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अतिक्रमण हटाने के दौरान लगी आग में मां-बेटी की जलकर मौत

समीरात्मज मिश्र
१४ फ़रवरी २०२३

उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात जिले में अतिक्रमण हटाने के दौरान एक झोंपड़ी में लगी आग में मां-बेटी की मौत हो गई. घटना के बाद गांव में लोग गुस्से में हैं और राजनीतिक दलों के लोग इसकी निंदा कर रहे हैं.

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प्रतीकात्मक फोटो: यूपी के ही प्रयागराज 12 जून 2022 को प्रशासन ने अवैध बता कर गिराई थी यह इमारत
प्रतीकात्मक फोटो: यूपी के ही प्रयागराज 12 जून 2022 को प्रशासन ने अवैध बता कर गिराई थी यह इमारततस्वीर: Ritesh Shukla/REUTERS

कानपुर देहात जिले की मैथा तहसील के मड़ौली गांव के कृष्ण गोपाल दीक्षित के गांव के लोगों ने ही कुछ दिन पहले शिकायत की थी कि उन्होंने ग्राम समाज की जमीन पर कब्जा करके घर बना रखा है. गत 14 जनवरी को राजस्व टीम ने पहुंचकर कृष्ण गोपाल का घर तोड़कर कब्जा हटा दिया था. कृष्ण गोपाल परिवार समेत पहुंचे और डीएम कार्यालय के सामने ही धरने पर बैठ गए. उस वक्त पुलिस और प्रशासनिक अफसरों ने समझाकर परिवार को वापस भेजा दिया.

उसके बाद इन लोगों ने गांव में ही छप्पर डाल लिया लेकिन सोमवार को एक बार फिर टीम आई और अतिक्रमण हटाने के नाम पर छप्पर तोड़ने लगी. कृष्ण गोपाल की पत्नी प्रमिला दीक्षित और उनकी बेटी अपने सामान हटाने के लिए भीतर चली गईं. घर के और लोग भी चले गए. इस दौरान छप्पर में आग लग गई. भीतर से चीखने-चिल्लाने की आवाज आने लगी लेकिन जब तक आग पर काबू पाया जाता, तब तक प्रमिला दीक्षित और उनकी बेटी की जलकर मौत हो गई थी और परिवार के कुछ अन्य लोग भी झुलस गए थे.

क्या कहता है प्रशासन

कानपुर देहात के पुलिस अधीक्षक बीबीजीटीएस मूर्ति ने स्थानीय मीडिया को बताया, "अतिक्रमण हटाने के दौरान प्रमिला दीक्षित और उनकी बेटी वहां पहुंचीं और कुछ देर तक विरोध करने पर खुद को झोपड़ी में बंद कर लिया और बाद में आग लगा ली. गंभीर रूप से झुलसने से दोनों की मौके पर ही मौत हो गई. मामले की जांच की जा रही है. दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी.”

हालांकि परिजनों का कहना है कि अतिक्रमण हटाने आई टीम ने आग लगाई है. मृतक प्रमिला दीक्षित के बेटे शिवम दीक्षित ने डीडब्ल्यू को बताया, "मेरे दादा ने करीब सौ साल पहले यहां बगीचा लगाया था और पिछले बीस साल से हमारा घर भी है. बिना किसी नोटिस के हमारा घर गिरा दिया गया."

शिवम ने बताया कि 14 जनवरी को मैथा तहसील के एसडीएम, तहसीलदार, कानूनगो और लेखपाल रूरा थाने के प्रभारी के साथ अचानक बुलडोजर लेकर उनके घर के बाहर आ धमके थे जिनके साथ एक दर्जन से भी ज्यादा पुलिस वाले थे. उनका कहना है कि बिना किसी पूर्व सूचना और नोटिस के उन्होंने जब घर गिरा दिया तो वे लोग गांव में ही झोंपड़ी डालकर रहने लगे और 13 फरवरी को अचानक इसे भी ढहाने के लिए आ गए. शिवम का कहना है, "जब हम लोगों ने विरोध किया तो उन लोगों ने आग लगा दी जिसमें मेरी मां और बहन की मौत हो गई.”

सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद कड़ी कार्रवाई

सोमवार शाम घटना का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ, जिसमें प्रमिला दीक्षित और उनकी बेटी जलती हुई झोपड़ी के अंदर चीख रही हैं और बाहर पुलिस प्रशासन दल-बल के साथ खड़ा नजर आ रहा है. इतने लोगों की मौजूदगी में दोनों की जलकर मौत हो गई.

