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समाजभारत

आखिर कब तक चलेगी जूनियर डॉक्टरों की हड़ताल?

प्रभाकर मणि तिवारी
२ अक्टूबर २०२४

पश्चिम बंगाल में जूनियर डॉक्टर एकबार फिर हड़ताल पर चले गए हैं. उनका आरोप है कि राज्य सरकार ने उनकी सुरक्षा और सरकारी अस्पतालों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की दिशा में पर्याप्त कदम नहीं उठाए हैं.

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कोलकाता के आर. जी. कर अस्पताल के बाहर अपने बीमार बच्चे को गोद में थामे एक शख्स.
जूनियर डॉक्टरों की हड़ताल के कारण राज्य में सार्वजनिक स्वास्थ्य ढांचे के गंभीर रूप से प्रभावित होने की आशंका हैतस्वीर: Prabhakar/DW

पश्चिम बंगाल सरकार ने दावा किया है कि जूनियर डॉक्टरों की हड़ताल के कारण इलाज के अभाव में राज्य में 29 लोगों की मौत हो चुकी है. अब नए सिरे से आंदोलन की अपील के बाद सवाल उठ रहा है कि आखिर स्वास्थ्य जैसी जरूरी सेवा में डॉक्टरों का यूं काम बंद करना कितना लंबा खिंचेगा?

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कोलकाता के आर. जी. कर अस्पताल में इलाज के लिए आए दो लोग.
राज्य सरकार का कहना है कि जूनियर डॉक्टरों के आंदोलन के स्वास्थ्य ढांचा चरमरा जाएगातस्वीर: Prabhakar/DW

कोलकाता के आर.जी.कर मेडिकल कॉलेज अस्पताल में एक जूनियर डॉक्टर के रेप और हत्या की घटना के विरोध में जूनियर डॉक्टरों के लंबे आंदोलन के कारण राज्य की स्वास्थ्य सेवाएं बदहाल हो गई थीं. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के साथ बैठक में डॉक्टरों की कुछ मांगों पर सहमति होने के बाद आंदोलन खत्म कर स्वास्थ्यकर्मी काम पर लौटे थे. अब राज्य के सबसे बड़े त्योहार दुर्गा पूजा से ठीक पहले बेमियादी आंदोलन की अपील से स्वास्थ्य सेवाओं के पूरी तरह चरमराने का अंदेशा पैदा हो गया है.

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जूनियर डॉक्टरों ने हड़ताल की क्या वजह बताई है?

आर.जी. कर की घटना के विरोध में 'वेस्ट बंगाल जूनियर डॉक्टर्स फ्रंट' के बैनर तले आंदोलनरत जूनियर डॉक्टर 21 सितंबर को काम पर लौटे थे.  अब 10 दिन बाद ही उन्होंने 2 अक्टूबर से दोबारा काम बंद करने का एलान किया है. 30 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई के बाद करीब आठ घंटे चली बैठक के बाद जूनियर डॉक्टरों ने काम बंद के फैसले का एलान किया.

अपने मोबाइल फोन पर सुप्रीम कोर्ट की कार्यवाही देख रहे दो जूनियर डॉक्टर
30 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार से कहा कि वह डॉक्टरों की मांगें पूरी करने के लिए 15 अक्टूबर तक सभी कदम उठाएतस्वीर: Subrata Goswami/DW

संगठन ने चेतावनी दी है कि जब तक उनकी 10 सूत्री मांगों को पूरा करने की दिशा में ठोस पहल नहीं होती, आंदोलन जारी रहेगा. इन मांगों में अस्पताल परिसरों में सुरक्षा मुहैया कराना, डॉक्टरों के साथ होने वाली मारपीट की घटनाओं पर अंकुश लगाने की दिशा में ठोस कदम उठाना और तमाम अस्पतालों में सीसीटीवी कैमरे लगाना शामिल हैं. संगठन का आरोप है कि सरकार के आश्वासन के बावजूद विभिन्न अस्पतालों में मारपीट की घटनाएं लगातार हो रही हैं. ऐसी परिस्थिति में काम करना संभव नहीं है.

