकि केंद्र सरकार तालाबंदी में कई तरह की रियायतों की घोषणा कर चुकी है, ऐसे में दिशा-निर्देशों को पालन करते हुए चुनाव भी कराए जा सकते हैं.

चुनाव आयोग ने राज्यपाल के अनुरोध को स्वीकार कर लिया है कहा है कि चुनाव 27 मई से पहले करा लिए जाएंगे. लेकिन कुछ जानकारों की राय अलग है. राजनीतिक समीक्षक सुहास पल्शिकर का कहना है कि अगर चुनाव हो भी जाते हैं तो भी ठाकरे को बचाने के लिए पर्याप्त समय नहीं बचा है. लेकिन पल्शिकर का यह भी कहना है कि इस पूरे प्रकरण में राज्यपाल की भूमिका पर सवाल जरूर उठे हैं क्योंकि उनके द्वारा मंत्री-परिषद की अनुशंसा ना मानना संविधान का उल्लंघन है.

 

राज्यपाल कोश्यारी के आचरण पर पहले भी सवाल उठ चुके हैं जब नवंबर में उन्होंने संदिग्ध रूप से अचानक सुबह सुबह बीजेपी नेता देवेंद्र फडणवीस को मुख्यमंत्री-पद की शपथ दिला दी थी, जिसे बाद में अदालत ने निरस्त कर दिया था. फिल्हाल देखना ये है कि चुनावों में उद्धव ठाकरे की किस्मत का क्या फैसला होता है.

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