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विज्ञानसंयुक्त राज्य अमेरिका

वैज्ञानिकों ने बनाए चूहों के कृत्रिम भ्रूण

२६ अगस्त २०२२

अमेरिका और इस्राएल के वैज्ञानिकों ने बिना नर या मादा का प्रयोग किए, प्रयोगशाला में चूहों का भ्रूण तैयार कर लिया. इसे ‘डॉली’ भेड़ के जन्मने जितनी अहम खोज माना जा रहा है.

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इस्राएल की लैब में जैकब हाना
इस्राएल की लैब में जैकब हाना तस्वीर: AHMAD GHARABLI/AFP

वैज्ञानिकों ने एक कृत्रिम चूहा बनाया है. चूहे का यह कृत्रिम भ्रूण बनाने में ना नर चूहे का स्पर्म लिया गया है और ना मादा चूहे के अंडाणु या गर्भाश्य. प्रयोगशाला में बनाए गए ये चूहों के भ्रूण बिल्कुल वैसे हैं जैसे कुदरती रूप से गर्भधारण के बाद साढे आठ दिन के भ्रूण दिखते हैं. आकार ही नहीं, इनके दिल की धड़कनें भी ज्यों की त्यों हैं.

शोधकर्ता उम्मीद कर रहे हैं कि भविष्य में उन्हें अपने प्रयोगों के लिए प्रयोगशालाओं में असली जानवरों को कत्ल करने की जरूरत नहीं पड़ेगी और वे यूं कृत्रिम रूप से बनाए गए जीवों पर ही शोध कर सकेंगे. यह मानव के कृत्रिम भ्रूण तैयार करने की दिशा में भी एक अहम कदम हो सकता है.

इस शोध का हिस्सा नहीं रहे स्पेन के नेशनल बायोटेक्नोलॉजी सेंटर के लुइस मोंटोलियू कहते हैं, "इसमें कोई संदेह नहीं कि हम एक तकनीकी क्रांति के सम्मुख है. यह अभी सक्षम नहीं है लेकिन इसमें गुंजाइश भरपूर है. यह डॉली के भेड़ के जन्म जैसी वैज्ञानिक खोज है.”

गुरुवार को नेचर पत्रिका में यह शोध छपा है जिसमें कैलिफॉर्निया इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी की माग्डालेना जेरनिका-गोएट्ज और उनके सहयोगियों की खोज के बारे में विस्तार से बताया गया है. इसी महीने की शुरुआत में ऐसा ही अध्ययन इस्राएल के वाइजमान इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस में काम करने वाले जैकब हाना ने ‘सेल' पत्रिका में भी प्रकाशित किया था. हाना नेचर में छपे अध्ययन के भी सह लेखक हैं.

कैसे हुआ अध्ययन?

स्टेल-सेल बायोलॉजी की विशेषज्ञ जेरनिका-गोएट्ज कहती हैं कि इस अध्ययन का एक उद्देश्य यह समझना था कि इंसानों में बहुत से गर्भ शुरुआती अवस्था में ही क्यों गिर जाते हैं और 70 प्रतिशत मामलों में आईवीएफ के जरिए रोपे गए भ्रूण विकसित क्यों नहीं हो पाते. वह बताती हैं कि इस पूरी प्रक्रिया को कुदरती रूप से विकसित हो रहे भ्रूण के जरिए समझना कई वजहों से मुश्किल है जिनमें से एक यह भी है कि बहुत कम मानव भ्रूण शोध के लिए दान दिए जाते हैं. और फिर, मानवीय भ्रूणों पर प्रयोग करते वक्त वैज्ञानिक एक नैतिक दुविधा से भी गुजरते हैं. ऐसे में कृत्रिम भ्रूण तैयार करना एक विकल्प हो सकता है.

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कृत्रिम भ्रूण तैयार करने की प्रक्रिया को नेचर में छपे अध्ययन में समझाया गया है. वैज्ञानिकों ने चूहों से ली गईं भ्रूण कोशिकाओं को दो और तरह की कोशिकाओं के साथ मिलाया. एक खास तरह की कटोरी में इन तीनों कोशिकाओं को मिलाया गया. जेरनिका-गोएट्ज बताती हैं कि तैयार हुए सभी भ्रूण तो एकदम दोषरहित नहीं थे लेकिन जो सबसे अच्छे थे वे किसी भी रूप में चूहों के कुदरती भ्रूण से अलग नहीं थे. दिल जैसे एक अंग के साथ-साथ उनमें सिर जैसा एक अंग भी बन गया था.

जेरनिका-गोएट्ज बताती हैं, "चूहों के भ्रूणों के संदर्भ में यह पहला मॉडल है जो मस्तिष्क के विकास के अध्ययन की सुविधा देता है.

जेरनिका-गोएट्ज और हाना दोनों बताते हैं कि वे लोग सालों से इस अध्ययन पर काम कर रहे हैं जिसकी शुरुआत दशकों पहले हुई थी. जेरनिका-गोएट्ज के दल ने अपना शोध पत्र पिछले साल नवंबर में नेचर पत्रिका को भेजा था.

आगे क्या होगा?

वैज्ञानिक कहते हैं कि अब इन कृत्रिम भ्रूणों को साढ़े आठ दिन से ज्यादा विकसित करने पर काम किया जाएगा और अंततः इसे बीस दिन के चूहे के बच्चे तक ले जाना है. नेचर पत्रिका में छपे शोध के सह-लेखक ज्यांलूका अमाडेई कहते हैं कि साढ़े आठ दिन से ज्यादा तक ले जाना काफी मुश्किल काम है. केंब्रिज यूनिवर्सिटी के अमाडेई बताते हैं, "हमें लगता है कि हम उन्हें यह बाधा पार कराने में कामायाब हो जाएंगे ताकि वे विकसित होना जारी रख सकें.”

वैज्ञानिकों का मानना है कि 11 दिन के बाद प्लेसेंटा ना होने की वजह से भ्रूण का विकास रुक जाएगा लेकिन उन्हें उम्मीद है कि किसी दिन वे एक कृत्रिम प्लेसेंटा भी तैयार कर लेंगे. हालांकि अभी उन्हें संदेह है कि बिना गर्भ के वे इन भ्रूण को गर्भ की पूरी प्रक्रिया पार करवा सकते हैं.

शोधकर्ता यह भी स्पष्ट करते हैं कि आने वाले निकट भविष्य में मनुष्यों में इस तरह के प्रयोग की दोहराई की कोई संभावना नजर नहीं आती. हालांकि हाना कहते हैं कि यह "कुदरती तौर पर अगला कदम है.” वैसे कई वैज्ञानिक मनुष्यों की स्टेम सेल से ‘ब्लास्टोएड' यानी भ्रूण से पहले की अवस्था तैयार करने तक पहुंच चुके हैं.

वीके/सीके (रॉयटर्स)

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