कोलकाता की घटना पर बढ़ती सियासत के बीच सीबीआई पर उठते सवाल

जूनियर डॉक्टर्स फ्रंट के प्रवक्ता अनिकेत महतो डीडब्ल्यू से बातचीत में कहते हैं, "2 अक्टूबर को कोलकाता में हम एक रैली का आयोजन करेंगे. उसमें महानगर के बुद्धिजीवी और प्रमुख नागरिक भी हिस्सा लेंगे. फिलहाल यह तय नहीं किया गया है कि दुर्गा पूजा के दौरान हमारी भूमिका क्या रहेगी." इससे पहले अगस्त और सितंबर के महीनों में जब जूनियर डॉक्टर आंदोलन कर रहे थे, तो उन्हें आम लोगों का भारी समर्थन मिल रहा था. लोग धरने पर बैठे डॉक्टरों के लिए खाने-पीने का सामान भी भेज रहे थे.

कोलकाता में दुर्गा पूजा के पंडाल के लिए एक कलाकार की बनाई मूर्ति.
दुर्गा पूजा बंगाल में हिंदुओं का सबसे बड़ा त्योहार हैतस्वीर: Subrata Goswami/DW

दुर्गा पूजा के बीच डॉक्टरों की हड़ताल से चिंता

दुर्गा पूजा एक बड़ा त्योहार है. कोलकाता समेत अन्य इलाकों में पंडालों और बाजारों में काफी भीड़-भाड़ रहती है. बड़े जुटान के कारण दुर्घटनाओं का भी जोखिम रहता है. ऐसे में डॉक्टरों की भूमिका बेहद अहम हो जाती है. इस वजह से सवाल उठ रहा है कि अगर जूनियर डॉक्टर आंदोलन पर रहे, तो परिस्थिति को कैसे संभाला जाएगा?

कोलकाता में रहने वालीं कविता दास का बेटा बीते दिनों सड़क हादसे में घायल हुआ. आरोप है कि जूनियर डॉक्टरों के आंदोलन के दौरान इलाज के अभाव में उसकी मौत हो गई. डीडब्ल्यू हिन्दी से बातचीत में कविता दास कहती हैं, "अगर डॉक्टरों की सरकार से कोई नाराजगी है, तो उसका खामियाजा आम लोग क्यों भरेंगे? ज्यादातर लोग इलाज के लिए सरकारी अस्पतालों पर ही निर्भर हैं. हम जैसे लोग निजी अस्पतालों का महंगा खर्च नहीं उठा सकते."

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बीते दिनों जब जूनियर डॉक्टर आंदोलन कर रहे थे, उस दौरान सीनियर डॉक्टरों ने कुछ हद तक परिस्थिति को संभालने का प्रयास किया था. इसके बावजूद सरकारी अस्पतालों में मरीजों की भीड़ के कारण आम लोगों को कई जरूरी सेवाओं से वंचित रहना पड़ा था. अब दुर्गा पूजा के दौरान ज्यादातर सीनियर डॉक्टर छुट्टी पर रहते हैं. ऐसे में जूनियर डॉक्टरों के आंदोलन से मरीजों को भारी परेशानी उठानी पड़ सकती है.

कोलकाता के आर. जी. कर अस्पताल में मरीज को लेकर आई एक वैन के बाहर खड़ा एक शख्स.
पश्चिम बंगाल में आंदोलनरत जूनियर डॉक्टर 21 सितंबर को काम पर लौटे थे और स्वास्थ्य सेवाएं धीरे-धीरे सामान्य होने लगी थींतस्वीर: Satyajit Shaw/DW

तृणमूल कांग्रेस ने किया हड़ताल का विरोध

सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) ने डॉक्टरों के ताजा फैसले का विरोध किया है. राज्य सरकार की दलील है कि जूनियर डॉक्टरों के आंदोलन के कारण बदहाल स्वास्थ्य सेवाएं अब धीरे-धीरे पटरी पर लौट रही हैं. अब अचानक नए सिरे से आंदोलन के कारण राज्य का स्वास्थ्य ढांचा पूरी तरह चरमरा जाएगा.

