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पेट्री डिश में बनाया इंसानी भ्रूण

२३ मार्च २०२१

एक असली मानव भ्रूण के शुरुआती विकास को समझने में कई तरह की नैतिक और कानूनी अड़चनें रहती हैं. इसलिए वैज्ञानिकों ने पहली बार लैब में उसका मॉडल बनाया.

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यह एक असली मानव ब्लास्टोसिस्ट है. रिसर्चरों ने इसके जैसा मॉडल "ब्लास्टॉइड" बनाने में सफलता पाई है.
यह एक असली मानव ब्लास्टोसिस्ट है. रिसर्चरों ने इसके जैसा मॉडल "ब्लास्टॉइड" बनाने में सफलता पाई है. तस्वीर: RMB/dpa/picture alliance

अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया में वैज्ञानिकों ने पेट्री डिशों में इंसान के भ्रूण का पहला पूर्ण मॉडल बनाया है. इस बारे में साइंस जर्नल नेचर ने रिपोर्ट छापी है. रिपोर्ट में लिखा गया है कि ऐसे दो अध्ययनों में मानव के असली भ्रूण से स्टेम सेल को निकाल कर पेट्री डिशों में रख कर उसे सही माहौल दिया गया. वयस्क ऊतकों से निकली ये स्टेम कोशिकाएंअपने आप पुन:व्यवस्थित होकर मानव भ्रूण जैसी बन गईं. मानव भ्रूण के शुरुआती विकास के चरणों में वह जो संरचना बनाता है उसे ब्लास्टोसिस्ट कहते हैं. रिसर्चरों ने पेट्री डिश में ऐसे ही ब्लास्टोसिस्ट या 'ब्लास्टॉइड' जैसे मॉडल बनाए हैं.

यह पहला मौका है जब इंसान के भ्रूण के हर एक हिस्से जैसी संरचना इस मॉडल भ्रूण में भी देखी गई है. अब तक रिसर्चरों को मानव भ्रूण के शुरुआती विकास को ठीक से समझने के लिए एक असली भ्रूण पाने में बहुत कठिनाई आती है. क्योंकि इसमें कई तरह की नैतिक और कानूनी अड़चनें आती हैं. इस तरह के मॉडल के विकास से यह काम आसान हो जाएगा.

स्टडी में कहा गया है कि इससे गर्भ में पल रहे बच्चे के विकास को समझने, गर्भपात रोकने, जन्मजात कमियों को समझने और उन्हें दूर करने और बच्चे की चाह रखने वाले असमर्थ जोड़ों की ज्यादा मदद की जा सकेगी. लेकिन इसके लिए मानव ब्लास्टॉइड बनाने की प्रक्रिया को बड़े स्तर पर दोहराने के रास्ते खोजने होंगे.

भ्रूण पर रिसर्च में कैसी रुकावटें

एक मानव भ्रूण पाना हमेशा ही सबसे कठिन रहा है. मानव भ्रूण को लेकर मौजूदा अंतरराष्ट्रीय सहमति और राष्ट्रीय कानून ऐसे हैं जिनमें कई कानूनी और नैतिक अड़चनें हैं. इनके अनुसार, आईवीएफ के जरिए बच्चा पाने की कोशिश करने वालों के लिए भ्रूण विकास का काम अंडे और स्पर्म को मिला कर फर्टिलाइजेशन कराने के केवल 14 दिनों तक ही किया जा सकता है. इस अवधि के बाद उसे कल्चर करने पर रोक है. इस पर स्टडी रिपोर्ट के लेखकों में शामिल एक ऑस्ट्रेलियाई रिसर्चर ने लिखा है, "जो '14-दिन वाले नियम' इन-विट्रो मॉडलों पर लागू होते हैं उनमें उन भ्रूणों की बात नहीं है जो बिना फर्टिलाइजेशन के तैयार किए गए हों." लेकिन टीम के रिसर्चरों ने नियमों की सीमा में रहते हुए केवल पांच दिन तक ही ब्लास्टॉइड को कल्चर किया.

