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डार्लिंग नदी को दी जा रही है कृत्रिम ऑक्सीजन

विवेक कुमार
२२ फ़रवरी २०२४

ऑस्ट्रेलिया में मछलियों को बचाने के लिए डार्लिंग नदी को कृत्रिम रूप से ऑक्सीजन देने का एक प्रयोग किया जा रहा है. यह वैसा ही तरीका है, जैसे अस्पताल में मरीज को ऑक्सीजन दी जाती है.

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ऑस्ट्रेलिया की डार्लिंग नदी
ऑस्ट्रेलिया की डार्लिंग नदी में पिछले साल हजारों मछलियां मर गई थीं.तस्वीर: Australian Broadcasting Corporation

पिछले साल मार्च में ऑस्ट्रेलिया की डार्लिंग नदी में करोड़ों मछलियां मारी गई थीं. दुनियाभर में सुर्खियां पाने वाली इस घटना ने वैज्ञानिकों से लेकर आम लोगों तक सभी को परेशान किया कि नदी में ऐसा क्या है जिसकी वजह से मछलियां मर रही हैं. जांच के बाद वैज्ञानिकों ने कहा कि ये मछलियां दम घुटने से मरीं क्योंकि नदी के पानी में ऑक्सीजन का स्तर कम हो गया था.

ऐसा दोबारा ना हो, इसके लिए उपाय सोचे जाने लगे और वैज्ञानिकों ने एक बहुत ही आम सा प्रतीत होने वाला नुस्खा खोजा. विशेषज्ञ नदी को ठीक उसी तरह ऑक्सीजन दे रहे हैं, जैसे अस्पताल में किसी मरीज को दी जाती है. ऑस्ट्रेलिया के न्यू साउथ वेल्स राज्य की डार्लिंग नदी में एक ट्रायल की जा रही है, जिसमें पंप से नदी को ऑक्सीजन दी जा रही है.

अभी परीक्षण का दौर

राज्य की जल मंत्री रोज जैक्सन ने मीडिया को बताया कि यह नुस्खा अभी आजमाने के दौर में ही है कि क्या शुद्ध ऑक्सीजन पंप के जरिए नदी में छोड़े जाने से पानी में ऑक्सीजन का स्तर सुधर सकता है.

जैक्सन ने कहा, "हाल के सालों में मछलियों के मरने की हमने कई आपदाएं देखी हैं. हम इससे हाथ झाड़कर यह तो नहीं कह सकते कि देखते हैं, क्या होता है.”

हालांकि जैक्सन के मुताबिक इसके नतीजे का पता चलने में कई महीनों का वक्त लग सकता है लेकिन वैज्ञानिक इस नुस्खे की कामयाबी को लेकर आशावान हैं. वॉटर एनएसडब्ल्यू में काम करने वाले वैज्ञानिक जो पेरा कहते हैं कि यह कोई रामबाण तो नहीं है लेकिन पानी की सेहत सुधर सकती है.

एक मीडिया इंटरव्यू में उन्होंने बताया कि तकनीक कैसे काम करती है. वह बताते हैं कि ऑक्सीजन रहित या कम ऑक्सीजन वाले पानी को पंप से सोखकर टैंक में भरा जाता है और फिर उसमें ऑक्सीजन मिलाई जाती है. उसके बाद सौ फीसदी ऑक्सीजन स्तर वाले पानी को वापस नदी में छोड़ दिया जाता है.

कैसे काम करती है तकनीक

इस काम के लिए जो उपकरण इस्तेमाल किए जा रहे हैं वे बहुत आसानी से कहीं भी लाए-ले जाए जा सकते हैं और उन्हें ‘आपातकालीन परिस्थितियों' के हिसाब से ही बनाया गया है.

वैसे ऑस्ट्रेलिया के ही एक अन्य प्रांत वेस्टर्न ऑस्ट्रेलिया में यह नुस्खा आजमाया जा चुका है और इसमें कामयाबी भी मिली थी. लेकिन वेस्टर्न ऑस्ट्रेलिया और न्यू साउथ वेल्स के भोगौलिक हालात अलग-अलग हैं. इसलिए डार्लिंग नदी पर परीक्षण इस नुस्खे की भी आजमाइश है कि यह अलग-अलग परिस्थितियों में काम करता है या नहीं.

पेरा बताते हैं, "वेस्टर्न ऑस्ट्रेलिया में नदी का बहाव ऐसा नहीं था, जैसा यहां है. लेकिन यहां पानी कम गहरा है. यह सिस्टम गहराई में बेहतर काम करता है. ऐसा नहीं है कि यहां यह काम नहीं करेगा लेकिन इसकी सीमाएं हैं.”

इस प्रयोग में एक बात की परख और की जानी है कि इस तरह कृत्रिम रूप से ऑक्सीजन देने का मछलियों पर कोई बुरा असर तो नहीं होगा. एक आशंका तो यह है कि जिस जगह पानी में ज्यादा ऑक्सीजन होगी, वहां ज्यादा संख्या में मछलियां आ सकती हैं. अगर ऐसा होता है तो उसका क्या असर होगा, यह भी देखना होगा.

पानी की बिगड़ती सेहत

आमतौर पर यह तकनीक एक्वाकल्चर में इस्तेमाल की जाती है. पिछले कई सालों से लगातार नदी में मछलियों के मरने के बाद इस तकनीक के इस्तेमाल की जरूरत महसूस की गई. 2018 के आखिरी महीनों से लेकर 2019 के शुरुआत में ऑस्ट्रेलिया में मछलियां के मरने की कई घटनाएं हुई थीं, जब हजारों हजार मरी हुई मछलियां बहकर आने लगीं. वैज्ञानिकों ने इसे सूखे के साथ-साथ पानी की बिगड़ती सेहत का परिणाम बताया है.

पिछले साल मार्च में डार्लिंग नदी में आई बाढ़ के बाद लाखों की संख्या में मूल ऑस्ट्रेलियाई प्रजाति की मछलियां मरी पाई गईं. इस पूरे वाकये की जांच के लिए एक समिति बनाई गई थी जिसने पिछले साल सितंबर में कुछ सिफारिशों के साथ अपनी रिपोर्ट सौंपी थी. इनमें से एक सिफारिश कृत्रिम रूप से ऑक्सीजन सप्लाई करने की भी थी.