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टीएमसी के प्रवक्ता कुणाल घोष ने डीडब्ल्यू से बातचीत में कहा, "यह फैसला बेहद दुर्भाग्यजनक है. आखिर किसकी सलाह पर और किसका हित साधने के लिए नए सिरे से आंदोलन का फैसला किया गया है?" कुणाल घोष का कहना है कि डॉक्टरों के इस आंदोलन का खामियाजा आम लोगों को भरना पड़ेगा. उन्होंने जूनियर डॉक्टरों से पुनर्विचार करने की अपील की है.

1 अक्टूबर को कोलकाता में जूनियर डॉक्टरों द्वारा आयोजित रैली की एक तस्वीर.
डॉक्टरों ने सरकार के आगे 10 प्रमुख मांगें रखी हैं. इनमें अस्पतालों की सुरक्षा व्यवस्था बढ़ाना और स्वास्थ्य ढांचा बेहतर करना शामिल हैतस्वीर: Prabhakar/DW

वहीं, जूनियर डॉक्टरों के प्रवक्ता अनिकेत महतो कहते हैं, "सरकार आज कह दे कि वह हमारी मांगों को पूरा करने की दिशा में ठोस कदम उठा रही है, तो हम तुरंत अपना फैसला वापस ले लेंगे. हम भी काम पर लौटना चाहते हैं." एक जूनियर डॉक्टर ने नाम न छापने की शर्त पर डीडब्ल्यू को बताया, "कई लोग नए सिरे से आंदोलन के खिलाफ थे, लेकिन ज्यादातर सदस्यों का कहना था कि आंदोलन के जरिए सरकार पर दबाव नहीं बढ़ाया गया, तो इस लड़ाई में जीत संभव नहीं है."

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स्वास्थ्य विभाग की रिपोर्ट क्या कहती है?

स्वास्थ्य सेवाओं के चरमराने की आशंका को भी जूनियर डॉक्टर सही नहीं मानते. एक जूनियर डॉक्टर देवाशीष हालदार डीडब्ल्यू से कहते हैं कि पश्चिम बंगाल में पंजीकृत निजी और सरकारी अस्पतालों की संख्या करीब 3,000 है. जूनियर डॉक्टर तो राज्य के 26 सरकारी मेडिकल कॉलेजों में ही काम करते हैं. इसके अलावा नौ निजी मेडिकल कालेज भी हैं. देवाशीष हालदार का कहना है कि आंकड़ों के लिहाज से देखें, तो राज्य के कुल अस्पतालों में से महज 0.52 फीसदी में ही जूनियर डॉक्टर हैं. उनकी तादाद करीब 7,500 है, ऐसे में स्वास्थ्य सेवाओं के चरमराने का दावा सही नहीं है.

स्वास्थ्य विभाग की ओर से राज्य सचिवालय को पिछले महीने भेजी गई एक रिपोर्ट में कहा गया था कि जूनियर डॉक्टरों के आंदोलन के कारण आउटडोर सेवाएं और महत्वपूर्ण ऑपरेशनों की संख्या घटकर आधी रह गई थी. स्वास्थ्य सचिव ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, जो स्वास्थ्य मंत्री भी हैं, को यह रिपोर्ट सौंपी थी.

रिपोर्ट में कहा गया था कि एक ओर जहां सरकारी अस्पतालों में मरीजों की भीड़ तेजी से कम हुई है, वहीं निजी अस्पतालों में उनकी तादाद बढ़ रही है. इसकी वजह से 'स्वास्थ्य साथी' के मद में खर्च तेजी से बढ़ा है. राज्य सरकार की 'स्वास्थ्य साथी परियोजना' के तहत हर व्यक्ति को सरकारी या निजी अस्पतालों में पांच लाख तक के मुफ्त इलाज की सुविधा मिलती है.

स्वास्थ्य विभाग की रिपोर्ट के मुताबिक, 10 अगस्त को जूनियर डॉक्टरों का आंदोलन शुरू होने के बाद से इस मद में रोजाना औसतन छह करोड़ से भी ज्यादा का भुगतान किया गया है, जबकि इससे पहले तक इस मद में रोजाना औसतन तीन करोड़ रुपए खर्च होते थे.