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2023 में इन पांच आर्थिक चुनौतियों का करना होगा सामना

आशुतोष पाण्डेय
६ जनवरी २०२३

मंदी की संभावना जैसी बड़ी चुनौतियों के बावजूद, 2023 में कुछ बेहतर भी हो सकता है. हालांकि, कई ऐसी चुनौतियां हैं जो पूरे विश्व को प्रभावित कर सकती हैं.

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तस्वीर: Michael Nagle/Xinhua/picture alliance

कोरोना महामारी की वजह से वर्ष 2020 और 2021 में वैश्विक अर्थव्यवस्था काफी हद तक तबाह हो चुकी थी. उम्मीद थी कि 2022 में अर्थव्यवस्था पटरी पर लौटेगी, लेकिन 24 फरवरी को रूस ने यूक्रेन पर हमला कर दिया और इसने अर्थव्यवस्था को अनिश्चित काल के लिए गर्त में धकेल दिया. यूक्रेन में युद्धऔर रूस के खिलाफ पश्चिमी प्रतिबंधों ने भू-राजनीतिक तनाव को बढ़ावा दिया, ऊर्जा और खाद्य संकट पैदा होने से कीमतें रिकॉर्ड स्तर तक पहुंच गईं और आपूर्ति श्रृंखलाएं बाधित हो गई. इसका नतीजा ये हुआ कि वैश्विक स्तर पर अर्थव्यवस्थाएं चरमरा गईं.

जैसे-जैसे मुद्रास्फीति कई वर्षों का रिकॉर्ड तोड़ने लगीं, वैसे-वैसे केंद्रीय बैंकों ने ब्याज दरों में बढ़ोतरी करके धीमी होती अर्थव्यवस्था के पहिए को थामने की कोशिश की. इसकी वजह से 2023 में मंदी आने की संभावना और बढ़ती गई. हालांकि, इस मंदी के अलावा वैश्विक अर्थव्यवस्था के सामने कई और चुनौतियां भी हैं जिनका इस वर्ष हमें सामना करना पड़ सकता है.

सामने दिख रही मंदी

वैश्विक आर्थिक विकास के लिहाज से 2009 के बाद 2023 इस सदी का तीसरा सबसे खराब वर्ष होने की आशंका है. 2009 में आयी बड़ी मंदी की वजह से वैश्विक स्तर पर आर्थिक संकट गहरा गया था. इसके बाद, जब 2020 में कोविड-19 की वजह से पूरी दुनिया में लॉकडाउन लगा, तब वैश्विक स्तर पर अर्थव्यवस्थाओं में आभासी तौर पर ठहराव आ गया था.

विश्लेषकों को आशंका है कि संयुक्त राज्य अमेरिका और ब्रिटेन के साथ-साथ यूरोजोन सहित दुनिया की प्रमुख अर्थव्यवस्थाएं इस साल मंदी की चपेट में आ सकती हैं, क्योंकि केंद्रीय बैंक उपभोक्ता वस्तुओं और सेवाओं की मांग को कम करने की कोशिशों के मद्देनजर ब्याज दरों में लगातार वृद्धि कर रहे हैं, ताकि बढ़ती महंगाई पर लगाम लगाई जा सके.

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की प्रमुख क्रिस्टालिएना जॉर्जीवा ने चेतावनी दी है कि 2023 में वैश्विक अर्थव्यवस्था का एक तिहाई हिस्सा मंदी की चपेट में आ सकता है. उन्होंने बताया कि 2022 की तुलना में 2023 ज्यादा ‘कठिन' वर्ष साबित हो सकता है.

यूरोजोनएक गंभीर ऊर्जा संकट का सामना कर रहा है और रूसी जीवाश्म ईंधनों पर अपनी निर्भरता कम करने की कोशिश कर रहा है. वहीं, ब्रिटेन अपने सहयोगी देशों की तुलना में अधिक गहरी मंदी का सामना कर सकता है.

द इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरनेशनल फाइनेंस के विश्लेषकों ने रिसर्च नोट में लिखा है, "वैश्विक जीडीपी कितनी प्रभावित होगी, यह मुख्य रूप से यूक्रेन युद्ध की स्थिति पर निर्भर करती है.” उन्होंने आगे लिखा कि इस बात का डर है कि कहीं यह ‘हमेशा जारी रहने वाला युद्ध' न बन जाए.

मजबूत अर्थव्यवस्थाओं के सिकुड़ने और अमेरिकी डॉलर मजबूत होने से निर्यात पर नकारात्मक असर पड़ेगा. इसका नतीजा यह होगा कि निर्यात पर निर्भर एशियाई अर्थव्यवस्थाओं के लिए मुसीबत खड़ी हो जाएगी.

