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संकेतों की अनदेखी का नतीजा थी वायनाड की त्रासदी

चारु कार्तिकेय
३१ जुलाई २०२४

केरल के वायनाड और आस पास के इलाके लंबे समय से भूस्खलन संभावित क्षेत्र रहे हैं. जानकारों का कहना है कि इसके बावजूद यह सुनिश्चित करने की कोई कोशिश नहीं की गई कि यहां विकास संवेदनशील तरीके से किया जा सके.

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वायनाड में भूस्खलन की एक साइट का ड्रोन से नजारा
कई समितियों ने वायनाड को पर्यावरण की दृष्टि से बेहद संवेदनशील बताया है लेकिन आज भी सिफारिशें लागू नहीं हुई हैंतस्वीर: Francis Mascarenhas/REUTERS

वायनाड की त्रासदी में मरने वालों की संख्या 150 के पार चली गई है. बल्कि इंडियन एक्सप्रेस अखबार की वेबसाइट के मुताबिक अभी तक कम से कम 156 लाशें मिल चुकी हैं. चलियार नदी में भूस्खलन के स्थान से कई किलोमीटर नीचे तक लाशें मिल रही हैं.

केरल की मातृभूमि वेबसाइट के मुताबिक 1,000 से ज्यादा लोगों को बचा भी लिया गया है लेकिन अभी भी सैंकड़ों लोग या तो लापता हैं या कहीं ना कहीं फंसे हुए हैं. एनडीआरएफ, सेना, राज्य पुलिस और अन्य एजेंसियों के 500-600 जवान बचाव कार्य में लगे हुए हैं.

संकेतों की अनदेखी

बारिश अब रुक चुकी है, जिसकी वजह से बचाव कार्य में वैसी बाधा नहीं आ रही है जैसी मंगलवार को आ रही थी. इस बीच यह समझने की कोशिश की जा रही है कि आखिर इतनी बड़ी त्रासदी क्यों हुई और भविष्य में ऐसा कुछ दोबारा होने से कैसे रोका जा सकता है.

मिट्टी और गाद से भरे एक क्षतिग्रस्त मकान में मिट्टी में सनी हुई एक परिवार की तस्वीर
भूस्खलन के बाद अभी भी सैकड़ों लोग लापता हैंतस्वीर: AP Photo/picture alliance

कई जानकारों का कहना है कि यह सब संकेतों की अनदेखी का नतीजा है. यह पूरा इलाका इकोलॉजिकल रूप से संवेदनशील इलाका है. पूरा का पूरा पश्चिमी केरल सीधी ढलान वाला पहाड़ी इलाका है, जहां भूस्खलन की प्रबल संभावना रहती है.

2018 की बाढ़ के समय में भी यहां कई स्थानों पर भूस्खलन हुआ था. 2019 में भी भूस्खलन की छोटी घटनाएं हुई थी. केरल विश्वविद्यालय में भूविज्ञान के असिस्टेंट प्रोफेसर के एस सजिनकुमार ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि वायनाड के आस पास के इलाकों में मिट्टी के नीचे सख्त पत्थर हैं.

जब ज्यादा बारिश होती है तो मिट्टी नमी से भर जाती है, फिर वह पानी पत्थरों तक पहुंच जाता है और मिट्टी और पत्थरों के बीच बहने लगता है. इससे पत्थरों पर मिट्टी की पकड़ कमजोर हो जाती है और भूस्खलन शुरू हो जाता है.

गाडगिल समिति ने बताया संवेदनशील

शायद यही कारण है कि वायनाड में मेप्पडी पंचायत के इलाके को 10 साल पहले दो-दो समितियों ने इको-सेंसिटिव इलाका बताया था. हालांकि सरकार ने कभी इस आधार पर कोई फैसला नहीं लिया.

केरल समेत पूरे पश्चिमी घाट के संरक्षण के लिए एक रणनीति बनाने के लिए 2010 में भारत सरकार के पर्यावरण मंत्रालय ने एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया था. जाने माने इकोलॉजिस्ट माधव गाडगिल के नेतृत्व में बनी इस समिति ने पूरे पश्चिमी घाट को तीन ईकोलॉजिकली सेंसिटिव एरिया (ईएसए) क्षेत्रों में बांटा.

