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जिंदगी पर भारी पड़ रही श्रमिकों की बेबसी

मनीष कुमार, पटना
२७ मई २०२०

मुजफ्फरपुर में एक मृत महिला और उसके छोटे बच्चे का वीडियो वायरल होने के बाद मजदूरों के संकट का आयाम सामने आ रहा है. जैसे तैसे ट्रेन में सवार हुए कई मजदूर और उनके परिजन घर पहुंचने से पहले ही मर गए हैं.

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Kaschmirkrise in Indien
तस्वीर: picture-alliance/AP/C. Anand

कोरोना संकट के दौरान लॉकडाउन की अवधि में प्रवासी श्रमिकों का अपने घरों को लौटना बदस्तूर जारी है. श्रमिक स्पेशल ट्रेन चलने के बाद इनके पैदल आने की खबरें तो कम आ रहीं हैं लेकिन इन प्रवासियों की मुश्किलें अभी कम नहीं हुईं हैं. श्रमिक स्पेशल ट्रेनें काफी विलंब से तो चल ही रहीं, अपनी राह से भी भटक जा रही हैं. घर लौटने की बेकरारी अब मजदूरों की जिंदगी पर भी भारी पड़ने लगी है.

लॉकडाउन 4 में रेल मंत्रालय ने इन श्रमिकों को घर पहुंचाने के लिए कई ट्रेनें चलाईं. रेलवे की मानें तो दो मई से 26 मई तक ईस्ट सेंट्रल रेलवे (ईसीआर) करीब साढ़े तेरह लाख लोगों को 1058 ट्रेनों से बिहार वापस ला चुकी है. लोग अपने गांव-घर भी पहुंच रहे लेकिन इस बीच कुछ विचलित करने वालीं खबरें भी आ रहीं हैं. हाल के हफ्ते में ट्रेन से आनेवाले कई श्रमिक महिलाओं-पुरुषों व बच्चों की मौत हुई है. इनके परिजन मौत का कारण ट्रेन में भोजन-पानी व इलाज सुविधा का नहीं मिलना और  भीषण गर्मी को बता रहे हैं.
सबसे हृदयविदारक घटना मुजफ्फरपुर में देखने को मिली, जहां एक मासूम बच्चे को अपनी मां के शव से लिपटते देखा गया. अलबिना नाम की यह महिला श्रमिक स्पेशल ट्रेन से गुजरात से आई थी और उसे कटिहार जिले में अपने गांव जाना था. मुजफ्फरपुर स्टेशन पहुंचने के करीब एक-डेढ़ घंटे पहले उसकी मौत हो गई. उसके साथ आ रहे गांव के ही एक व्यक्ति ने बताया कि महिला भली-चंगी थी लेकिन भीषण गर्मी की वजह से उसकी हालत बिगड़ी और फिर मौत हो गई. ट्रेन में उसकी इलाज के लिए सुनने वाला कोई नहीं था.

Indien Wanderarbeiter verlassen Neu Delhi wegen der Corona Pandemie
तस्वीर: Reuters/A. Abidi

इसी तरह एक परिवार के ढाई साल के बच्चे की भी मौत हो गई. बेतिया निवासी बच्चे के पिता मकसूद आलम का कहना था कि वह बीते रविवार को दिल्ली से चला था. भोजन-पानी नहीं मिलने व भीषण गर्मी से ट्रेन में ही उसके बच्चे की तबीयत खराब हो गई. मुजफ्फरपुर स्टेशन उतरते ही स्थिति बिगड़ने लगी. मकसूद का कहना था कि उसने स्टेशन पर मौजूद जिला प्रशासन के लोगों से मदद की गुहार लगाई लेकिन उसकी बात किसी ने नहीं सुनी. वह चार घंटे तक भटकता रहा और अंतत: उसका बच्चा स्टेशन पर ही मर गया.

बेगूसराय के बरौनी रेलवे स्टेशन पर भी इसी तरह भूख और गर्मी से काजी अनवर नाम के श्रमिक की मौत हो गई. वह 21 मई को मुंबई से चली श्रमिक स्पेशल पर सवार हुआ था. यह ट्रेन गुजरात, राजस्थान, दिल्ली, बनारस होते हुए पटना और फिर बरौनी पहुंची. इतने दिनों में उसके साथ का खाना-पानी खत्म हो गया था. उसके साथ सफर कर रहे उसके ही गांव के निवासी ने बताया कि खाने-पीने को कुछ मिल नहीं सका और भीषण गर्मी भी थी. काजी ने जैसे ही बरौनी में नाश्ता किया, उसके थोड़ी देर बाद उसकी मौत हो गई.

