कोरोना वायरस से बचने के लिए दो मीटर की दूरी पर्याप्त है?
११ अप्रैल २०२०इस नई स्टडी में कोविड-19 के मरीजों वाले अस्पताल के वार्डों से लिए गए हवा के सैंपलों का परीक्षण किया गया. चीन के शोधकर्ताओं ने यह स्टडी की और इसके शुरूआती नतीजों को शुक्रवार को अमेरिका के सेंटर्स फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के इमर्जिंग इन्फेक्शंस डिजीजेज जर्नल में छापा गया. इन नतीजों से बीमारी का प्रसार कैसे होता है इस सवाल पर नई रोशनी पड़ेगी. अध्ययन करने वाले वैज्ञानिकों ने खुद भी चेतावनी दी है कि इतनी दूरी पर वायरस की जो छोटी मात्राएं उन्हें मिली हैं, जरूरी नहीं कि वे संक्रामक हों.
शोधकर्ताओं का नेतृत्व बीजिंग के अकैडेमी ऑफ मिलिटरी मेडिकल साइंसेज की एक टीम ने किया. उन्होंने वूहान के हुओशेनशान अस्पताल के एक सामान्य कोविड-19 वार्ड और एक आईसीयू से लिए गए सतह के और हवा के सैंपलों की जांच की. इन वार्डों में 19 फरवरी से लेकर दो मार्च तक कुल 24 मरीज रहे थे. शोधकर्ताओं ने पाया कि वायरस वार्डों की जमीन पर सबसे भारी मात्रा में केंद्रित था. ऐसा शायद इसलिए हुआ होगा क्योंकि ग्रेविटी और हवा के फ्लो की वजह से वायरस की ज्यादातर बूंदें जमीन पर आ गई होंगी.
ऐसी सतहें जिन्हें बार बार छुआ जाता हो, जैसे कंप्यूटर के माउस, कूड़ेदान, बिस्तर की रेलें और दरवाजों के नॉब, उन पर भी ऊंची मात्रा में वायरस मिला. टीम ने लिखा कि इसके अलावा, "आईसीयू के मेडिकल स्टाफ के जूतों के सोल से लिए गए सैंपलों में आधे से ज्यादा पॉजिटिव निकले. इसका मतलब है कि ऐसा हो सकता है कि मेडिकल स्टाफ के जूतों के सोल की वजह से भी संक्रमण फैलता हो."
टीम ने एयरोसोल ट्रांसमिशन की भी पड़ताल की - यानी जब वायरस की बूंदें इतनी महीन होती हैं कि वे हवा में लटक जाती हैं और घंटों लटकी रहती हैं. टीम ने पाया कि वायरस लिए हुए ये एयरोसोल अधिकतर मरीजों के पास और उनसे प्रवाह की दिशा में 13 फुट तक केंद्रित थे. प्रवाह की विपरीत दिशा में ये आठ फुट तक उस से छोटी मात्राओं में मौजूद थे.
अच्छी बात यह है कि अस्पताल के स्टाफ के किसी भी सदस्य को संक्रमण नहीं हुआ था. इससे यह संकेत मिलता है कि, "उचित सावधानी बरतने से संक्रमण से प्रभावशाली रूप से बचा जा सकता है." शोधकर्ताओं ने ऐसी सलाह भी दी जो परंपरागत दिशा-निर्देशों के खिलाफ जाती है. जैसे, उनका कहना है, "हमारे नतीजे यह संकेत देते हैं कि जिन लोगों में कोविड-19 के संक्रमण का संदेह हो उन्हें उनके घर पर अलग थलग रखना शायद नियंत्रण के लिए एक अच्छी रणनीति ना हो", पर्यावरण में काफी मात्रा में संक्रमण के फैले होने की वजह से.
कोरोना वायरस का एयरोसोल बन जाना वैज्ञानिकों के लिए एक विवादास्पद विषय है क्योंकि एकदम महीन कणों में पाई जाने वाली बेहद कम मात्राओं में बीमारी कितनी संक्रामक है यह साफ नहीं है. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने तो अभी तक इस जोखिम को ज्यादा महत्व नहीं दिया है. अमेरिका में स्वास्थ्य अधिकारियों ने थोड़ी और सतर्कता भरी राह पकड़ी है और लोगों को घर से बाहर निकलने पर हमेशा अपने चेहरों को ढंकने को कहा है, ताकि वायरस को सामान्य सांस लेने और बोलने के जरिए फैलने की संभावना से रोका जा सके.
सीके/आईबी (एएफपी)
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