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यूरोप में मौसम गर्म होने पर बिगड़ सकता है कोरोना का प्रकोप

११ अप्रैल २०२०

अब तक कहा जा रहा था कि अप्रैल में जब तापमान बढ़ेगा तब कोरोना वायरस खत्म हो सकता है लेकिन अब जानकार मान रहे हैं कि जैसे जैसे तापमान बढ़ता जाएगा, मुश्किलें और भी बढ़ जाएंगी. जानिए इसका क्या कारण है.

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Symbolbild | Deutschland | Sommer | Hitzewelle
तस्वीर: imago images/R. Traut

नीला आसमान, हरे भरे बाग और रंग बिरंगे फूल. पूरे यूरोप में इन दिनों वसंत किसी सुंदर सपने जैसा दिख रहा है. लेकिन किसान इस खिली हुई धूप से खुश नजर नहीं आ रहे हैं. उन्हें डर है कि अगर आने वाले दिनों में भी इसी तरह धूप निकलती रही और बरसात नहीं हुई तो उनकी फसलों को भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है. जानकारों का मानना है कि निकट भविष्य में यूरोप के खेतों पर बदलते मौसम की भारी मार पड़ने वाली है.

फिलहाल किसान आने वाले संकट के बारे में कम और मौजूदा संकट के बारे में ज्यादा सोच रहे हैं. जिस तरह से भारत में यूपी, बिहार इत्यादि राज्यों के दिहाड़ी मजदूर पंजाब और अन्य राज्यों के खेतों में काम करने के लिए जाते हैं, उसी तरह पश्चिमी यूरोप के कई देशों में पूर्वी यूरोप से मजदूर आते हैं. लेकिन लॉकडाउन के चलते यूरोप में भी लेबर की कमी देखी जा रही है. अधिकतर देशों ने या तो अपनी सीमाएं बंद कर दी हैं या ट्रैवल बैन लगा दिए हैं. क्वॉरंटीन से जुड़ी इस तरह की कहानियां इस वक्त सुर्खियां बना रही हैं. ऐसे में पर्यावरण से जुड़े मुद्दों पर लोगों का बहुत ध्यान नहीं जा रहा है जैसे कि ऑस्ट्रेलिया और ब्राजील में लगी भयानक जंगल की आग की ओर गया था.

खत्म नहीं हुआ है जलवायु परिवर्तन

जर्मनी के मौसम विभाग डीडब्ल्यूडी के आंद्रेआस बेकर का कहना है, "जनवरी काफी गर्म था. ऐसा कोई प्रमाण नहीं है जो दर्शाता हो कि जलवायु परिवर्तन थम गया है या धीमा हो गया है." उनका कहना है कि सामान्य की तुलना में जनवरी और मार्च काफी सूखे थे और फरवरी काफी गीला. इस दौरान जर्मनी की सबसे बड़ी नदी राइन में पानी का स्तर छह मीटर यानी बीस फीट अधिक था. हालांकि अब यह स्तर एक बार फिर गिरने लगा है.

बेकर का कहना है कि फरवरी में हुई खूब बारिश से यह फायदा हुआ कि पिछले दो सालों में पड़ी भीषण गर्मी के कारण भूजल को जो नुकसान हुआ था उसकी कुछ भरपाई हो सकी. पिछले दो सालों में यूरोप का अधिकतम तापमान 40 डिग्री सेल्सियस के पार जाता रहा है जो यूरोप के लिए असामान्य है. बेकर बताते हैं कि पेड़ों पर इसका काफी बुरा असर पड़ा है. पौधे तो जमीन के सिर्फ 20-25 सेंटीमीटर नीचे से ही पानी खींचते हैं लेकिन पेड़ों की जड़ें बहुत गहरी होती हैं और उन्हें काफी नीचे से पानी खींचना होता है. भीषण गर्मी के चलते उस स्तर पर पानी ना के बराबर हो गया था. बेकर का कहना है कि अब हालात एक बार फिर बिगड़ेंगे क्योंकि मार्च अत्यंत सूखा महीना था. जर्मनी में करीब पचास फीसदी कम बरसात दर्ज की गई. मौसमविज्ञानी इसे लगभग सूखे की स्थिति जैसा बताते हैं.

