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विज्ञानसंयुक्त राज्य अमेरिका

अंतरिक्ष से दुनिया भर के पानी का पहला सर्वेक्षण करेगी नासा

१४ दिसम्बर २०२२

अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के नेतृत्व में एक अंतरराष्ट्रीय मिशन पहली बार अंतरिक्ष से धरती पर मौजूद सागरों, झीलों और नदियों का सर्वेक्षण करेगा.

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अंतरिक्ष से पृथ्वी के पानी का सर्वेक्षण
वैज्ञानिकों ने इस मिशन के लिए खास सेटेलाइट तैयार किया हैतस्वीर: NASA/JPL-Caltech/REUTERS

इस मिशन यानी सर्फेस वाटर एंड ओशन टॉपोग्राफी को संक्षेप में एसडब्ल्यूओटी कहा जा रहा है. यह वास्तव में अत्याधुनिक रडार सेटेलाइट है जो वैज्ञानिकों को धरती के 70 फीसदी हिस्से में मौजूद जीवनदायिनी जल पर अभूतपूर्व नजर डालने की सुविधा देगा. इससे वैज्ञानिक इस जल के तंत्र और जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को बेहतर ढंग से समझने में सफल होंगे.

इलॉन मस्क की कंपनी स्पेसएक्स का फॉल्कन रॉकेट इस सेटेलाइट के साथ गुरुवार को वांडेनबर्ग यूएस स्पेस फोर्स बेस से उड़ान भरेगा. यह जगह लॉस एंजेलेस के उत्तरपश्चिम में करीब 275 किलोमीटर की दूरी पर है. यहां से एसडब्ल्यूओटी सेटेलाइट अंतरिक्ष के लिए रवाना होगा. अगर सब कुछ योजना के मुताबिक हुआ तो एसयूवी के आकार का यह सेटेलाइट अगले कई महीनों तक रिसर्च डाटा तैयार करेगा.

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20 साल की तैयारी

करीब 20 साल की मेहनत से तैयार हुए एसडब्ल्यूओटी में बेहद उन्नत माइक्रोवेव रडार टेक्नोलॉजी है. वैज्ञानिकों का कहना है कि इसकी मदद से वह धरती पर मौजूद महासागरों, झीलों, जलभंडारों और नदियों की गहराई और सतह की माप करेंगे. उनका कहना है कि पृथ्वी के करीब 90 फीसदी हिस्सों से जुड़ी हाई डेफिनिशन जानकारी उनकी पहुंच में होगी.

अंतरिक्ष से पृथ्वी के पानी का सर्वेक्षण करेगी नासा
पृथ्वी पर मौजूद समूचे जलभंडार का सर्वेक्षण होगातस्वीर: Fokke Baarssen/Zoonar/picture alliance

रडारों की मदद से धरती के बारे में यह आंकड़ा हर 21 दिन में दो बार जमा होगा. रिसर्चरों के मुताबिक यह आंकड़ा महासागरों के सर्कुलेशन मॉडल को सुदृढ़ बनायेगा, मौसम और जलवायु के पूर्वानुमानों को बेहतर करेगा और सूखा  झेल रहे इलाकों में ताजे पानी की आपूर्ति का प्रबंधन सुधारने में मदद करेगा.

यह सेटेलाइट नासा के जेट प्रोपल्शन लैबोरेट्री यानी जेपीएल ने बनाया है. इसे अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी ने फ्रांस और कनाडा की अंतरिक्ष एजेंसियों के साथ मिल कर विकसित किया है और नेशनल रिसर्च काउंसिल के उन 15 मिशनों में एक है जिन्हें एजेंसी एक दशक के भीतर शुरू करना चाहती है.

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महासागर कैसे वातावरण की गर्मी और कार्बन को अवशोषित करते हैं और कैसे यह प्राकृतिक प्रक्रिया वैश्विक तापमान और जलवायु परिवर्तन का संचालन करती है इसका पता लगाने पर मिशन का खासा जोर है. एसडब्ल्यूओटी को इस तरह से तैयार किया गया है कि महासागरों को पृथ्वी की कक्षा से स्कैन करने के दौरान यह छोटी धाराओं और बवंडरों के साथ सतह के ऊपर उठने जैसी चीजों की बारीकी से माप कर सकेगा. माना जाता है कि ऐसी ही जगहों पर सबसे ज्यादा कार्बन और गर्मी होती है. जेपीएल के मुताबिक मौजूदा तकनीकों की तुलना में एसडब्ल्यूओटी 10 गुना ज्यादा रिजॉल्यूशन की क्षमता से लैस है.

आसमान से धरती पर मौजूद पानी का सर्वेक्षण होगा
धरती की सारी अतिरिक्त गर्मी सोख लेते हैं सागरतस्वीर: Zoonar/picture alliance

सागरों के संकेत की खोज

धरती के वातावरण में जो अतिरिक्त गर्मी है, अनुमान लगाया जाता है कि उसका 90 फीसदी महासागर अवशोषित कर लेते हैं. यह वो गर्मी है जो इंसानों की गतिविधियों से ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन के कारण पैदा होती है. जिस तंत्र के जरिये यह काम होता है अगर उसका पता चल जाए तो वैज्ञानिक उस बिंदु का आकलन करने की कोशिश करेंगे जब सागर गर्मी अवशोषित करने की बजाय उसका उत्सर्जन करने लगेंगे. जिसके नतीजे में धरती की गर्मी बहुत तेजी से और बहुत ज्यादा बढ़ेगी.

छोटी सतहों को देखने की खूबी के कारण एसडब्ल्यूओटी सागर तटों पर बढ़ते समुद्र के स्तर के कारण होने वाले प्रभावों का भी अध्ययन कर सकेगा.

नदियों जैसे ताजा पानी के स्रोतों का अध्ययन एसडब्ल्यूओटी की एक और विशेषता है. यह 330 फीट से ज्यादा चौड़ी लगभग सारी नदियों और 10 लाख से ज्यादा झीलों और 15 एकड़ से ज्यादा में फैले जलभंडारों को भी उनकी पूरी लंबाई में देख सकेगा.

एनआर/वीके (रॉयटर्स)