1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

जी20 बैठक के लिए सजी दिल्ली लेकिन उजड़े कई घर

५ सितम्बर २०२३

9-10 सितंबर को होने वाली जी20 बैठक के लिए राजधानी दिल्ली की चमक-धमक के पीछे की तस्वीर उतनी रंगीली नहीं है. तैयारियों के दौर में बुलडोजर चले और टूट गए सालों से बसे घर.

https://p.dw.com/p/4VyJA
दिल्ली में एक मुस्लिम बहुल इलाके में बुलडोजर मुहिम का  विरोध करते स्थानीय लोग
दिल्ली में बुलडोजर मुहिम ने लोगों के घर छीन लिए हैंतस्वीर: Manish Swarup/AP Photo/picture alliance

नई दिल्ली के जनता कैंप की झुग्गियों में रहने वालों को जब पता चला कि जी20 नाम की एक बड़ी बैठक उनके घर से 500 मीटर की दूरी पर होने वाली है तो उन्हें लगा कि इसका फायदा तो उन्हें भी मिलेगा. लेकिन असर यह हुआ कि वे बेघर हो गए.  धर्मेंद्र कुमार, खुश्बू देवी और उनके बच्चे उन प्रभावित लोगों में हैं जिनका घर पिछले कुछ महीनों के दौरान तोड़ा गया है. स्थानीय लोगों समेत लोगों की मदद करने वाले ऐक्टिविस्ट कह रहे हैं कि दिल्ली को सुंदर बनाने की मुहिम ने लोगों के घर छीन लिए. हालांकि सरकार का कहना है कि अनाधिकृत मकानों को ही तोड़ा गया है और यह मुहिम नई नहीं है.

जनता कैंप के मकान

प्रगति मैदान के पास बसे जनता कैंप में करीब चार महीने पहले मकान तोड़ने का सिलसिल शुरू हुआ. मई की एक गर्म सुबह सरकारी कर्मचारी बुलडोजर लेकर पहुंचे. मकान तोड़ने की वीडियो फुटेज से पता चलता है कि टीन की शीटों से बने अस्थायी मकानों को गिराया जा रहा है. बेबस लोग, आंखों में आंसू लिए बस खड़े देख रहे हैं. जनता कैंप जैसी झुग्गी बस्तियों में सालों से लोग रहते आ रहे हैं. ज्यादातर निवासी आस-पास काम करते हैं और अपने छोटे से घरों में सालों से रहते आए हैं.

जहांगीरपुरी में बुलडोजरों ने गिराए मकान
प्रगति मैदान के पास बसे जनता कैंप में करीब चार महीने पहले मकान तोड़ने का सिलसिल शुरू हुआतस्वीर: Altaf Qadri/AP Photo/picture alliance

यह कैंप दरअसल दिल्ली की रिहाइश की एक छोटी सी झलक देता है. इस शहर के दो करोड़ निवासी अनियमित बस्तियों में रहती हैं जो पिछले कुछ दशकों में शहर की जमीन पर उग आई हैं. 2021 में आवास और शहरी विकास मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने संसद में कहा कि 1 करोड़ 35 हजार लोग दिल्ली की अनियमित कॉलोनियों में रहते हैं. दिल्ली में बेघर लोगों के लिए काम करने वाले एक संगठन सेंटर फॉर होलिस्टिक डेवलपमेंट के कार्यकारी निदेशक सुनील कुमार अलेदिया ने कहा, "सरकार सौंदर्यीकरण के नाम पर घर तोड़ रही है और बेबस लोगोंको हटा रही है बिना यह देखे कि उनका क्या होगा. अगर यह करना था तो लोगों को पहले बताना चाहिए और उन्हें कहीं बसाने की जगह ढूंढनी चाहिए."

पिछले महीने सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि सरकारी जमीन पर बसी अनाधिकृत बस्तियों को वहां बने रहने का अधिकार नहीं है. इतना भर किया जा सकता है कि लोगों को जगह खाली करने और दोबारा बसने के लिए मदद के लिए आवेदन करने का वक्त दिया जाए.

मलबा प्रोजेक्ट
बुलडोजर चलने के बाद इन परिवारों के पास टूटे सामान में से चीजें बटोर कर नयी जगह तलाशने के सिवाय कोई विकल्प नहीं बचता.तस्वीर: DW

बस्तियों पर बुलडोजर

जुलाई महीने में आवास और शहरी मामलों के कनिष्ठ मंत्री कौशल किशोर ने संसद को बताया कि 1 अप्रैल से 27 जुलाई के बीच दिल्ली में बस्तियां ढहाने की 49 मुहिम चलीं जिसमें 230 एकड़ सरकारी जमीन को वापिस लिया गया है. उन्होंने कहा कि जी20 के लिए कोई भी मकान नहीं तोड़ा गया है. लेकिन लोगों का अनुभव इसके उलट कहानी कहता है. जनता कैंप में जिनके मकान टूटे उन्हें लगा था कि घर के पास हो रहे इस जलसे जैसी बैठक से गरीबों के हक में कुछ होगा. ऐसे ही एक निवासी मोहम्मद शमीम ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स से कहा, जो हो रहा है वह तो बिल्कुल उलटा है. बड़े लोग आएंगे, हमारी कब्र पर बैठेंगे और खाएंगे.

इसी तरह घर गंवाने वाले कुमार की चिंता है कि यहां आशियाना उजड़ने के बाद कहीं जाने का मतलब है कि बच्चों की पढ़ाई में रुकावट क्योंकि स्कूल पास में है. बुलडोजर चलने के बाद इन परिवारों के पास टूटे सामान में से चीजें बटोर कर नयी जगह तलाशने के सिवाय कोई विकल्प नहीं बचता.

एसबी/ओएसजे (रॉयटर्स)

भारत की जिम्मेदारी बड़ी