1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें
विज्ञानसंयुक्त राज्य अमेरिका

पता चली बुजुर्गों को अच्छी नींद ना आने की वजह

२५ फ़रवरी २०२२

वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि बुजुर्गों की नींद रात को बार-बार क्यों खुलती है. इसके लिए अमेरिकी शोधकर्ताओं ने चूहों पर एक दिलचस्प प्रयोग किया.

https://p.dw.com/p/47ZK9
नींद का विज्ञानः उम्र ज्यादा नींद कम
नींद का विज्ञानः उम्र ज्यादा नींद कमतस्वीर: Alexandra Troyan/Zoonar/picture alliance

यह बात तो जानी-मानी है कि उम्र बढ़ने के साथ-साथ नींद की गुणवत्ता खराब होती जाती है और बढ़िया नींद लेना मुश्किल होता जाता है. लेकिन ऐसा होता क्यों है, यह गुत्थी अब तक अनसुलझी रही है. अब अमेरिका के कुछ वैज्ञानिकों ने इस गुत्थी के कुछ उलझे धागे सुलझाए हैं.

अमेरिकी वैज्ञानिकों ने यह पता लगाया है कि मस्तिष्क का जो सर्किट नींद की गहराई और जागने की जगाई को नियंत्रित करता है, वह कैसे समय के साथ-साथ कमजोर पड़ता जाता है. शोधकर्ताओँ को उम्मीद है कि इस खोज से बेहतर दवाएं बनाने में मदद मिलेगी.

सोते हुए हमारे शरीर में क्या क्या सब चलता है?

शोध के सहलेखक स्टैन्फर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर लुईस डे लेसिया ने समाचार एजेंसी एएफपी को बताया, "65 साल से अधिक की उम्र वाले आधे से ज्यादा लोग शिकायत करते हैं कि उन्हें अच्छी नींद नहीं आती." शोध कहता है कि नींद खराब होने का संबंध सेहत के अन्य कई पहलुओं से है. इनमें हाइपरटेंशन से लेकर हार्ट अटैक, डायबिटीज, डिप्रेशन और अल्जाइमर तक शामिल हैं.

कैसे हुआ शोध

नींद ना आने की स्थिति में जो दवाएं दी जाती हैं, उन्हें हिप्नोटिक्स की श्रेणी में रखा जाता है. इनमें एंबियन भी शामिल है. लेकिन उम्र बढ़ने के साथ-साथ इन दवाओं का असर भी कम होता जाता है.

नए शोध के लिए डे लेसिया और उनके साथियों ने मस्तिष्क के उन रसायनों का अध्ययन किया जिन्हें हाइपोक्रेटिन्स कहते हैं. ये रसायन आंखों और कानों के बीच के हिस्से में मौजूद न्यूरोन्स द्वारा पैदा किये जाते हैं. मस्तिष्क में मौजूद अरबों न्यूरोन्स में से सिर्फ 50 हजार ही हाइपोक्रेटिन्स पैदा करते हैं.

क्या सोये बिना रह सकता है इंसान

1998 में डे लेसिया और अन्य वैज्ञानों ने पता लगाया था कि हाइपोक्रेटिन ही वे सिग्नल छोड़ते हैं जो इंसान को जगाए रखते हैं. चूंकि बहुत से जीवों की प्रजातियों में उम्र बढ़ने के साथ-साथ नींद की कमी अनुभव की जाती है, इसलिए माना जाता है कि स्तनधारियों में भी वही प्रक्रिया काम करती है जो अन्य प्रजातियों में. हाइपोक्रेटिन्स पर पहले भी इंसानों, कुत्तों और चूहों से जुड़े शोध हो चुके हैं.

चूहों पर प्रयोग

शोधकर्ताओं ने तीन से पांच महीने के और 18 से 22 महीने के चूहों के दो समूह बनाए. उन्होंने फाइबर के जरिए प्रकाश का इस्तेमाल मस्तिष्क के कुछ न्यूरोन्स को उत्तेजित करने के लिए किया. इमेजिंग तकनीक से इस शोध के नतीजे दर्ज किए गए.

वैज्ञानिकों ने पाया कि ज्यादा उम्र के चूहों ने युवा चूहों के मुकाबले 38 प्रतिशत ज्यादा हाइपोक्रेटिन्स गंवाए. उन्हें यह भी पता चला कि बुजुर्ग चूहों में जो हाइपोक्रेटिन बचे थे वे बहुत आसानी से उत्तेजित किए जा सकते थे, यानी जीवों के जगाए रखने की संभावना बढ़ाते थे.

डे लेसिया कहते हैं कि ऐसा उन पोटाशियम चैनलों के समय के साथ नष्ट होने के कारण हो सकता है, जो कई तरह की कोशिकाओं के कामकाज के लिए शरीर के अंदर स्विच की तरह काम करते हैं. वह कहते हैं, "न्यूरोन्स के ज्यादा सक्रिय रहने की संभावना ज्यादा रहती है. वे जिससे आपके ज्यादा जगने की संभावना बढ़ती है."

नींद में तनाव से खलल

वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि यह जानकारी नींद की बेहतर दवाएं बनाने में मददगार साबित होगी. इस शोध पर टिप्पणी करते हुए ऑस्ट्रेलिया के फ्लोरी इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूरोसाइंस ऐंड मेंटल हेल्थ के लॉरा जैकबसन और डेनियल होयर लिखते हैं कि नीद खराब होने की जगह विशेष का पता लगने का फायदा बेहतर दवा बनाने में हो सकता है.

वीके/एए (एएफपी)

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें