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पूर्वोत्तर में बढ़ते चीनी खतरे से निपटने की ठोस पहल

प्रभाकर मणि तिवारी
६ अप्रैल २०२२

चीन के साथ संबंधों में तनातनी को ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार ने अरुणाचल प्रदेश से लगी भारत-चीन सीमा पर आधारभूत ढांचे के विकास पर ध्यान केंद्रित किया है.

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भारत की म्यांमार सीमा के पास सड़क परियोजना
भारत की म्यांमार सीमा के पास सड़क परियोजनातस्वीर: Prabhakar Mani Tewari/DW

भारत सरकार ने राज्य के सीमावर्ती इलाकों में आधारभूत ढांचे को विकसित करने के लिए बीते साल के मुकाबले छह गुनी ज्यादा रकम आवंटित की है. अरुणाचल से लगी सीमा पर अपहरण और घुसपैठ के साथ चीनी सेना के अवैध अतिक्रमण और सीमा पार आधारभूत ढांचा मजबूत करने की चीनी पहल को ध्यान में रखते हुए सरकार के इस फैसले को बेहद अहम माना जा रहा  है. खासकर गलवान घाटी में हुई हिंसक झड़प के बाद चीन पूर्वोत्तर के सीमावर्ती इलाके में तेजी से  आधारभूत परियोजनाएं विकसित करने में जुटा है. चाहे बांध और हाइवे का निर्माण हो या फिर सीमा के करीब तक बुलेट ट्रेन चलाने का.

इलाके में बेरोजगारी को देखते हुए स्थानीय युवकों के चीनी सेना के हाथों अपहरण और चीनी सेना के लिए काम करने की बढ़ती घटनाओं को ध्यान में रखते हुए इलाके के राजनीतिज्ञ लंबे समय से आधारभूत ढांचा विकसित करने की मांग कर रहे थे. तमाम पहलुओं को ध्यान में रखते हुए अब सरकार ने इस मद में  249.12 करोड़ रुपये की रकम आवंटित की है जबकि बीते साल यह महज 42.87 करोड़ थी.

सरकार का बयान

केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने लोकसभा में बताया है कि वर्ष 2021-22 में 602.30 करोड़ रुपये बॉर्डर इंफ्रास्ट्रक्चर एंड मैनेजमेंट (बीआईएम) योजना के तहत अंतरराष्ट्रीय सीमा पर बुनियादी ढांचे में सुधार के लिए आवंटित किए गए हैं. जबकि 2020-21 में यह बजट 355.12 करोड़ रुपये था. उन्होंने एक प्रश्न के लिखित उत्तर में बताया कि वर्ष 2020-21 में पूर्वोत्तर में भारत-चीन सीमा के लिए बीआईएम के तहत 42.87 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे. लेकिन वर्ष 2021-22 में 249.12 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं. लद्दाख से अरुणाचल प्रदेश तक भारत और चीन के बीच 3,488 किलोमीटर लंबी वास्तविक नियंत्रण रेखा है. इसमें अरुणाचल प्रदेश के साथ 1,126 किलोमीटर लंबी सीमा शामिल है.

भारत की म्यांमार सीमा के पास पहाड़ी इलाकों में सड़क परियोजना
भारत की म्यांमार सीमा के पास पहाड़ी इलाकों में सड़क परियोजनातस्वीर: Prabhakar Mani Tewari/DW

भारत और चीन के बीच अप्रैल 2020 से लद्दाख में गतिरोध बना हुआ है. मंत्री ने बताया कि वर्ष 2020-21 में भारत-म्यांमार सीमा के लिए बीआईएम के तहत 17.38 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे जबकि वर्ष 2021-22 में इसके लिए 50 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे. उन्होंने कहा कि 2020-21 में भारत-बांग्लादेश सीमा के लिए बीआईएम के तहत 294.87 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे. वर्ष 2021-22 के लिए इस रकम को कुछ बढ़ा कर 303.18 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे.

