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रिकॉर्ड तेजी से पिघल रहे है स्विट्जरलैंड के ग्लेशियर

महिमा कपूर
२८ सितम्बर २०२३

स्विट्जरलैंड के ग्लेशियर अभूतपूर्व रफ्तार से पिघल रहे हैं. दो साल के भीतर स्विट्जरलैंड ने इतनी बर्फ खो दी, जितनी 1960 से 1990 के बीच तीस साल में पिघली.

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स्विट्जरलैड के कई ग्लेशियरों में अब बर्फ की पपड़ी सी दिखती है
तस्वीर: Fabrice Coffrini/AFP/Getty Images

मध्य यूरोप के ग्लेशियर इतनी तेजी से पहले कभी नहीं पिघले. जब से रिकॉर्ड दर्ज किए जा रहे हैं, तब से अब तक के डाटा की स्टडी करने के बाद यह जानकारी सामने आई है. स्विस एकेडमी ऑफ साइंसेज ने गुरुवार को इससे जुड़ी रिपोर्ट प्रकाशित की. रिपोर्ट एकेडमी की शाखा स्विस कमीशन फॉर क्रायोस्फेरिक ऑब्जर्वेशन (एससीसी) ने पब्लिश की है.

पिघल जाएंगे हिमालय के 75 फीसदी ग्लेशियर: रिपोर्ट

एससीसी की रिपोर्ट के मुताबिक बीते दो साल की तेज गर्मी के कारण स्विट्जरलैंड के ग्लेशियरों ने 10 फीसदी बर्फ गंवा दी. 2022 में यह दर 6 फीसदी थी और 2023 में अब तक 4 प्रतिशत है. अब तक 2 फीसदी बर्फ खोने को ही 'चरम' बिंदु माना जाता है.

रिपोर्ट के आंकड़े दिखाते हैं कि जितनी बर्फ इन दो सालों में गली है, उतनी पहले कुल 30 साल में पिघली थी. 2022 और 2023 में बर्फ गलने के पीछे गर्म होता मौसम और कम बर्फबारी को जिम्मेदार बताया जा रहा है. कई छोटे स्विस ग्लेशियर पूरी तरह गायब हो चुके हैं.

इस साल की शुरुआत में यूरोपीय संघ की जलवायु रिपोर्ट में कहा गया कि 2022, आप्ल्स के ग्लेशियरों के लिए सबसे बुरा वर्ष रहा.

हाल के बरसों में बहुत तेजी से पिघल रहे हैं ग्लेशियर
हाल के बरसों में बहुत तेजी से पिघल रहे हैं ग्लेशियरतस्वीर: Manuel Geisser/IMAGO

रिकॉर्ड मेल्टिंग की वजह क्या है?

दक्षिण और पूर्वी स्विट्जरलैंड में तो ग्लेशियरों के पानी होने की रफ्तार इस साल भी 2022 के बराबर ही है. समुद्र तल से 3,200 मीटर की ऊंचाई वाले इलाके में बर्फ के पिघलने की औसत रफ्तार तीन मीटर दर्ज की गई. यह भीषण गर्मी वाले साल 2003 के औसत से भी ज्यादा है. 

सर्दियों में बहुत कम बर्फबारी ने हालात को और गंभीर बना दिया है. बीती दो सर्दियां अप्रत्याशित रूप से गर्म रहीं. इस दौरान बहुत ही कम बर्फ दर्ज की गई है.

1,000 मीटर से ज्यादा ऊंचे इलाके में हालात जरा अलग हैं. फरवरी के पहले हफ्ते में बर्फ का आवरण सामान्य से थोड़ा ज्यादा था. लेकिन वर्ष की दूसरी छमाही में यह बर्फ भी रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंच गई. लंबे समय तक जुटाए गए आंकड़ों से तुलना करने पर यह कमी लगभग 30 फीसदी दर्ज की गई.

जून का महीना बहुत गर्म और रुखा रहा. इसके कारण निचले इलाकों में बर्फ दो हफ्ते पहले ही पिघल गई. तापमान के आंकड़े जब से दर्ज किए जा रहे हैं तब से यह तीसरा सबसे गर्म जून रहा. सितंबर तक हालात कुछ ऐसे ही बने रहे. ऊंचे इलाकों में गर्मियों के दौरान जब कभी बर्फ गिरी वो जमकर ठोस होने के बजाए तुरंत पिघल गई.

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