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सेना की तैनाती के बाद पहली बार रूस और यूक्रेन के बीच बातचीत

२६ जनवरी २०२२

यूक्रेन की सीमा पर रूसी सैनिकों की तैनाती के बाद आज पहली बार रूस और यूक्रेन के प्रतिनिधि बातचीत की मेज पर साथ आए हैं. इस वार्ता में जर्मनी और फ्रांस भी शामिल हुए हैं.

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Ukraine | Konflikt in der Ostukraine
22 जनवरी को डोनेस्क इलाके में तैनात यूक्रेनी सैनिक. तस्वीर: Anna Kudriavtseva/REUTERS

सीमा पर तनाव बढ़ने के एक साल बाद आज रूस और यूक्रेन के प्रतिनिधियों के बीच पहली बार सीधी बातचीत हुई. रूस ने यूक्रेन को तीन तरफ से घेरते हुए इसकी सीमाओं पर अपने एक लाख से ज्यादा सैनिक तैनात किए हैं. सैनिकों की यह तैनाती नवंबर, 2021 में शुरू हुई थी. तभी से अमेरिका और यूरोपीय देश रूस के यूक्रेन पर हमला करने की आशंका जता रहे हैं.

पेरिस में आयोजित नॉरमंडी फॉर्मेट की इस बातचीत में फ्रांस और जर्मनी के राजनीतिक सलाहकार भी शामिल हुए. फ्रांसीसी राष्ट्रपति के करीबी सूत्रों ने इस बातचीत में मानवीय कदम उठाने के साथ-साथ पूर्वी यूक्रेन के डोनबास के हालात पर औपचारिक वार्ता की संभावनाओं पर चर्चा की बात कही थी. इस वार्ता से उम्मीद जताई गई कि कूटनीति के सहारे मौजूदा तनाव को शांत किया जा सकता है.

रूस, यूक्रेन, जर्मनी और फ्रांस के बीच आधिकारिक बातचीत होती रहती है, जिसे नॉरमंडी क्वाट्रेट यानी नॉरमंडी चौकड़ी नाम दिया गया है. हालांकि, पेरिस में आयोजित बैठक 2019 के बाद से इस फॉर्मेट के तहत होने वाली पहली वार्ता है. यूक्रेनी राष्ट्रपति के प्रवक्ता एंड्रिय येरमक ने वार्ता से पहले शांतिपूर्ण समझौते पर पहुंचने की उम्मीद जताई थी.

तनातनी के दौर में बैठक

इस बैठक से पहले अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने चेतावनी दी थी कि अगर रूस यूक्रेन पर हमला करता है, तो वह रूस पर कड़े आर्थिक प्रतिबंध लागू करेंगे. इसमें रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन पर सीधे प्रतिबंध लगाना भी शामिल है.

बाइडेन का यह बयान ऐसे वक्त में आया, जब पश्चिम देश रूस के हमला करने की आशंका के मद्देनजर अपनी जवाबी कार्रवाई का खाका खींचने में जुटे हैं. नाटो ने भी फौज को तैयार रहने को कहा है. हालांकि, रूस ने हमला करने की योजना से इनकार किया है.

दिलचस्प बात यह है कि एक ओर पेरिस में यह वार्ता हो रही थी. दूसरी ओर राष्ट्रपति पुतिन इटली की कुछ बड़ी कंपनियों के प्रमुखों से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए बात कर रहे थे. इटली नाटो का सदस्य भी है और रूस का पांचवां सबसे बड़ा व्यापारिक सहयोगी भी है.

वहीं अमेरिका उन यूरोपीय देशों को अपने पक्ष में करने में जुटा है, जिन्हें रूस गैस की आपूर्ति करता है. रूस से गैस की आपूर्ति होने और अपने व्यावसायिक हितों की वजह से ये देश रूस के खिलाफ मोर्चा खोलने से हिचकिचा रहे हैं. सोमवार को पेंटागन ने 8,500 नाटो सैनिकों को हाई-अलर्ट पर रख दिया था, जिन्हें पूर्वी यूरोप में नाटो के सदस्य देशों में तैनात किया जा सकता है.

Infografik Karte Stationierung russischer Truppenn nahe Ukraine EN

डोनबास का क्या मसला है?