हालांकि, राहत की बात यह है कि कोई भी मंदी संभावित तौर पर थोड़े समय के लिए होगी. साथ ही, उतनी गंभीर नहीं होगी जितनी शुरू में आशंका जताई गई थी. इसका असर सिर्फ यह होगा कि बेरोजगारी दर में थोड़ी वृद्धि होगी.

कैपिटल इकोनॉमिक्स के विश्लेषकों ने दिसंबर में कहा, "पूरी दुनिया में अब मुद्रास्फीति की दर कम होती दिख रही है, इसलिए केंद्रीय बैंकों को अब ब्याज दरों में बढ़ोतरी रोक देनी चाहिए, ताकि अगले साल (2023) के अंत तक हालात सामान्य होने शुरू हो जाएं.”

लंबे समय तक महंगाई

2023 में मूल्य वृद्धि की संभावना कम होगी. कम होती मांग, ऊर्जा की कीमतों में गिरावट, आपूर्ति में कमी और शिपिंग की लागत में कमी से मदद मिलेगी. हालांकि, मुद्रास्फीति की दर केंद्रीय बैंकों के लक्ष्य के स्तर से ज्यादा रहेगी जिससे ब्याज दरों में और बढ़ोतरी हो सकती है. इसका मतलब है कि अर्थव्यवस्था की रफ्तार थमी रह सकती है और वैश्विक स्तर पर ऋण संकट की स्थिति और खराब हो सकती है.

यूरोजोन में महंगाई अमेरिका की तुलना में धीरे-धीरे कम होने की उम्मीद है. यूरोजोन की सबसे मजबूत अर्थव्यवस्था वाले देश जर्मनी में गैस और बिजली की कीमतों पर कैप लगने जैसे उपायों से महंगाई कम होने की उम्मीद है. हालांकि, जर्मन सरकार द्वारा परिवारों को महंगाई से निपटने में मदद करने के लिए नकद हस्तांतरण योजना की वजह से मुख्य मुद्रास्फीति बहुत अधिक बनी रह सकती है. दूसरे शब्दों में कहें, तो ऊर्जा और खाद्य की कीमतें घटने की संभावना कम दिख रही है.

कैपिटल इकोनॉमिक्स में यूरोप के प्रमुख अर्थशास्त्री एंड्रयू केनिंघम ने कहा, "यूरोजोन की अर्थव्यवस्था और विशेष रूप से श्रम बाजार का लचीलापन बताता है कि हमारी उम्मीद से ज्यादा समय तक महंगाई बनी रह सकती है. मुख्य मुद्रास्फीति (खाद्य और ऊर्जा की कीमतें) धीरे-धीरे कम होंगी, क्योंकि सेवा क्षेत्र में वेतन वृद्धि महंगाई को उच्च दर पर बनाए रखती है.”

केनिंघम ने आगे कहा, "यह पूर्वानुमान कई बातों पर निर्भर करता है. ‘ज्ञात-अज्ञात' कारकों में यह शामिल है कि ऊर्जा बाजार की स्थिति क्या होगी. यह मौसम और यूक्रेन युद्ध पर निर्भर करता है. साथ ही, यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि जर्मन कारोबार ऊर्जा की बढ़ती कीमतों का किस तरह सामना करते हैं.”

चीन में कोरोना महामारी की स्थिति

2023 की शुरुआत से कुछ ही हफ्ते पहले, चीन ने अपनी विवादास्पद शून्य-कोविड नीति को खत्म करने की घोषणा की. इसके बाद से देश में कोरोना संक्रमण के मामले तेजी से बढ़े और स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली ध्वस्त हो गई.

अन्य देशों के अनुभव के आधार पर यह कहा जा सकता है कि संक्रमण की वजह से दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था की रफ्तार थोड़े समय के लिए थम सकती है. इससे वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाएं एक बार फिर से चरमरा सकती हैं. साथ ही, कोरोना वायरस के नए वैरिएंट के उभरने और दुनिया के अन्य देशों में फैलने का खतरा भी बढ़ गया है.

ऐसे में आने वाले कुछ समय के लिए अर्थव्यवस्थामें सुधार की उम्मीद धुंधली होती दिख रही है, लेकिन विश्लेषकों को उम्मीद है कि चीनी अर्थव्यवस्था 2023 के अंत तक पटरी पर लौट आएगी. इसका नतीजा यह होगा कि शून्य कोविड नीति की वजह से चीन को जो नुकसान हुआ है और देश के रियल एस्टेट सेक्टर में जो मंदी छायी हुई है वह दूर हो सकती है. चीन की अर्थव्यवस्था में एक चौथाई योगदान रियल एस्टेट सेक्टर का है.

