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अब असम-अरुणाचल सीमा विवाद सुलझाने की पहल

प्रभाकर मणि तिवारी
१८ जुलाई २०२२

पूर्वोत्तर में आजादी के बाद से ही चले आ रहे विभिन्न राज्यों के साथ असम के सीमा विवाद को सुलझाने की ठोस पहल के तहत असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने अरुणाचल प्रदेश के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं.

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पहाड़ी इलाका होने की वजह से वास्तविक सीमा रेखा खींचने में मुश्किल होती है
पहाड़ी इलाका होने की वजह से वास्तविक सीमा रेखा खींचने में मुश्किल होती हैतस्वीर: Prabhakar Mani Tewari/DW

इससे पहले इसी साल असम और मेघालय सरकार ने भी आपसी सीमा विवाद को सुलझाने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे. असम और इलाके के चार राज्यों—मेघालय, मिजोरम, नागालैंड और अरुणाचल प्रदेश के बीच कई दशकों से जारी सीमा विवाद के कारण अक्सर हिंसा की घटनाएं होती रहती हैं. अब केंद्र सरकार की पहल पर उनको सुलझाने की दिशा में पहली बार ठोस प्रयास शुरू हुए हैं.

असम-अरुणाचल विवाद

अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू और असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने दोनों राज्यों के बीच दशकों पुराने सीमा विवाद के समाधान के लिए अरुणाचल के नामसाई में एक समझौते पर हस्ताक्षर किए. इसे नामसाई घोषणा पत्र कहा गया है. इसमें विवादित गांवों की तादाद 123 से घटा कर 86 करने पर सैद्धांतिक रूप से सहमति जताई गई है. नामसाई घोषणा के मुताबिक, सरमा और खांडू ने सहमति जताई कि 37 विवादित गांवों में से अरुणाचल की संवैधानिक सीमा के भीतर स्थित 28 गांव राज्य में ही रहेंगे. अरुणाचल ने जिन तीन गांवों से अपना दावा वापस ले लिया है वे असम में शामिल हो जाएंगे. अरुणाचल प्रदेश से असम की 804.1 किलोमीटर लंबी सीमा सटी है.

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खांडू बताते हैं, "दोनों राज्य अरुणाचल के 12 जिलों और उनसे सटे असम के जिलों के दायरे में 123 गांवों के साझा सत्यापन के लिए संबंधित राज्य सरकारों को सिफारिशें भेजने के लिए 12 क्षेत्रीय समितियों का गठन करेंगे. यह क्षेत्रीय समितियां 15 सितंबर से पहले आम सहमति वाले क्षेत्रों पर अपनी प्राथमिक रिपोर्ट पेश करेगी.”

पूर्वोत्तर के राज्यों में लंबे समय से सीमा विवाद बना हुआ है
पूर्वोत्तर के राज्यों में लंबे समय से सीमा विवाद बना हुआ हैतस्वीर: Prabhakar Mani Tewari/DW

नामसाई घोषणा पत्र में कहा गया है, "क्षेत्रीय समितियों के विचार-विमर्श की प्रक्रिया पूरी होने और और दोनों सरकारों के बीच समझौता होने के बाद इस समझौते का मसौदा मंजूरी के लिए केंद्र सरकार को भेजा जाएगा.”

असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा कहते हैं, "हमने विवादित गांवों को पहले के 123 के बजाय 86 तक सीमित करने का फैसला किया है. यह ऐतिहासिक है. दोनों राज्य सरकारों का लक्ष्य बहुत कम समय में पूरे सीमा विवाद को हल करना है.” उधर, अरुणाचल प्रदेश के सीएम पेमा खांडू ने अपने एक ट्वीट में कहा है, "नामसाई घोषणा बेहद महत्वपूर्ण और पूर्वोत्तर में स्थायी भाईचारे, शांति और समृद्धि की दिशा में एक ऐतिहासिक प्रगति है.”

खांडू कहते हैं, "असम और अरुणाचल प्रदेश के बीच सीमा विवाद सात दशक पुराना है. लेकिन अब हम इस साल के आखिर तक इस जटिल समस्या का समाधान करने के इच्छुक हैं.”

विवाद की जड़

दरअसल, इलाके में अलग राज्यों के गठन के समय सीमा का सही निर्धारण नहीं होना ही इस पूरे विवाद की जड़ है. प्रशासनिक सहूलियत के लिए असम से काट कर नए राज्यों के गठन का सिलसिला वर्ष 1962 के बाद शुरू हुआ था. तब सीमाओं का सही तरीके से निर्धारण नहीं किया गया था.

असम और अरुणाचल प्रदेश बीच सीमा पर सबसे पहले वर्ष 1992 में हिंसक झड़प हुई थी. उसी समय से दोनों पक्ष एक-दूसरे पर अवैध अतिक्रमण और हिंसा भड़काने के आरोप लगाते रहते हैं. असम और मेघालय सीमा पर भी अक्सर हिंसक झड़पों की खबरें आती रहती हैं.

बीते दिनों में राज्यों के बीच सीमा विवाद सुलझाने के लिए ठोस पहल हुई है
बीते दिनों में राज्यों के बीच सीमा विवाद सुलझाने के लिए ठोस पहल हुई हैतस्वीर: Prabhakar Mani Tewari/DW

नागालैंड के साथ असम की करीब 512 किलोमीटर लंबी सीमा है और दोनों राज्यों के बीच वर्ष 1965 के बाद से सीमा विवाद को लेकर हिंसक झड़पें होती रही हैं. वर्ष 1979 और वर्ष 1985 में हुई दो बड़ी हिंसक घटनाओं में कम-से-कम 100 लोगों की मौत हुई थी. इस विवाद की सुनवाई अब सुप्रीम कोर्ट में चल रही है. इसी तरह मेघालय और मिजोरम सीमा पर भी अक्सर हिंसक झड़पें होती रही हैं.

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राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि आजादी के बाद प्रशासनिक सहूलियत के लिए असम से काट कर बनाए गए अलग राज्यों की सीमाएं जनजातीय इलाकों और उनकी पहचान के साथ मेल नहीं खाती हैं. इस वजह से सीमावर्ती इलाकों में लगातार तनाव बना रहता है और अक्सर हिंसक झड़पें होती रहती हैं.

राजनीतिक विश्लेषक डॉ. शोभित कुमार भट्टाचार्य कहते हैं, इलाके की भौगोलिक स्थिति भी इस विवाद की एक प्रमुख वजह है. नदियों, पहाड़ और घने जंगल से घिरे होने के कारण कई इलाको में सीमा को भौतिक रूप से चिह्नित नहीं किया जा सका है.

वह बताते हैं कि वर्ष 1956 के सीमांकन ने इन विसंगतियों का समाधान नहीं किया. उसके बाद जब असम से काट कर नागालैंड (1963), मिजोरम, मेघालय, त्रिपुरा और मणिपुर (1972) और अरुणाचल प्रदेश (1987) को अलग राज्य का दर्जा दिया गया, तब भी इस पर ध्यान नहीं दिया गया था.