पूर्वी यूक्रेन के डोनबास में रूस-समर्थित अलगाववादियों का नियंत्रण है. हालांकि, रूस इस इलाके में किसी तरह के छद्म युद्ध से इनकार करता है. यूक्रेन और अलगाववादियों के बीच संघर्ष 2014 में शुरू हुआ था, जो कई बरसों तक चला. आधिकारिक तौर पर अभी यहां संघर्ष विराम है. जर्मनी और फ्रांस 2014 से ही रूस और यूक्रेन के बीच मध्यस्थता कर रहे हैं, लेकिन पूर्वी यूक्रेन के मुद्दे पर बातचीत लंबे समय से ठप पड़ी है.

संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक डोनबास में यूक्रेनी सैनिकों और क्रेमलिन के वफादार अलगाववादियों के बीच संघर्ष में अब तक 14,000 से ज्यादा जानें जा चुकी हैं. इस साल जनवरी की शुरुआत में जर्मनी और फ्रांस के प्रतिनिधि तीनपक्षीय वार्ता के लिए रूस और यूक्रेन गए थे. इन वार्ताओं में रूस और यूक्रेन के प्रतिनिधि बातचीत की मेज पर साथ नहीं आए थे.

यूक्रेन और रूस की तनातनी

सोवियत संघ का हिस्सा रहा यूक्रेन अगस्त 1991 में इसके कमजोर वक्त में इससे अलग हो गया था. दिसंबर 1991 में सोवियत संघ का विघटन हो गया था. साल 2014 में यूक्रेन के रूस समर्थित राष्ट्रपति विक्टर यानुकोविच को अपना पद छोड़ना पड़ा था. इससे नाराज रूस ने दक्षिणी यूक्रेन के क्रीमिया प्रायद्वीप को अपने नियंत्रण में ले लिया था.

अपने इस कदम के पीछे रूस ने तर्क दिया था कि यूक्रेन सोवियत संघ का हिस्सा रहा है और क्रीमिया पर उसका ऐतिहासिक दावा रहा है. यूक्रेन और क्रीमिया में एक बड़ी आबादी रूसी भाषा बोलती है. क्रीमिया में रूस से मिलने को लेकर हुए जनमत संग्रह का नतीजा भी रूस के हक में आया था.

बुधवार को ही यूक्रेन के एक वरिष्ठ अधिकारी ने डोनबास के अलगाववादियों से बातचीत की संभावना को खारिज कर दिया था. राष्ट्रपति वोलोडिमीर जेलेन्स्की के चीफ ऑफ स्टाफ एंड्रिय येरमक ने ट्विटर पर एक पोस्ट में लिखा, "पूर्वी यूक्रेन में संघर्ष-विराम का बार-बार उल्लंघन हुआ है. अलगाववादियों के साथ न तो कोई बातचीत हुई है और न ही होगी." येरमक का यह बयान पेरिस में आयोजित वार्ता से पहले आया था.

रूस और नाटो का झगड़ा

1949 में सोवियत संघ का मुकाबला करने के लिए नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गनाइजेशन (NATO) नाम का एक संगठन बनाया गया था. अभी इसमें अमेरिका और ब्रिटेन समेत कई यूरोपीय देश शामिल हैं, जिनकी आपस में सैन्य साझेदारी है. 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद से पूर्वी यूरोप में नाटो का लगातार विस्तार हुआ है. रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन लगातार इसका विरोध करते आए हैं. वह चाहते हैं कि नाटो उसकी सीमा से दूर रहे और दोनों के बीच एक बफर जोन बना रहे.

यूक्रेन की पूर्वी सीमा रूस से लगती है और पश्चिमी सीमा यूरोप से लगती है. एक तरफ नाटो यूक्रेन को सदस्यता देने की बात कह रहा है. दूसरी तरफ रूस यूक्रेन की घेराबंदी करके नाटो से मांग कर रहा है कि वह सोवियत संघ का हिस्सा रहे किसी भी देश में कदम न रखे. रूस की मांग है कि 1990 के बाद से जहां भी नाटो की तैनाती हुई है, उसे वापस लिया जाए. अगर ऐसा नहीं हुआ, तो वह भी ऐसी जगहों पर हथियार तैनात करेगा, जहां से मिसाइलें पांच मिनट में अमेरिका पहुंच सकती हैं.

वीएस/आरपी (डीपीए, रॉयटर्स)