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समाज

पालघर: क्यों नहीं रुक रही हैं लिंचिंग

चारु कार्तिकेय
२२ अप्रैल २०२०

पालघर में हुई लिंचिंग ने एक बार फिर दिखा दिया है कि कानून व्यवस्था अभी तक अफवाह-तंत्र का पुख्ता इलाज नहीं ढूंढ पाई है. कई लोग इसे सांप्रदायिक रंग देने वालों की आलोचना कर रहें हैं.

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Indien - Protest gegen Hass und Mob Lynchen
तस्वीर: Imago/Hundustan Times

महाराष्ट्र के पालघर में तीन लोगों की भीड़ द्वारा पीट पीट कर हत्या की घटना ने एक बार फिर टेक्नोलॉजी के जरिए फैलने वाली अफवाहों के खतरे को उजागर कर दिया है. भारत इस खतरे से पिछले कुछ सालों से जूझ रहा है लेकिन कानून व्यवस्था अभी तक इसका पुख्ता इलाज नहीं ढूंढ पाई है. पालघर में हुआ वही जो पिछले साल जुलाई में कर्नाटक में एक 27 साल के सॉफ्टवेयर इंजीनियर के साथ हुआ था.

यह युवक और उसके साथी स्थानीय बच्चों को चॉकलेट दे रहे थे लेकिन अफवाहों की वजह से उन्हें बच्चा चुराने वाले समझ कर 2000 लोगों की भीड़ ने मार डाला. पिछले कुछ सालों में इस तरह की कम से कम 70 वारदातें हो चुकी हैं. पालघर में भी बीते कुछ दिनों से बच्चा चुराने वाले गिरोहों के सक्रिय होने की अफवाह फैली हुई थे और स्थानीय लोग इसे असली खतरा जान अति सक्रिय हो गए थे.

इन्ही अफवाहों की वजह से पिछले कुछ दिनों में उस इलाके में भीड़ द्वारा हमले की दो और घटनाएं हुईं जिनमें भीड़ के शिकार लोगों ने बड़ी मुश्किल से अपनी जान बचाई और पुलिसवाले उन्हें बचाने में घायल भी हुए. यह पुलिस की कमजोरी है कि दो घटनाएं हो जाने के बावजूद पुलिस तीसरी घटना नहीं रोक पाई और लोगों की जान नहीं बचा पाई.

कहां हुई चूक?

पुलिस से सवाल पूछा जाना चाहिए कि जब बाहरी लोगों पर घातक हमले की दो घटनाएं पहले ही हो चुकी थीं तो एक और घटना ना हो यह सुनिश्चित करने के लिए उसने पुख्ता इंतजाम क्यों नहीं किए थे. घटना के जो वीडियो सामने आए हैं उनमें पुलिस वाले हिंसक भीड़ के सामने एक तरह से हार मानते हुए नजर आ रहे हैं, जिसके बाद उनके सामने ही भीड़ तीनों व्यक्तियों को पीट पीटकर मार देती है.

Indien - Protest gegen Hass und Mob Lynchen
तस्वीर: Imago/Hundustan Times

मामले के बाद की गई कार्रवाई में पुलिस ने लगभग 100 व्यस्क लोगों और नौ नाबालिगों को गिरफ्तार किया है. व्यस्क 12 दिन की पुलिस हिरासत में हैं और नाबालिगों को एक बाल गृह में रखा गया है. घटना स्थल पर मौजूद पुलिसवालों को निलंबित कर दिया गया है और राज्य सरकार ने घोषणा की है कि पुलिस की भूमिका पर विस्तार से जांच होगी. चिंताजनक बात यह है कि इस मामले को सांप्रदायिक रंग दिया जा रहा है.

घटना का साम्प्रदायिकरण

राजनीतिक हिंदुत्व की विचारधारा फैलाने वाले लोग आरोप लगा रहे हैं कि मारे जाने वाले हिन्दू साधू थे और मारने वाले मुस्लिम. बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता नलिन कोहली ने भी यह बात डीडब्ल्यू टीवी से कही. लेकिन महाराष्ट्र सरकार स्पष्ट तौर पर यह कह चुकी है कि हिरासत में लिए गए हमलावरों में से एक भी मुस्लिम नहीं है. पालघर आदिवासियों का इलाका है और जिस गांव में यह घटना हुई वहां की आबादी में 99 प्रतिशत लोग अनुसूचित जनजातियों के हैं. साक्षरता मात्र 30 प्रतिशत है.

स्पष्ट है कि कम पढ़े लिखे ग्रामीण अफवाहों में गहरा विश्वास कर बैठे और उसी के आधार पर इस वारदात को अंजाम दे दिया. लेकिन इस घटना ने एक बार फिर वही पुराना प्रश्न पुलिस, प्रशासन और समाज के सामने ला खड़ा किया है कि आखिरकार व्हॉट्सऐप और अन्य तकनीकी सेवाओं के जरिए अफवाह फैलाने के तंत्र का मुकाबला कैसे किया जाए.

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