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कोरोना ने बदला चुनाव प्रचार का तौर-तरीका

मनीष कुमार, पटना
८ जून २०२०

कोरोना के प्रकोप से आम चुनाव की व्यवस्था भी अछूती नहीं रही. प्रचार के लिए होने वाली चुनावी रैलियों का स्वरुप बदल रहा है. रैलियां तक वर्चुअल हो रही हैं. कोविड प्रोटोकॉल के कारण पार्टियां वर्चुअल प्लेटफॉर्म पर आ गई हैं.

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Indien Bahir | Virtueller Wahlkampf und Proteste
तस्वीर: DW/M. Kumar

भारतीय जनता पार्टी ने जब वर्चुअल रैली के जरिए बिहार में नवंबर-दिसंबर में होने वाले विधानसभा चुनाव का शंखनाद किया तो ये भारत के चुनावी इतिहास में एक नए युग की शुरुआत थी. न धूल उड़ी, न ही ढोल-नगाड़े का शोर सुनाई दिया, न ही गाड़ियों का काफिला दिखा और न ही लाउडस्पीकर की कानफोड़ू आवाज सुनाई दी लेकिन रैली हो गई. बीजेपी ने लाखों लोगों से कनेक्ट होकर अपनी बात कह दी. जरा याद कीजिए लालू की तेल पिलावन रैली हो या फिर नीतीश कुमार की अधिकार रैली, जनजीवन अस्त-व्यस्त हो जाता था. चारों तरफ चिल्लपों और आपाधापी, चंदा वसूली व दोहन का आरोप और फिर रैली के बाद भीड़ के दावे-प्रतिदावे.

भारत में रैलियों की तैयारी महीनों पहले से होने लगती थीं. कार्यकर्ता सक्रिय हो जाते. अधिक से अधिक लोगों को रैली में लाने के लिए तरह-तरह के जुगत किए जाते थे और जब लोग ले आए जाते थे तो फिर उन्हें ठहराने और खिलाने-पिलाने की व्यवस्था करनी होती थी. लोगों के लिए रात में नाच-गाने का कार्यक्रम चलता था. कोरोना ने सबकुछ खत्म कर दिया. वर्चुअल के दौर में अब लिंक खोलिए और सीधे जुड़ जाइए. नेताओं को भी एक ही दिन कई जनसभाओं को संबोधित करने के लिए भाग-दौड़ की कोई चिंता नहीं. वाकई, बहुत कुछ बदल गया.

Indien Bahir | Virtueller Wahlkampf und Proteste
कार्यकर्ताओं के साथ बीजेपी सांसद रामकृपाल यादवतस्वीर: DW/M. Kumar

पार्टियों ने महसूस कर ली थी बदलते परिदृश्य की आहट

बिहार में नवंबर-दिसंबर माह में चुनाव होना है. निर्वाचन आयोग ने भी तैयारियां तेज कर दी हैं. कोरोना संकट के कारण पार्टियों ने बदलते परिदृश्य की आहट महसूस कर ली थी. इसलिए बिहार में भाजपा की सहयोगी व नेशनल डेमोक्रेटिक एलायंस (एनडीए) के महत्वपूर्ण घटक जनता दल यूनाइटेड (जदयू) ने भी संगठन मजबूत करने की तैयारी पार्टी के अंदर शुरू कर दी थी. जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष व बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार दो माह के दौरान कोरोना काल में ही पार्टी के प्रखंड व जिला अध्यक्षों के साथ बीस से ज्यादा वर्चुअल मीटिंग कर चुके हैं. इधर बीजेपी नेता अमित शाह ने रैली की उधर नीतीश कुमार ने अगले छह दिनों तक चलने वाली वर्चुअल मीटिंग का सिलसिला शुरू कर दिया. नीतीश कुमार ने जदयू के बूथ स्तर तक के पदाधिकारियों को लोगों को पंद्रह साल के दौरान सरकार की उपलब्धियों को बताने का मंत्र दिया. नीतीश कुमार के बारे में कहा जाता है कि वे कार्यकर्ताओं से सीधे कनेक्ट करते हैं लेकिन कोविड प्रोटोकॉल के कारण अब यह संभव नहीं रह गया. इसलिए मुख्यमंत्री वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए बूथस्तर तक के नेता-कार्यकर्ता से जुड़े हैं.

