कोविड में चांदी कूटने वाली कंपनियां अब मिट्टी के भाव
२८ फ़रवरी २०२४कोविड महामारी के दौरान जूम दुनियाभर के दफ्तरों में शायद सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाले शब्दों में से एक रहा. जूम और ऐसी तमाम कंपनियां उस दौर में उभरीं और नई ऊंचाइयों पर पहुंची थीं. तब लोगों ने इन कंपनियों में खूब निवेश भी किया. लेकिन 2019 के महामारी के दौर से तुलना की जाए तो बहुत सी कंपनियां अब धरातल पर हैं.
जूम वीडियो कम्यूनिकेशंस बीते साल भी मुनाफा कमाया है. 31 जनवरी को जारी उसके तिमाही नतीजे उम्मीदों से बेहतर ही रहे. बीते वर्ष की इसी अवधि की तुलना में उसके शेयरों के भाव 16 फीसदी ऊपर थे. रेवन्यू में भी तीन फीसदी की वृद्धि दर्ज हुई. पर कोविड के समय से तुलना की जाए तो ये आंकड़े कुछ भी नहीं हैं.
ऐसा सिर्फ जूम के साथ नहीं हुआ है. बहुत सी कंपनियों ने कोविड महामारी के दौरान कई-कई गुना मुनाफा कमाया था लेकिन पिछले दो साल में वे जमीन पर आ चुकी हैं.
90 फीसदी तक गिर चुके हैं भाव
11 मार्च 2020 को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोविड को महामारी घोषित किया था. उस दिन इन कंपनियों के शेयरों के भावों से तुलना की जाए तो अब बहुत से 80 से 95 फीसदी तक गिर चुके हैं. अगर 11 मार्च 2020 को किसी ने जूम में एक हजार अमेरिकी डॉलर निवेश किए थे तो एक वक्त उनका भाव 5,153 डॉलर पहुंच गया था. 26 फरवरी 2024 को यह 89 फीसदी नीचे यानी 572 डॉलर पर था.
इसी तरह डॉक्युमेंट्स को ऑनलाइन साइन करने की सुविधा देने वाली कंपनी के भाव अपने सर्वोच्च स्तर से 83 फीसदी नीचे हैं. यानी 11 मार्च 2020 को किसी ने इस कंपनी में अगर एक हजार डॉलर का निवेश किया तो वे अब 691 डॉलर रह गए हैं. एक्सरसाइज के लिए इक्विपमेंट बनाने वाली कंपनी पेलोटोन के शेयर अपने सर्वोच्च स्तर से 97 फीसदी नीचे गिर चुके हैं. यहां तक कि कोविड वैक्सीन बनाने वाली कंपनी मॉडर्ना के भाव भी अपने सर्वोच्च स्तर से 81 फीसदी नीचे आ चुके हैं.
विशेषज्ञ कहते हैं कि इनमें से अधिकतर कंपनियां तब के समय की परिस्थितियों के कारण मुनाफा कमा रही थीं. मसलन, लॉकडाउन के दौरान घर से काम करने का विकल्प बनकर जूम ने खूब नाम और दाम कमाया. लेकिन अब एक तो वर्क फ्रॉम होम करने वालों की संख्या बहुत कम रह गई है, दूसरे जूम जैसे अन्य उत्पाद भी बाजार में उपलब्ध हैं. जैसे कि माइक्रोसॉफ्ट टीम्स, सिस्को वेबेक्स और सेल्सफोर्स की स्लैक ऐप ने जूम को तगड़ा मुकाबला दिया है.
उतर गया ऊफान
कुछ ऐसा ही हाल फूड डिलीवरी स्टार्टअप कंपनियों का हुआ है. खाना घर तक पहुंचाने वाली बहुत सी स्टार्टअप कंपनियां या तो बंद हो गईं या संघर्ष कर रही हैं. जानकार मानते हैं कि कोविड के दौरान घर तक डिलीवरी करने के बाजार में जो उफान आया था अब वह उतर रहा है. न्यू साउथ वेल्स विश्वविद्यालय में फाइनेंस पढ़ाने वाले एसोसिएट प्रोफेसर मार्क हंफ्री-जेनेर लिखते हैं कि लॉकडाउन का दौर खत्म हो जाने के बाद इन कंपनियों के लिए काम जारी रखना मुश्किल हो गया था.
पिछले साल अपना कारोबार समेटने वाली फूड डिलीवरी ऐप मिल्करन की मिसाल देते हुए प्रोफेसर हंफ्री-जेनेर कहते हैं, "मिल्करन ने अपना कारोबार महामारी के दौरान शुरू किया था, जो दरवाजे तक डिलीवरी के लिए सटीक वक्त था. लेकिन पिछले साल के मध्य में, जबकि लॉकडाउन बीती बात हो चुका था, उसके लिए आंकड़े अच्छे नहीं दिख रहे थे. उसे हर डिलीवरी पर दस डॉलर का नुकसान हो रहा था, जो शुरुआत के वक्त होने वाले 40 डॉलर के नुकसान से तो बेहतर ही था,” लेकिन नुकसान में कंपनी कब तक चल सकती थी.