लाइपत्सिष के हेल्मोल्त्स सेंटर फॉर एनवायरनमेंटल रिसर्च के आंद्रेआस मार्क्स का कहना है की जर्मनी की ही तरह पिछले दो-तीन साल पोलैंड, यूक्रेन, बेलारूस, रूस और रोमानिया के लिए भी काफी बुरे थे. वे बताते हैं कि यूरोप के लिए बिना बरसात के तीन हफ्ते सामान्य हैं. लेकिन उत्तरी ध्रुव से जिस तरह की हवाएं अब आ रही हैं, वह सामान्य नहीं हैं. मार्क्स कहते हैं, "जलवायु परिवर्तन के कारण उत्तरी ध्रुव भूमध्यरेखा की तुलना में ज्यादा तेज दर से गर्म हो रहा है. इस कारण वहां से जेट स्ट्रीम उत्तर से दक्षिण दिशा में बढ़ रही है." यही वजह है कि जेट स्ट्रीम अब पहले की तरह नहीं चल रहे हैं और जल्दी जल्दी बरसात नहीं हो रही है. 2018 में जर्मनी ने काफी लंबे सूखे वक्त का अनुभव किया था.

कैसी होगी इस साल की गर्मी?

अकसर एक से दो हफ्ते तक के मौसम का अनुमान लगाया जाता है. लेकिन यह भी हमेशा सटीक नहीं होता. इसलिए मौसमविज्ञानी यूरोप की गर्मियों की भविष्यवाणी करने से बच रहे हैं. बेकर और मार्क्स दोनों का कहना है कि यूरोप की भौगोलिक स्थिति के कारण यहां के मौसम की भविष्यवाणी अन्य जगहों की तुलना में मुश्किल है. ऐसा इसलिए क्योंकि यहां पहाड़ भी हैं और समुद्र भी. इसकी तुलना में ऑस्ट्रेलिया समतल है और चारों तरफ से पानी से घिरा है. ऐसे में वहां के मौसम का अनुमान लगाना ज्यादा आसान है. लेकिन इतना जरूर कहा जा सकता है कि भले ही यूरोप हो या ऑस्ट्रेलिया इस साल गर्मी सब जगह औसत से ज्यादा होगी. मार्क्स का कहना है कि ना केवल तापमान ज्यादा होगा, बल्कि ये गर्मियां अधिक सूखी भी होंगी.

जर्मनी के मौसम के बारे में मार्क्स कहते हैं, "तकनीकी रूप से गर्म दिन उन्हें कहते हैं जब तापमान 30 डिग्री के पार चला जाए. लाइपत्सिष में अमूमन साल में इस तरह के सात या आठ दिन होते हैं. लेकिन 2018 में ऐसे 36 दिन थे और 2019 में 29. इसका मतलब है कि हीट वेव अब तीन से चार गुना ज्यादा वक्त तक रहती है." आम लोगों पर तो इसका असर पड़ता ही है लेकिन सबसे बुरा हाल किसानों का होता है.

अगर ऐसा ही रहा तो यूरोप में लोगों को ना केवल कोरोना वायरस के चलते पाबंदियों का सामना करना पड़ेगा, बल्कि हीट वेव भी उनकी जिंदगी में बदलाव लाएगी. तेज गर्मी के कारण लोगों के लिए मास्क लगाना भी मुश्किल हो जाएगा. और बड़े बुजुर्गों को कोरोना और गर्मी दोनों से खुद को बचा कर रखना होगा. सूखी गर्मी के चलते हर साल जंगल में आग की घटनाएं भी सामने आती रही हैं. अगर इस साल भी ऐसा हुआ तो आग के धुएं से हवा खराब होगी और जिन लोगों के फेफड़ें वायरस के चलते कमजोर पड़ चुके होंगे, उनके लिए दिक्कतें और बढ़ जाएंगी.

रिपोर्ट: रोमान गोंचारेंको/आईबी

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