बीआईएम योजना का मकसद पूर्वोत्तर राज्यों में आधारभूत ढांचे में सुधार करना है. उस इलाके की सीमा चीन, म्यांमार और बांग्लादेश से लगी हैं. गृह राज्य में मंत्री ने सदन में बताया कि सरकार ने अंतरराष्ट्रीय सीमाओं पर सुरक्षा मजबूत करने के लिए बहुआयामी रणनीति अपनाई है. इनमें सीमा सुरक्षा बल की तैनाती के अलावा सीमा पर गश्त बढ़ाना, कंटीले तारों की बाड़ लगाना, खुफिया नेटवर्क को मजबूत बनाना और आधुनिक उपकरणों की सहायता से पूरे इलाके पर निगाह रखना शामिल है.

पूर्वोत्तर में चीनी सक्रियता

गलवान घाटी में हुए संघर्ष के बाद से ही चीन ने पूर्वोत्तर में अरुणाचल प्रदेश से लगी सीमा पर अपनी गतिविधियां असामान्य रूप से बढ़ा दी हैं. बांध से लेकर हाईवे और रेलवे लाइन का निर्माण हो या फिर भारतीय सीमा के भीतर से पांच युवकों के अपहरण का मामला, चीनी सेना के भारतीय सीमा में घुसपैठ की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं. चीन ने सीमा से 20 किमी के दायरे में बड़े पैमाने पर निर्माण कार्य किया है. तिब्बत की राजधानी ल्हासा से करीब सीमा तक नई तेज गति की ट्रेन भी शुरू हो गई है. हाल में ऐसी खबरें भी सामने आई हैं कि उसने भारतीय सीमा में एक गांव तक बसा लिया है. सैटेलाइट तस्वीरों से इसकी पुष्टि हुई है.

कुछ महीने पहले ऐसी खबरें भी सामने आई थी कि चीनी सेना अरुणाचल के सीमावर्ती इलाकों में रहने वाले भारतीय युवाओं को भर्ती करने का प्रयास कर रहा है. उसके बाद मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने केंद्र से सीमावर्ती इलाकों में आधारभूत परियोजनाओं का काम तेज करने का अनुरोध किया था ताकि बेरोजगारी और कनेक्टिविटी जैसी समस्याओं पर अंकुश लगाया जा सके.

पड़ोसियों के लिए खतरा बनी चीन की बढ़ती ताकत

भारतीय युवाओं की भर्ती पर चिंता

कांग्रेस के पूर्व सांसद और फिलहाल पासीघाट के विधायक निनोंग ईरिंग ने दावा किया था कि चीन सरकार अपनी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) में अरुणाचल प्रदेश के सीमावर्ती इलाकों के युवकों की भी भर्ती करने का प्रयास कर रही है. साथ ही राज्य से सटे तिब्बत के इलाकों से भी भर्तियां की जा रही हैं. उन्होंने बीते साल संसद में भी यह मामला उठाया था. उनका कहना था, "पूर्वोत्तर में चीन की लगातार बढ़ती गतिविधियों पर अंकुश लगाने के लिए ठोस कदम उठाना जरूरी है. केंद्र सरकार को इस इलाके में प्राथमिकता के आधार पर आधारभूत ढांचे को मजबूत करना चाहिए.”

चीन वैसे तो पूरे अरुणाचल को दक्षिण तिब्बत का हिस्सा मानता है. लेकिन तवांग की सामरिक तौर पर खास अहमियत है. राजधानी ईटानगर से करीब 450 किलोमीटर दूर स्थित तवांग अरुणाचल प्रदेश का सबसे पश्चिमी जिला है. इसकी सीमा तिब्बत के साथ भूटान से भी लगी है. तवांग में तिब्बत की राजधानी ल्हासा के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा तिब्बती बौद्ध मठ है. तिब्बती बौद्ध केंद्र के इस आख़िरी सबसे बड़े केंद्र को चीन लंबे अरसे से नष्ट करना चाहता है. वर्ष 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान भी तवांग ही लड़ाई का केंद्र था. इस मठ की विरासत चीन और भारत के बीच विवाद का केंद्र रही है.

सामरिक विशेषज्ञ जीवन कुमार भुइयां कहते हैं,"लद्दाख में हुई हिंसक झड़प के बाद चीन पूर्वोत्तर सीमा पर अपनी सक्रियता लगातार बढ़ा रहा है. उसकी गतिविधियों पर करीबी निगाह रखते हुए उनकी काट की दिशा में ठोस रणनीति बनाना जरूरी है. आधारभूत ढांचे का विकास इस दिशा में एक सकारात्मक पहल साबित होगी.”