एनडीए में शामिल एक और पार्टी लोक जनशक्ति पार्टी भी वर्चुअल प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल कर लगातार बैठकें कर रही है. केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान के बेटे व लोजपा प्रमुख चिराग पासवान भी अपनी पार्टी के लोगों से ऑनलाइन के जरिए जुड़े और चुनाव की तैयारियों पर चर्चा की. चिराग पहले से ही लोगों से फीडबैक ले रहे हैं और उसके आधार पर नीतीश सरकार को नसीहत देते रहे हैं. बिहार में विपक्ष की भूमिका निभा रहे महागठबंधन के मुख्य घटक राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के नेता व लालू प्रसाद के पुत्र तेजस्वी यादव भी कोरोना संकट के दौरान प्रवासियों को लेकर सोशल मीडिया पर काफी सक्रिय रहे हैं. पिछले दिनों वे चर्चा में रहे प्रवासियों से ऑनलाइन जुड़कर उनके प्रति अपनी हमदर्दी जताने से नहीं चूक रहे.

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बीजेपी रैली में सुशील मोदी और दूसरे प्रांतीय नेतातस्वीर: DW/M. Kumar

बड़े-बड़े कटआउट्स करा रहे थे चुनावी रैली का अहसास

राजधानी पटना के वीरचंद पटेल पथ स्थित भाजपा कार्यालय का नजारा रविवार को बदला-बदला था. शाह की वर्चुअल रैली के लिए पार्टी के बड़े नेताओं के कटआउट्स चारों ओर लगाए गए थे. कार्यालय परिसर के बाहरी हिस्से से लेकर पूर्वी हिस्से में बनाए गए अटल बिहारी वाजपेयी सभागार के बाहर तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, भाजपा अध्यक्ष जयप्रकाश नड्डा, राष्ट्रीय महामंत्री व बिहार प्रभारी भूपेंद्र यादव, उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी एवं बिहार भाजपा के अध्यक्ष डॉ. संजय जायसवाल के बड़े-बड़े कटआउट्स मानो, किसी चुनावी सभा स्थल का अहसास करा रहे थे.

भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष व केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने ‘बिहार जनसंवाद' के नाम से आयोजित वर्चुअल रैली में विपक्षी दलों पर जमकर निशाना साधा. उन्होंने इसे चुनावी रैली मानने से इनकार करते हुए कोरोना संकट के काल में लोगों से जुड़ने की कोशिश और उनका मनोबल बढ़ाने का प्रयास करार दिया और कहा थाली बजाकर विपक्ष ने इसमें भी राजनीति ढूंढ ली. बात तो उन्होंने कांग्रेस की भी की लेकिन निशाने पर मुख्यत: राजद ही रहा. उन्होंने बिहार में राजद के राज से लेकर पार्टी के चुनाव चिह्न लालटेन तक पर तंज कसा और कहा, "यह लालूवाद बनाम विकासवाद की लड़ाई है, यह प्रगति की लड़ाई है." शाह ने मोदी सरकार के धारा 370 समाप्त करने, तीन तलाक खत्म करने व अयोध्या विवाद सुलझाने की भी चर्चा की.

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राबरी देवी और दोनों राजनीतिज्ञ बेटेतस्वीर: DW/M. Kumar

