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जर्मनी में विदेशी कामगारों को लाने के लिए सुधारों को मंजूरी

१ दिसम्बर २०२२

जर्मन सरकार ने देश में आप्रवासन में सुधार की नई योजना को मंजूरी दे दी है. जर्मनी में कुशल कामगारों की भारी कमी है और इसके अभाव में यहां के उद्योग धंधों को बड़ी मुश्किल हो रही है.

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कुशल कामगारों की जर्मनी को बहुत जरूरत है
नर्सिंग और चाइल्ड केयर में बहुत सारे पद खाली पड़े हैंतस्वीर: Ina Fassbender/AFP/Getty Images

एक तरफ तेजी से बूढ़ी होती आबादी और दूसरी तरफ कुशल कामगारों की कमी. महामारी और युद्ध वाले दौर में जर्मन अर्थव्यवस्था कई तरह की चुनौतियों से जूझ रही है. इस कठिन दौर में जर्मन सरकार ने देश के श्रम बाजार को गैर-यूरोपीय लोगों के लिए खोलने की तैयारी कर ली है.

जर्मनी के आंतरिक मामलों की मंत्री नैंसी फेजर ने पत्रकारों कहा कि आप्रवासन नीति में ये सुधार "यूरोप में सबसे आधुनिक आप्रवासन नीति बना रहे हैं." कैबिनेट ने सरकार की योजना के अहम बिंदुओं को मंजूरी दे दी है.

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कंफेडरेशन ऑफ जर्मन एम्पलॉयर्स एसोसिएशन (बीडीए) के अध्यक्ष राइनर डुल्गर का कहना है, "हमें लोगों की जरूरत है, ताकि इस देश में हम अपनी समृद्धि को बनाये रख सकें." इसके साथ ही उन्होंने कहा कि अगर जल्द कार्रवाई नहीं हुई, तो अगले कुछ सालों में जर्मनी में 70 लाख से ज्यादा कामगारों की कमी होगी. जर्मनी में आईटी, अक्षय ऊर्जा, चाइल्डकेयर, गैस्ट्रोनॉमी समेत कई सेक्टरों में कामगारों की भारी कमी है.

विदेशी कामगारों को लुभाने के लिए जर्मनी में सुधारों को मंजूरी
कई सेक्टरों में काम के लिए कुशल कामगार नहीं मिल रहे हैंतस्वीर: Ute Grabowsky/imago images/photothek

आप्रवासन और प्रशिक्षण पर जोर

सरकार ने कहा है कि वह आप्रवासन और प्रशिक्षण को बढ़ाना चाहती है, ताकि कुशल कामगारों की कमी से जूझ रही अर्थव्यवस्था को उबारा जा सके. कामगारों की कमी से एक तरफ विकास का पहिया धीमा पड़ रहा है, तो दूसरी तरफ बुजुर्गों की आबादी बढ़ने से पेंशन फंड पर दबाव बढ़ रहा है.

मार्च 2020 में स्किल्ड माइग्रेशन एक्ट में सुधारों की योजना बनाई गई थी. इसमें नौकरी ढूंढने वालों के लिए ऑपरचुनिटी कार्ड बनाने का विचार है, जो किसी व्यक्ति की सिर्फ योग्यता पर ही नहीं, बल्कि एक नये प्वाइंट सिस्टम पर आधारित होगा.

अकुशल कामगारों को भी जर्मनी में आने का मौका दिया जायेगा. हालांकि, यह सिर्फ तब होगा, जब संघीय रोजगार एजेंसी कुछ सेक्टरों में उनकी जरूरत देखेगी. उद्योग जगत ने नये सुधारों के प्रस्ताव का स्वागत किया है. हालांकि, यह नीति नये साल में ही लागू हो सकेगी.

चांसलर ओलाफ शॉल्त्स ने एक "पारदर्शी, लालफीताशाही से मुक्त" एमिग्रेशन प्वाइंट सिस्टम का सुझाव दिया है. सत्ताधारी गठबंधन को उम्मीद है कि यह जर्मन नागरिकता के लिए आसान बनाये जा रहे नियमोंके हिसाब से काम करेगा.

और सुधार चाहता है उद्योग जगत

जर्मन सरकार का कुशल कामगारों के लिए आप्रवासन नीति आसान बनाना मौजूदा कमी को देखते हुए सही दिशा में एक कदम है, लेकिन अभी कुछ और सुधारों की जरूरत होगी. एसोसिएशन ऑफ जर्मन चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (डीआईएचके) के एक प्रतिनिधि ने वेतन की सीमा और विदेशों से प्रशिक्षुओं की नियुक्ति जैसे क्षेत्रों में कुछ और सुधार करने की मांग रखी है.

डीआईएचके के उप-प्रबंध निदेशक आशिम डेर्क्स ने राइनिषे पोस्ट अखबार से कहा है, "इस मामले में अब भी बहुत कम ही बात कही गई है. जर्मनी में खाली पड़े प्रशिक्षुओं के पदों की बढ़ती संख्या को देखते हुए हमें इस मामले में ज्यादा व्यावहारिक होना होगा, ताकि बाहरी देशों से प्रशिक्षुओं को लाया जा सके."

जर्मनी में विदेशी कामगारों की जरूरत बड़ती जा रही है
जर्मनी में आप्रवासन के नियमों को आसान बनाया जा रहा है तस्वीर: Adam Berry/Getty Images

एक उद्योग संघ के प्रमुख हांस पेटर वोलसाइफर ने जर्मनी के आप्रवासन विभागों से "स्वागत केंद्र" बनने की मांग की है. इसके साथ ही विदेशों में जर्मन दूतावासों से वीजा प्रक्रिया को तेज करने और कामगारों के आप्रवासन में मदद करने को कहा है. वोलसाइफर ने राइनिषे पोस्ट से कहा, "अन्यथा लोग नहीं आयेंगे. खासतौर से आप्रवसान के मामले में जर्मनी की छवि अच्छी नहीं है."

फिलहाल जर्मनी में कुशल कामगारों के आधिकारिक तौर पर 1,53,000 पद खाली पड़े हैं, जिनके लिए लोग नहीं मिल रहे हैं. वोलसाइफर का तो कहना है कि वास्तविक संख्या इससे काफी ज्यादा है, क्योंकि बहुत सी कंपनियां इस्तीफों से खाली होने वाले पदों की जानकारी नहीं देती हैं.

जर्मन उद्योगों को बीते कई सालों से कुशल कामगारों की कमी का सामना करना पड़ रहा है. कोरोना की महामारी ने इसमें और इजाफा किया. भारत और कई देशों से जर्मनी आने वाले लोगों को वीजा के लिए जल्दी अपॉइंटमेंट ही नहीं मिल रहे हैं. जर्मन उद्योग जगत पहले ही कई ऊर्जा संकट से लेकर और कई तरह के दबाव झेल रहा है. ऐसे में कामगारों की कमी एक और बड़ी समस्या बनकर उभरी है. यह समस्या दीर्घकालीन है, इसलिए सरकार के विशेष रूप से दखल की जरूरत पड़ी है.

एनआर/वीएस (डीपीए, रॉयटर्स)