वायनाड में भूस्खलन की एक साइट का ड्रोन से नजारा
जानकार कहते हैं वायनाड की सतह यहां हो रहे निर्माण और गतिविधियों का बोझ नहीं सह सकतीतस्वीर: Francis Mascarenhas/REUTERS

गाडगिल समिति ने 60 प्रतिशत इलाके को सबसे ऊंची प्राथमिकता वाले ईएसए-1 क्षेत्र में रखा और कहा कि इस क्षेत्र में किसी भी तरह की विकास परियोजनाओं की इजाजत नहीं दी जानी चाहिए.

यहां ना खनन होना चाहिए, ना ऊर्जा संयंत्र बनने चाहिए और ना ही कोई नए बांध बनने चाहिए. ईएसए-2 में आने वाले क्षेत्र के लिए भी ऐसी ही अनुशंसा की गई. वायनाड और आस पास का इलाका इन्हीं दोनों क्षेत्रों में पड़ता है.

इस रिपोर्ट का इन उद्योगों से जुड़े लोगों ने और राज्य सरकारों ने कड़ा विरोध किया. बाद में केंद्र सरकार ने इस समिति की रिपोर्ट को खारिज कर दिया और यही काम वरिष्ठ वैज्ञानिक और इसरो के पूर्व अध्यक्ष के कस्तूरीरंगन के नेतृत्व में एक नई समिति को सौंपा.

कस्तूरीरंगन समिति की रिपोर्ट

अप्रैल, 2013 में इस नई समिति ने अपनी रिपोर्ट सौंपी जिसमें कहा गया कि पश्चिमी घाट के सिर्फ 37 प्रतिशत इलाके को ईएसए घोषित करने की जरूरत है और सिर्फ इसी इलाके में खनन आदि गतिविधियों पर प्रतिबंध लगाने की जरूरत है.

इस समिति पर गाडगिल समिति की सिफारिशों को कमजोर करने का आरोप लगा, लेकिन इस रिपोर्ट ने भी वायनाड और आस पास के कुछ इलाकों को ईएसए घोषित करने का समर्थन किया. उसी साल केरल सरकार ने इस विषय पर अपनी एक समिति बनाई और इस समिति ने भी इस इलाके के बारे में यही कहा.

जब बाढ़ की वजह से आई थी केरल में तबाही

हालांकि किसी भी समिति की अनुशंसा का अभी तक पालन नहीं हुआ है. 11 साल बीत चुके हैं लेकिन किन इलाकों को ईएसए घोषित किया जाएगा इसका अभी तक यह फैसला भी नहीं हुआ है. इस समय केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय की एक और समिति इस विषय पर काम कर रही है.

व्यापक दिशानिर्देशों के अभाव में पर्यावरण की दृष्टि से इतने संवेदनशील इलाके में किस गतिविधि की अनुमति दी जाए और किसे नहीं यह स्पष्ट नहीं है. ऐसे में यहां फसलें उगाने और उत्खनन से ले कर सड़क और रिसोर्ट बनाने तक सब कुछ हो रहा है.

आज भी लंबित हैं दिशानिर्देश

टाइम्स ऑफ इंडिया अखबार के मुताबिक मुंडक्कई दो दशक पहले सिर्फ एक छोटा सा गांव हुआ करता था लेकिन पर्यटन की वजह से धीरे धीरे वहां निर्माण होता गया और वह मकान और होमस्टे से भरा हुआ एक कस्बा बन गया. इस निर्माण की वजह से यहां जंगल भी खत्म हो रहे हैं और मिट्टी भी.

भूस्खलन से प्रभावित एक क्षतिग्रस्त मकान और उसके बाहर खड़ी एक गाड़ी
वायनाड ही नहीं पूरे केरल में भूस्खलन की घटनाएं बढ़ रही हैंतस्वीर: AP/dpa/picture alliance

भूस्खलन की घटनाएं भी बढ़ रही हैं. डाउन टू अर्थ वेबसाइट के मुताबिक पिछले छह सालों में पूरे केरल में भूस्खलन में करीब 300 लोगों की जान चली गई. केरल आपदा प्रबंधन प्राधिकरण मानता है कि वायनाड जिले का 40 प्रतिशत से भी ज्यादा हिस्सा भूस्खलन की आशंका वाला है.

प्राधिकरण ने चार साल पहले चेतावनी दी थी कि वायनाड में एक बड़ा हादसा हो सकता है और कहा था कि यहां से करीब 4,000 परिवारों का कहीं और पुनर्वास करवाना चाहिए. लेकिन ऐसा हुआ नहीं और इसका नतीजा वायनाड अब भुगत रहा है.