राजद ने थाली बजा किया विरोध तो कांग्रेस ने कहा भद्दा प्रदर्शन

अमित शाह के संबोधन के पहले रविवार को प्रदेश भर में राजद ने अपने को गरीब-गुरबा की पार्टी साबित करने के लिए एकबार फिर अपने ही अंदाज में भाजपा की वर्चुअल रैली का विरोध किया. पूरी पार्टी ने राज्यभर में थाली पीटकर केंद्र व राज्य सरकार के खिलाफ आक्रोश एवं प्रवासियों के प्रति हमदर्दी का इजहार किया. पटना में लालू प्रसाद की पत्नी व बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी ने बेटे तेजप्रताप व तेजस्वी के साथ थाली बजाई तथा भाजपा-जदयू पर गरीबों की मौत का जश्न मनाने का आरोप लगाया. प्रवासी कामगारों के समर्थन में राजद ने इसे मजदूर अधिकार दिवस का नाम दिया. बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव कहते हैं, "भाजपा कामगारों को दूसरे दर्जे का नागरिक मान रही है. वह अकेली ऐसी पार्टी है, जो मजदूरों की मौत का जश्न मना रही है. केंद्र एवं राज्य सरकार को लोगों को रोजगार देना चाहिए था, लेकिन दे रहे हैं रैली. भाजपा-जदयू को सिर्फ सत्ता की भूख है, गरीबों से कोई मतलब नहीं."

Wanderarbeiter in Quarantäne in Uttar Pradesh un Bihar in Indien
प्रवासी मजदूरों का मुद्दा होगा केंद्र मेंतस्वीर: DW/S. Mishra

कांग्रेस के विधान पार्षद प्रेमचंद्र मिश्रा ने अमित शाह की वर्चुअल रैली को भद्दा प्रदर्शन बताया. वे कहते हैं, "शाह की रैली में एलईडी स्क्रीन पर किया गया खर्च कोरोना काल में परेशान गरीबों- मजदूरों को चिढ़ाने जैसा है. उन्हें बताना चाहिए कि प्रवासी श्रमिकों को बिहार लाने में भाजपा और जदयू ने आनाकानी क्यों की?" वहीं राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा) के अध्यक्ष व पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा कहते हैं, "अमित शाह जी के भाषण में गरीबों-किसानों, छात्रों-नौजवानों, बेरोजगारों, मजदूरों-कामगारों एवं बुजुर्गों के लिए कुछ भी नहीं था." हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (से) के राष्ट्रीय अध्यक्ष व बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी का कहना है, "क्या शाह की रैली से किसी गरीब या श्रमिक का भला हो सकता है? शाह की रैली श्रमिकों-गरीबों के घाव पर नमक छिड़कने जैसी है."

लालू विरोध व प्रवासियों के इर्द-गिर्द ही घूमेगी राजनीति

बीजेपी के वर्चुअल रैली ने एक ओर बिहार में सक्रिय पार्टियों के सदस्यता ढांचे और तकनीकी क्षमताओं में अंतर को दिखाया है तो ये भी साफ कर दिया है कि पार्टियां फिलहाल अपने सदस्यों और समर्थकों को साधने में जुटी हैं. समर्थकों के बल पर चलने वाली पार्टियों ने लंबे समय तक पार्टी के अंदर के लोकतांत्रिक ढांचे को नजरअंदाज किया है. बीजेपी ने अपने सदस्यता अभियानों और उन्हें सक्रिय रखने के तकनीकों से स्थिति बदल दी है. प्रांत की छोटी पार्टियों के लिए जिनके पास संसाधनों की भारी कमी है चुनाव प्रचार करना और अपने समर्थकों पर पहुंचना आसान नहीं होगा.

वर्चुअल रैली के जरिए अमित शाह ने ये भी साफ कर दिया है कि चुनाव प्रचार के केंद्र में लालू विरोध व प्रवासियों का मुद्दा ही अहम रहेगा. लॉकडाउन के दौरान घर लौटे करीब तीस लाख प्रवासी चुनाव के दौर में महत्वपूर्ण बने रहेंगे. वे कई विधानसभा क्षेत्रों में पार्टियों का चुनावी गणित गड़बड़ा सकते हैं. उनके प्रति निकटता दर्शाने की होड़ में सभी राजनीतिक दलों का शामिल होना लाजिमी है. लालू विरोध के जरिए सत्ता में आई एनडीए तो राजद के कारनामे गिनाती ही रहेगी लेकिन आपसी खींचतान के बीच महागठबंधन के घटक दल सत्ता पक्ष को किस हद तक चुनौती दे सकेंगे, यह तो चुनाव के बाद ही पता चलेगा. फिलहाल खुद को हमदर्द बताने और आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला बदस्तूर जारी रहेगा.

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