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75 फीसदी पिघल जाएंगे हिमालय के हिंदुकुश ग्लेशियर: रिपोर्ट

२० जून २०२३

हिमालय के हिंदुकुश इलाके में ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं. एक नई रिपोर्ट में ये दावा किया गया है कि सदी के अंत तक हिंदुकुश ग्लेशियर अपना 75 फीसदी हिस्सा खो सकते हैं, यानी ग्लेशियर पिघल जाएंगे.

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हिंदुकुश
अफगानिस्तान में हिंदुकुश के पहाड़तस्वीर: imago images

इसकी वजह है ग्लोबल वार्मिंग, जो पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिए पानी की भयंकर कमी पैदा कर सकती है. इसके साथ ही बाढ़ का खतरा भी बढ़ेगा. अंदाजा लगाया गया है कि ये हालात 2100 तक पैदा हो सकते हैं.

काठमांडू के इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट (आईसीआईएमओडी) की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि इस इलाके में ग्लेशियर 65 फीसदी ज्यादा तेजी से पिघले जो अनुमानों से परे एक भयानक सच है. रिपोर्ट के प्रमुख लेखक और पर्यावरणविद फिलीपस वेस्ट के मुताबिक अगर बर्फ इतनी ही तेजी के साथ पिघलती रही तो "हम अगले 100 सालों में ग्लेशियर खो देंगे."

हिमालय का हिंदुकुश इलाका 3,500 किलोमीटर तक अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, चीन, भारत, म्यांमार सहित नेपाल और पाकिस्तान तक फैला हुआ है लेकिन रिपोर्ट के मुताबिक, 2100 तक इन सभी इलाकों के ग्लेशियर अपना 30-50 प्रतिशत हिस्सा खो देंगे. हालांकि कहां कितनी बर्फ पिघलेगी, इसमें भौगोलिक स्थिति के हिसाब से भिन्नता देखने को मिल सकती है.

ये बर्फ पिघली तो आएगी तबाही

3 डिग्री सेल्सियस तापमान बढ़ने पर पूर्वी हिमालय, जिसमें नेपाल और भूटान शामिल हैं, अपनी 75 प्रतिशत तक बर्फ खो देंगे. वहीं 4 डिग्री तापमान बढ़ने पर 80 प्रतिशत तक बर्फ पिघलने का खतरा है.

पूरी तस्वीर

ध्यान देने वाली बात है कि वैज्ञानिकों के लिए जलवायु परिवर्तन का हिन्दूकुश पर असर का आकलन दुविधा भरा रहा है. ऐसा इसलिए क्योंकि इस क्षेत्र का पहले से कोई ऐसा लंबा तिहासिक रिकॉर्ड नहीं रहा है जो ये बताये कि ग्लेशियर बढ़ रहे हैं या सिकुड़ रहे हैं. जबकि यूरोपीय आल्प्स या अमेरिकी रॉकी पर्वतमालाओं के बारे में ऐसे अनुमान लगाना मुमकिन रहा है.

2019 में अमेरिका ने इस क्षेत्र में ग्लेशियरों की कुछ ऐसी तस्वीरों को गुप्त सूचना की श्रेणी से बाहर किया जो जासूसी उपग्रहों से ली गयी थी. साल 1970 में ली गयी ये तस्वीरें एक नया वैज्ञानिक आधार देती हैं. पिछले पांच सालों में उपग्रहों तकनीक में हुए जबरदस्त विकास ने भी ग्लेशियर में आए बदलावों को समझने में वैज्ञानिकों की मदद की है. इससे जलवायु में बदलाव और बढ़ती गर्मी के हिन्दूकुश पर असर का आकलन मुमकिन हुआ है.

इन तैरने वाले शहरों में रहेंगे लोग!

इस नई समझ के साथ ही पैदा होती है हिमालय के इस इलाके में रहने वाले लोगों के लिए गंभीर और बहुआयामी चिंताएं. रिपोर्ट में पाया गया कि इस क्षेत्र की गंगा, सिंधु और मेकांग समेत 12 नदी घाटियों में पानी का प्रवाह आने वाले वक्त में चरम पर होने की संभावना है. परिणाम ये कि 1.6 बिलियन से ज्यादा लोग इससे प्रभावित होंगे.

आजीविका जोखिम में

फिलपस वेस्टर कहते हैं, "ऐसा लग सकता है कि हमारे पास अधिक पानी होगा क्योंकि ग्लेशियर बढ़ी हुई दर से पिघल रहे हैं... बहुत बार यह स्थिर प्रवाह के बजाय बाढ़ के रूप में उत्पन्न होगा." पहाड़ों में बहुत से ऐसे समुदाय हैं जो ग्लेशियर का पानी और पिघली हुई बर्फ के पानी से अपने खेतों की सिंचाई करते हैं.

लेकिन अब बर्फ गिरने का समय अनिश्चित होता जा रहा है. साथ ही मात्रा भी कम हो गई है. इसके व्यापक असर हैं. जैसे रिपोर्ट की सह लेखक अमीना महाजन कहती हैं कि "गर्मियों में याक को ऊंचे चरागाहों पर जाना पड़ता है जिसके कारण उनकी भारी मात्रा में मौत हो रही है.” महाजन आईसीआईएमओडी में आजीविका और प्रवासन की वरिष्ठ विशेषज्ञ हैं. जल्दी बर्फ गिरने का दुष्प्रभाव ये होता है कि "सब जगह बर्फ भर जाती है और याक को चरने के लिए घास नहीं मिलती."

इसके साथ ही पिघलते हुए ग्लेशियर, निचले इलाके में रहने वाले समुदायों के लिए भी खतरा हैं. सरकारें इन बदलावों से निपटने के लिए तैयारी में जुटी हैं. जहां चीन अपने देश में पानी की व्यवस्था को चाक-चौबंद रखने की तैयारी में लगा है, वहीं पाकिस्तान चेतावनी देने वाली ऐसे सिस्टम लगाने पर काम कर रहा है जो ग्लेशियर पिघलने से आने वाली बाढ़ के बारे में पहले से जानकारी दे सके.

एचवी/एसबी (एपी, रॉयटर्स)