दूसरी ओर, न्यू यॉर्क में इकान स्कूल ऑफ मेडिसिन में स्टेम सेल के बारे में पढ़ाने वाले प्रोफेसर थॉमस स्वाका कहते हैं कि इस तरीके से बने वैकल्पिक मॉडल उपलब्ध होने से रिसर्चरों को असली भ्रूणों का इंतजार नहीं करना पड़ेगा और उन पर नियम-कानूनों का दबाव भी कम होगा. वह कहते हैं, "अभी भी मानव के प्रारंभिक विकास के स्तर पर होने वाले बदलावों से जुड़ूी इतनी सारी बातें रहस्य बनी हुई हैं, जिनसे शरीर की तमाम गतिविधियों, अंगों और बीमारियों के बारे में समझा जा सकता है." जर्मनी के साइंस मीडिया सेंटर से बातचीत में स्वाका ने बताया कि "ब्लास्टॉइड जैसे तरीकों की तत्काल जरूरत है, जिससे ऐसे तमाम राज खोले जा सकें."

कैसे बनता है इंसान का भ्रूण

इंसान में फर्टिलाइजेशन के कुछ दिनों के बाद अंडा ब्लास्टोसिस्ट नाम की संरचना बनाता है. इसकी बाहरी परत ट्रोफेक्टोडर्म कहलाती है और उसके अंदर इनर सेल मास सुरक्षित होता है. जैसे जैसे ब्लास्टोसिस्ट विकसित होता जाता है, वैसे वैसे अंदर का पदार्थ दो तरह की कोशिकाओं के समूह में बंट जाता है - इन्हें इपीब्लास्ट और हाइपोब्लास्ट कहते हैं.

इसके बाद ब्लास्टोसिस्ट जाकर गर्भाशय के ऊत्तकों पर जाकर चिपक जाता है और आगे का विकास वहीं दीवार से जुड़ कर होता है. इसके बाद यहीं इपीब्लास्ट की कोशिकाओं के विकास से आगे चलकर पूरा भ्रूण बनता है. दूसरी तरफ ट्रोफेक्टोडर्म आगे चलकर पूरा प्लेसेंटा बनाता है और हाइपोब्लास्ट से उस झिल्ली का निर्माण होता है, जिससे बढ़ते भ्रूण को खून की सप्लाई मिलती है.

विज्ञान के लिए एक अहम कदम

अमेरिकी और ऑस्ट्रेलियाई वैज्ञानिकों ने देखा कि 6 से 8 दिन के कल्चर के बाद मानव ब्लास्टॉइड्स बने. यह ब्लास्टॉइड आकार में प्राकृतिक ब्लास्टोसिस्ट के बराबर थे और उनमें कोशिकाओं की संख्या भी उतनी ही थी. उनमें भी खाली जगह और इनर सेल मास जैसे कोशिकाओं के गुच्छे थे.

इसके बाद रिसर्चरों ने पाया कि जब इन ब्लास्टॉइड को पेट्री डिश में प्लांट किया गया तो कैसे उन्होंने वैसा ही व्यवहार किया जैसा वे गर्भाशय की दीवार पर चिपकने पर करते हैं. असली ब्लास्टोसिस्ट की ही तरह जब इन्हें चार-पांच दिन तक बढ़ने दिया गया तो उनमें भी प्लेसेंटा की कोशिकाओं और प्रो-एम्नियॉटिक कैविटी बनने के शुरुआती लक्षण दिखने लगे. इस चरण पर भ्रूण के कल्चर को रोक दिया गया.

वियना में इंस्टीट्यूट ऑफ मॉलिक्यूलर बायोटेक्नॉलजी के रिसर्चर निकोलास रेवरॉन ने साइंस मीडिया सेंटर से बातचीत में कहा, "इसमें सबसे अहम बात यह रही जो ब्लास्टॉइड भ्रूण की तीन तरह की कोशिकाएं बना पाए -  ट्रोफेक्टोडर्म, इपीब्लास्ट और हाइपोब्लास्ट लेकिन कई कोशिकाएं उससे अलग भी थीं." नई खोज के इस पहलू को भी ध्यान में रखने की जरूरत है कि ऐसे अध्ययन फिलहाल काफी सीमित हैं.