डॉयचे बैंक के मुख्य निवेश अधिकारी क्रिस्टियान नोल्टिंग ने ग्राहकों को भेजे संदेश में कहा, "चीन की अर्थव्यवस्था में सुधार का मतलब है कि एशिया के लिए 2023 अच्छा वर्ष साबित हो सकता है.” उन्होंने कहा कि इस सुधार से पड़ोसी देशों सहित वस्तुओं के निर्यात पर निर्भर लैटिन अमेरिका जैसे देशों की अर्थव्यवस्थाएं स्थिर हो सकती हैं, क्योंकि चीन प्रमुख वस्तुओं का उपभोक्ता है.

ऊर्जा संकट

जिस तरीके से ऊर्जा संकट की स्थिति बनी हुई है, खासकर यूरोप में, वह 2023 में भी सरकारों के लिए सिरदर्द बनी रहेगी. यूरोप इस साल की सर्दी में ऊर्जा संकट से बचने में सफल हो सकता है, क्योंकि मौसम ने भी साथ दिया है और उपभोक्ताओं ने भी इस्तेमाल में कटौती की है.

हीटिंग की मांग कम होने का फायदा यह हुआ है कि जो भंडार पिछले साल तक भर गए थे वे इस सर्दी के अंत तक बने रह सकते हैं. इस वजह से अगले वसंत के मौसम तक कीमतें नियंत्रित रह सकती हैं, जिससे महंगाई कम करने में मदद मिलेगी.

हालांकि, अगली सर्दी से पहले स्थिति चुनौतीपूर्ण हो सकती है. यूरोप ने पिछले साल रूसी ऊर्जा के विकल्प तलाशने और उपभोक्ताओं को बचाने के लिए अरबों यूरो खर्च किए. ऐसे में यूरोप को एक बार फिर अपना भंडार भरने के लिए संघर्ष करना पड़ सकता है. वजह ये है कि तरल प्राकृतिक गैस के लिए प्रतिस्पर्धा बढ़ जाएगी, क्योंकि चीन का बाजार फिर से खुल गया है. साथ ही, जापान और कोरिया जैसे पारंपरिक एशियाई खरीददारों ने ऊर्जा के अधिक स्रोतों की तलाश शुरू कर दी है.

नोल्टिंग ने कहा कि यूरोप के लिए ऊर्जा अभी भी मुख्य संकट बना हुआ है और 2023 और 24 की सर्दियों में गैस की किल्लत हो सकती है.

भू-राजनीतिक तनाव और तकनीकी युद्ध

2022 की तरह ही सैन्य और राजनीतिक तनाव अर्थव्यवस्था के लिए सबसे बड़े खतरों में से एक बने रहेंगे. यूक्रेन और रूस का युद्ध खत्म होता नजर नहीं आ रहा है. दुनिया के सबसे बड़े सेमीकंडक्टर निर्माता ताइवान को लेकर चीन और अमेरिका के बीच तनाव बना हुआ है. साथ ही, उत्तर कोरिया के मिसाइल परीक्षण के बीच कोरियाई प्रायद्वीप में तनाव बढ़ गया है. इस वजह से निवेशक इस वर्ष भी फूंक-फूंक कर कदम बढ़ा सकते हैं.

नोल्टिंग ने कहा, "यूक्रेन और रूस के बीच चल रहे युद्ध को समाप्त करने के लिए कोई समाधान नहीं मिल रहा है. इसका मतलब है कि प्रवासन बढ़ेगा. साथ ही, जीवाश्म ऊर्जा और वैश्विक खाद्य आपूर्ति की समस्या दूर करने का भी कोई समाधान नहीं दिख रहा है और अब इस समस्या का असर इस क्षेत्र से बाहर भी दिखेगा.”

अमेरिका और चीन के बीच तकनीकी वर्चस्व की लड़ाई 2023 में और तेज हो सकती है. पिछले साल अमेरिका ने चीन को बेहतर सेमीकंडक्टर टेक्नोलॉजी के हस्तांतरण पर प्रतिबंध लगा दिया था.

नोल्टिंग ने कहा, "कारोबार के लिहाज से शुरू हुआ संघर्ष अब 5जी, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और चिप्स जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में अपना वर्चस्व स्थापित करने की दिशा में बदल गया है. इन क्षेत्रों में मिलने वाली सफलता, यह तय करेगी कि भविष्य में किसका पलड़ा भारी होगा. इसलिए, दोनों पक्ष आसानी से इस लड़ाई में पीछे हटने को तैयार नहीं होंगे.”