23 मई को गुजरात के वापी से चली एक श्रमिक ट्रेन 26 मई को भागलपुर पहुंची. इसमें सवार दरभंगा के लाल बाबू की ट्रेन के भागलपुर स्टेशन पहुंचने के पहले अभयपुर स्टेशन के पास ही मौत हो गई. लुधियाना से अररिया आ रही एक महिला की भी तबीयत बिगड़ने से ट्रेन में ही जान चली गई. इन घटनाओं को बेबस श्रमिकों-कामगारों का दुर्भाग्य कहें या रेलवे की लापरवाही किंतु इतना तो तय है कि इनके दर्द व इनकी परेशानी की किसी को चिंता नहीं है. जो ट्रेनें इन्हें लेकर आ रही हैं उनमें से कुछ रास्ता भटक जा रहीं हैं. पटना आने वाली ट्रेन गोरखपुर पहुंच जा रही है तो झारखंड जाने वाली ट्रेन छपरा. फिर अधिकतर मजदूरों को यह भी पता नहीं होता कि वे अपने घर जाने के लिए किस रूट की ट्रेन पकड़ें. घर पहुंचने की आपाधापी में भागलपुर के बांका जाने वाला प्रवासी बलिया जाने वाली ट्रेन में बैठ जाता है तो बांका जाने वाला कामगार दरभंगा की ट्रेन में.

Indien Wanderarbeiter verlassen Neu Delhi wegen der Corona Pandemie
तस्वीर: Reuters/A. Abidi

कुछ ऐसी ही वजह से जो प्रवासी सूरत से वैशाली के लिए निकला वह पांच दिन बाद भी अपने घर नहीं पहुंच सका. ट्रेन में ही वैशाली जिले के बेलवर गांव निवासी सरोज की मौत हो गई. उसके भाई कृष्णा ने बताया कि वे दोनों दो दिनों से भूखे थे. रास्ते में भी खाने-पीने को कुछ नहीं मिला. दरअसल रेलवे ने भी खाने-पीने का जहां भी इंतजाम किया है उनमें अधिकतर जगहों पर इन्हें बोगी के सामने रख दिया जाता है और यात्रियों को खुद खाना लेने को कहा जाता है. जाहिर है इसमें लूट मच जाती है और कुछ लोगों को कुछ भी नहीं मिल पाता है. फिर अंदर की भीड़ व भीषण गर्मी स्थिति बिगाड़ने को काफी होती है. तब जब श्रमिक स्पेशल कोई ट्रेन राह भटक कर किसी स्टेशन पर खड़ी होती है तो ये श्रमिक भूख मिटाने के लिए लूटपाट करने से भी बाज नहीं आते.

पाटलिपुत्र स्टेशन पर विगत मंगलवार को प्रवासियों ने पीने के पानी का बोतल ही लूट लिया. आखिर कोई भूख प्यास कब तक सहे. बेंगलुरू से पटना जंक्शन पहुंची ट्रेन के यात्रियों ने बताया कि जिस ट्रेन को मंगलवार की सुबह मुजफ्फरपुर पहुंच जाना चाहिए था वह 48 घंटे में पटना ही पहुंची. खाना और पानी नहीं मिलने से लोग बेहाल थे. महिला यात्री परवीन ने बताया, ट्रेन जहां-तहां रोक दी जा रही है. खाना खत्म हो चुका है. साथ में भूखे-प्यासे बच्चे हैं. पता नहीं, कैसे पहुंच पाएंगे. इसी ट्रेन से यात्रा कर रहे रवींद्र बताते हैं कि किसी स्टेशन पर जब ट्रेन रुकती है और लोग उतरकर भोजन-पानी के बारे में पूछते हैं तो पुलिस लाठी मारकर ट्रेन में बैठा देती है. उन्होंने कहा, "मानो जैसे हम कोरोना के मरीज हों. यह व्यवहार तो हमें रूला देता है."

रेलवे सूत्रों का कहना है कि यात्रियों की सुविधा के लिए रेल प्रशासन हरसंभव प्रयास कर रहा है. पूर्व मध्य रेलवे के मुख्य जनसंपर्क अधिकारी का कहना है कि सभी श्रमिक स्पेशल ट्रेनें नियत समय पर पहुंच रही हैं. रेलमार्ग में व्यस्तता के कारण कुछ ट्रेनों के रूट में परिवर्तन किया गया है. इसी वजह से समय थोड़ा अधिक लग रहा है. लेकिन यह भी उतना ही कटु सत्य है कि प्रवासियों की संख्या को देखते हुए रेलवे के प्रयास नाकाफी हैं. जानकारों का तो यहां तक कहना है कि राज्य सरकारें रेलवे को सहयोग नहीं कर रहीं हैं. महाराष्ट्र सरकार और रेल मंत्री पीयुष गोयल के बयानों से तो ऐसा ही लगता है.

यदि केंद्र और राज्य सरकारों के बीच समन्वय होता तो इन प्रवासियों को ट्रेन के अंदर व बाहर हर तरह की सुविधा मिल जाती. अब प्रवासियों की इन मौतों को लेकर राजनीति भी शुरू हो गई है. जाहिर है सबके अपने निहितार्थ हैं लेकिन उस मासूम की कौन सुध लेगा जो मृत मां के शरीर के ऊपर रखे चादर को हटाकर बार-बार जगाने की कोशिश कर रहा ताकि उसकी भूख मिट सके.

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