मंगलवार को यह मामला सोशल मीडिया पर आने और घटना के कई वीडियो के वायरल होने के बाद सरकार ने अतिक्रमण टीम के कई कर्मचारियों को निलंबित कर दिया. एसडीएम ज्ञानेश्वर प्रसाद को भी निलंबित कर दिया गया और उनसे पूछताछ की जा रही है. जेसीबी चालक को पहले ही गिरफ्तार कर लिया गया है. कृष्ण गोपाल दीक्षित के बेटे शिवम की तहरीर पर एसडीएम ज्ञानेश्वर प्रसाद समेत कुल 38 लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई गई है.

घटना के बाद से ही गांव में तनाव का माहौल है और बड़ी संख्या में पुलिस बल की तैनाती की गई है. स्थानीय लोग और परिजन मुख्यमंत्री को बुलाने की मांग पर अड़े हुए हैं और 24 घंटे बीत जाने के बाद भी शव नहीं उठने दे रहे हैं. परिजनों को जिले के आला अधिकारी समझाने का प्रयास कर रहे हैं.

घटना के बाद गुस्साए ग्रामीणों ने अतिक्रमण हटाने गई टीम पर हमला कर दिया था जिसमें लेखपाल समेत कई लोग घायल हो गए. वहीं आग लगने से कई बकरियों की भी जलकर मौत हो गई.

विपक्ष ने लगाया मुख्यमंत्री पर निशाना

उधर मामले ने राजनीतिक तूल पकड़ना भी शुरू कर दिया. राज्य की योगी आदित्यनाथ सरकार को निशाना बनाते हुए समाजवादी पार्टी के आधिकारिक ट्विटर हैंडल से ट्वीट किया गया है, "योगी सरकार में लगातार ब्राह्मण परिवार निशाना बनाए जा रहे हैं. लगातार चुन-चुन कर ब्राह्मणों के साथ घटनाएं घटित हो रही हैं. दलित पिछड़ा के साथ-साथ ब्राह्मण भी भाजपा शासित योगी सरकार के अत्याचार का निशाना बन रहे हैं.”

कांग्रेस पार्टी ने भी घटना की निंदा करते हुए पीड़ितों को मुआवजा देने की मांग की है. पार्टी के राज्यसभा सदस्य प्रमोद तिवारी कहते हैं, "योगी सरकार की बुलडोजर नीति ने दो लोगों की जान ले ली. कानपुर में ब्राह्मण परिवार के घर पर योगी सरकार का बुलडोजर चल गया. यह बुलडोजर अनुसूचित जाति, पिछड़े वर्ग और ब्राह्मणों को निशाना बना रहा है. बिना जांच कराए और बिना उस क्षेत्र को खाली कराए बुलडोजर चलाया जाना, भारी लापरवाही है. इसके लिए अधिकारी और कर्मचारी तो दोषी हैं ही, बीजेपी सरकार कम दोषी नहीं है. बुलडोजर के बैनर और पोस्टर बनाकर धर्म के नाम पर वोट तो ले लिए हैं परन्तु उसके दुष्परिणाम स्पष्ट रूप से दिखने लगे हैं."

यूपी में कई मामलों में अभियुक्तों के घरों पर बुलडोजर कार्रवाई की आलोचना राजनीतिक दलों से लेकर कोर्ट तक कर चुकी है लेकिन अब ये बुलडोजर आम लोगों की मौत का कारण तक बनते जा रहे हैं.

अपराधियों और रेप और हत्या जैसे जघन्य अपराधों में लिप्त होने वाले अभियुक्तों के खिलाफ इस तरह की कार्रवाई ई के लिए यूपी के निवर्तमान मुख्य मंत्री योगी आदित्यनाथ ने जमकर प्रसिद्धि पाई और बुलडोजर चलाने को अपनी सरकार की मुख्य उपलब्धि के तौर पर पेश किया. यही नहीं, पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव के दौरान इन कार्रवाइयों पर गीत बने, जनसभाओं में इसकी जमकर चर्चा हुई और लोगों को बताया गया कि जीतकर दोबारा आने पर इसे और तेज किया जाएगा. इन्हीं कार्रवाइयों के चलते योगी आदित्यनाथ को ‘बुलडोजर बाबा' के तौर पर भी प्रचारित किया जाने लगा. योगी सरकार दूसरी बार विधानसभा चुनाव जीत भी गई.