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विपक्षी नेता और जर्मन नागरिक को ईरान में मौत की सजा

२२ फ़रवरी २०२३

अमेरिका से काम करने वाले एक सरकार विरोधी संगठन के एक सदस्य को ईरान ने मौत की सजा सुनाई है. जर्मन नागरिकता ले चुके इस नेता को 2020 में गिरफ्तार किया गया था.

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ईरानी मूल के जर्मन नागरिक जमशेद शरमाद
ईरानी मूल के जर्मन नागरिक जमशेद शरमाद तस्वीर: Koosha Falahi/Mizan/dpa/picture alliance

ईरान ने एक विपक्षी नेता को मौत की सजा सुनाई है, जिससे जर्मनी और अमेरिका में तीखी प्रतिक्रिया हुई है. ईरान का कहना है कि 67 वर्षीय ईरानी-जर्मन जमशेद शरमाद को 2008 में एक मस्जिद में बम धमाके के लिए मौत की सजा सुनाई गई है. उसका कहना है कि शरमाद एक हथियारबंद उग्रवादी संगठन के नेता हैं जो देश में राजशाही को दोबारा स्थापित करने के लिए काम करता है. ईरान में 1979 की क्रांति के बाद राजशाही खत्म हो गई थी.

जमशेद शरमाद के परिवार ने कहा है कि वह सिर्फ संगठन के प्रवक्ता हैं और उनकी किसी हमले में कोई भूमिका नहीं थी. उनका आरोप है कि शरमाद को कैलिफॉर्निया के ग्लेंडोरा स्थित उनके घर से अगवा किया गया था.

ईरान के इस फैसले पर जर्मनी में तीखी प्रतिक्रिया हुई है. जर्मन विदेश मंत्री अनालेना बेयरबॉक ने कहा कि मौत की सजा पूरी तरह अस्वीकार्य है और इसका ‘स्पष्ट जवाब' दिया जाएगा. हालांकि उन्होंने इस में बारे में विस्तार से कुछ नहीं बताया कि जर्मनी क्या कदम उठा सकता है.

बेयरबॉक ने कहा कि शरमाद के मुकदमे की निष्पक्ष सुनवाई की शुरुआत तक नहीं हुई और सुनवाई में जर्मन काउंसलर की मौजूदगी का अनुरोध लगातार खारिज किया जाता रहा. उन्होंने कहा कि शरमाद की गिरफ्तारी के हालात भी सवालिया निशानों के घेरे में हैं.

विरोध प्रदर्शनों के बीच

ईरान में और जर्मनी समेत कई अन्य देशों में भी पिछले कई महीनों से वहां की सरकार के विरोध में प्रदर्शन हो रहे हैं. सरकार ने प्रदर्शनकारियों के खिलाफ बेहद सख्त कदम उठाए हैं. ईरान के बाहर रहने वाले राजशाही समर्थक ईरानी भी इन विरोध प्रदर्शनों का साथ दे रहे हैं.

ईरानी न्यायालय की वेबसाइट पर कहा गया है कि शरमाद को आतंकी साजिश रचने का दोषी पाया गया है. उनके खिलाफ रेवॉल्यूशनरी कोर्ट में मुकदमा चलाया गया था. इस अदालत में सुनवाई बंद दरवाजों के भीतर होती है. मानवाधिकार संगठनों का कहना है कि इस अदालत में आरोपियों को अपने लिए वकील चुनने तक की आजादी नहीं होती और ना ही उन्हें वे सबूत दिखाए जाते है जिनके आधार पर उनके खिलाफ मुकदमा चलाया जाता है.

ईरानी अधिकारियों ने शरमाद पर कई बम धमाकों की साजिश का आरोप लगाया है, जिनमें 2008 में शिराज शहर में हुसैनी सईद अल-शोहदा मस्जिद में हुआ बम विस्फोट भी शामिल है. इस विस्फोट में 14 लोगों की जान चली गई थी और 200 से ज्यादा घायल हुए थे. शरमाद पर अमेरिकी जासूसी एजेंसियों के साथ मिलकर ईरानी मिसाइल कार्यक्रम के लिए जासूसी करने का भी आरोप लगाया गया.

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सरकारी ईरानी टीवी ने कहा कि शरमाद के संगठन ने ही तेहरान में अयोतोल्लाह खोमैनी के घर पर 2010 में बम धमाका कराया था, जिसमें कई लोग घायल हो गए थे. ईरानी अधिकारियों का आरोप है कि वह तोंदार नामक संगठन के नेता हैं. इस समूह को ईरान की राज सभा के नाम से भी जाना जाता है. 2009 में शरमाद पर अमेरिका में जानलेवा हमला भी हुआ था, जिसमें वह बाल-बाल बच गए थे.

अचानक लापता हो गए थे शरमाद

शरमाद के परिवार का कहना है कि जुलाई 2020 में वह व्यापारिक काम से दुबई के रास्ते भारत जा रहे थे जब अचानक उन्होंने फोन का जवाब देना बंद कर दिया. फोन की लोकेशन हिस्ट्री की जांच से पता चला कि वह एयरपोर्ट के पास स्थित अपने होटल से निकलकर दक्षिण में सीमा पार कर ओमान गए जहां सोहार बंदरगाह पर उनके फोन को आखिरी बार दर्ज किया गया.

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दो दिन बाद ईरान ने ऐलान किया कि ‘एक जटिल अभियान में' शरमाद को पकड़ लिया गया है. तब सरकार ने उनकी एक तस्वीर भी प्रकाशित की थी जिसमें उनकी आंखों पर पट्टी बंधी नजर आ रही थी. परिवार का कहना है कि शरमाद को 18 महीने तक हिरासत में अकेले बंद रखा गया और पिछले साल फरवरी में उन पर मुकदमा शुरू हुआ.

एमनेस्टी इंटरनेशनल की जर्मनी शाखा में मध्य-पूर्व की विशेषज्ञ कात्या म्युलर-फालबुश का कहना है कि मानवाधिकार संगठन मौत की सजा के फैसले से अवाक है. एक बयान में उन्होंने कहा कि शरमाद पर दिखावटी मुकदमा चलाया गया और उन्हें अपना वकील चुनने तक का अधिकार नहीं दिया गया.

वीके/एए (रॉयटर्स, एएफपी)

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