कम विकसित देशों का संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन
९ मई २०११सबसे कम विकसित देशों का यह चौथा संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन पांच दिनों तक चलेगा. इस वर्ग में वे देश आते हैं जहां प्रति व्यक्ति सालाना आमदनी 745 डॉलर से कम है. इनमें से 33 देश अफ्रीका में हैं, 14 एशिया में. हैती कैरिबियाई क्षेत्र में है. हर 10 साल पर संयुक्त राष्ट्र की ओर से यह सम्मेलन आयोजित किया जाता है. पहले दो सम्मेलन 1981 व 1990 में पैरिस में व तीसरा सम्मेलन 2001 में ब्रसेल्स में हुआ था.
करजई, अहमदीनेजाद और बान की मून
संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून इस्तांबुल के इस सम्मेलन की अध्यक्षता कर रहे हैं. यूरोपीय आयोग के अध्यक्ष जोसो मानुएल बार्रोसो, ईरान के राष्ट्रपति महमूद अहमदीनेजाद व अफगान राष्ट्रपति हामिद करजई इस सम्मेलन में भाग लेंगे.
इस्तांबुल में बान ने रविवार को करजई से बातचीत की. प्राप्त सूचनाओं के अनुसार अफगानिस्तान में निरंतर विकास की समस्याओं के अलावा मध्य पूर्व की स्थिति के बारे में बातचीत की गई. बार्रोसो के साथ मुलाकात के दौरान साइप्रस और बोस्निया की हालत के बारे में विशेष रूप से बातें की गईं. महासचिव बान ने नेपाल के प्रधानमंत्री झालानाथ खनल से बात करते हुए माओवादी विद्रोह के बाद शांति प्रक्रिया के बारे में सूचना प्राप्त की.
बाजार खोलने की मांग
संयुक्त राष्ट्र की एक विज्ञप्ति में कहा गया है कि इस्तांबुल के इस सम्मेलन में पिछले 10 साल में विकास के क्षेत्र में प्राप्त नतीजों का मूल्यांकन किया जाएगा. भावी कार्यक्रम के तहत आर्थिक आत्मनिर्भरता, गरीबी उन्मूलन व रोजगार को लक्षित संरचनाओं के निर्माण पर विशेष जोर दिया जाएगा. संयुक्त राष्ट्र की ओर से खास कर मांग की जा रही है कि समृद्ध देश इन सबसे कम विकसित देशों के उत्पादों के लिये अपना बाजार खोलें.
यूरोपीय आयोग के अध्यक्ष बार्रोसो ने एक वक्तव्य में सबसे कम विकसित देशों के लिए यूरोपीय संघ की प्रतिबद्धता को रेखांकित किया है. उन्होंने कहा, "2010 में 15 अरब यूरो की मदद के साथ सबसे कम विकसित देशों के सबसे बड़े दाता के रूप में यूरोपीय संघ दूसरे साझीदारों से अपील करता है कि वे सकल राष्ट्रीय उत्पादन का 0.15 से 0.20 फीसदी तक इन देशों को मदद के रूप में देने का अपना वादा पूरा करें."
इस्तांबुल के सम्मेलन में सारी दुनिया में खाने पीने की चीजों की बढ़ती कीमतों पर भी विशेष रूप से चर्चा की जाएगी. खासकर सबसे कम विकसित देशों को इन बढ़ती कीमतों की मार सहनी पड़ रही है.
रिपोर्ट: एजेंसियां/उभ
संपादन: वी कुमार