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भारत की डिजिटल क्रांति ने बदला टीनएज फैशन

अविनाश द्विवेदी
२० अगस्त २०२१

पिछले कुछ सालों में भारत में उभरे 'कूल जनरेशन' का फैशन सेंस कॉपी करना हो तो साइड स्वेप्ट या फेड हेयरस्टाइल रखिए, रेट्रो राउंड सनग्लासेज लगाइए या फिर हुडी और रिप्ड एंकल लेंथ जींस के साथ स्पोर्ट्स शू या लोफर्स पहन लीजिए.

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तस्वीर: AFP/K. Desouki

पिछले महीने भारत में एक 17 साल की लड़की की उसके पहनावे के लिए हत्या के बाद जबरदस्त गुस्सा दिखा. उत्तरप्रदेश के देवरिया जिले की इस लड़की की हत्या उसके रिश्तेदारों ने सिर्फ इसलिए कर दी क्योंकि उसने जींस पहनी थी. लेकिन यह इलाके की आम तस्वीर नहीं है. एक ओर उत्तरप्रदेश के इस इलाके में अब भी लड़कियों का जींस पहनना मना है, वहीं नेहा के घर से सिर्फ पचास किमी दूर पड़ोसी जिले गोरखपुर में नेहा की उम्र की ही लड़कियां न सिर्फ लेटेस्ट फैशन फॉलो कर रही हैं बल्कि इंस्टाग्राम जैसे सोशल मीडिया पर इंफ्लुएंसर बनने की ओर कदम भी बढ़ा चुकी हैं.

ज्यादातर मध्यमवर्गीय और निम्न मध्यमवर्गीय परिवारों से आने वाली ये टीनएज लड़कियां स्कूलों के पास, पार्क में या सड़कों पर इंस्टाग्राम रील्स बनाती देखी जा सकती हैं. कभी मौसम सही नहीं रहा तो ये अपने कमरे में या घर की छतों पर ही लेटेस्ट ट्रेंड के वीडियो बना लेती हैं लेकिन मजाल जो कभी कंटेट सही समय पर पोस्ट न हो पाए. पहले ये अपना ज्यादातर कंटेंट टिकटॉक पर पोस्ट करती थीं लेकिन पिछले साल चीन के साथ सीमा तनाव के बाद भारत सरकार ने टिकटॉक को बैन कर दिया.

कॉन्फिडेंट हैं ये कंटेट क्रियेटर्स

सिर्फ लड़कियां ही नहीं लड़के भी लगभग पूरे भारत में फैल चुके इस ट्रेंड का हिस्सा हैं. 'जेन जी' (साल 1995 के बाद पैदा हुए) और 'जेन अल्फा' (साल 2010 के बाद पैदा हुए) कहे जाने वाले ये नौजवान और टीनएज लड़के-लड़कियां हर लेटेस्ट ट्रेंड से वाकिफ हैं. वैसे इस 'कूल जनरेशन' का बेसिक फैशन सेंस कॉपी करना हो तो साइड स्वेप्ट या फेड हेयरस्टाइल रखिए, रेट्रो राउंड सनग्लासेज लगाइए फिर हुडी और रिप्ड एंकल लेंथ जींस के साथ स्पोर्ट्स शू या लोफर्स पहन लीजिए. बस, आप भी इनकी तरह कूल बन जाएंगे. फिर भी इनकी तरह कॉन्फिडेंट हो पाएं ये जरूरी नहीं है.

तो कहां से आता है ये कॉन्फिडेंस? इस सवाल के जवाब में साइकोलॉजिस्ट हिमानी कुलकर्णी कहती हैं, "कॉन्फिडेंस की वजह काफी हद तक टीनएज है क्योंकि इस दौरान खुद को जाहिर करने की इच्छा बहुत ज्यादा होती है. तब इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि दूसरे क्या सोचते हैं. और हम सभी के अंदर किसी न किसी तरह की क्रिएटिविटी छिपी है लेकिन सबके पास अपना हुनर दिखाने के लिए बड़े स्टेज उपलब्ध नहीं हैं. ऐसे में इंस्टा रील्स और टिकटॉक जैसे माध्यमों ने इन्हें एक प्लेटफॉर्म दिया है. थोड़ा कॉन्फिडेंस इन माध्यमों ने भी बढ़ाया है."

कैसे फॉलो करते हैं फैशन और ट्रेंड

यूं तो इनके सनग्लासेज और हेयरस्टाइल में आपको 'के-पॉप स्टार्स' का प्रभाव दिखेगा लेकिन इनमें से ज्यादातर लोकल इंस्टाग्राम इंफ्लुएंसर्स से इंफ्लुएंस्ड हैं. हर पीढ़ी के अपने हीरो होते हैं. वैसे ही इनके हीरो हैं, रियाज अली, फैसल शेख उर्फ फैजू, निशा गुरगैन, जन्नत जुबैर, आवेज दरबार और कई लाखों-करोड़ों की फैन फॉलोइंग रखने वाले इंस्टाग्रामर. ये सभी दुनिया भर के बेहतरीन फैशन को भारत में घर-घर तक पहुंचाने का काम कर रहे हैं.

दिल्ली की 13 साल की अंजनी हों, देवरिया के 15 साल के मोहम्मद फैज सिद्दिकी उर्फ फैज या कानपुर की 21 साल की प्रियांशी गुप्ता. इंस्टाग्राम के इन सभी बड़े सितारों के नाम इनकी जबान पर रहते हैं. ये सभी नए फैशन और ट्रेंड की जानकारी भी इंस्टाग्राम से ही हासिल करते हैं. हालांकि अंजनी कहती हैं, उनकी नजर दक्षिण कोरियाई बैंड बीटीएस के स्टार्स पर भी रहती है.

द स्लम प्रिंसेस ऑफ इंडिया

नहीं करनी है मॉडलिंग-एक्टिंग

कानपुर की रहने वाली प्रियांशी गुप्ता फिलहाल एमए कर रही हैं. एक साधारण परिवार से आने वाली प्रियांशी अपना खर्च खुद उठाने के लिए बच्चों को ट्यूशन पढ़ाती हैं और अपने भाई, मां और मौसी के साथ भी इंस्टा रील्स बनाती हैं. हालांकि मॉडलिंग और एक्टिंग की राह पर जाने के बजाए वे टीचिंग लाइन में जाना चाहती हैं.

फैज फिलहाल पड़ोसी जिले गोरखपुर में रहकर पढ़ाई कर रहे हैं. उनके पिता सऊदी अरब में नौकरी करते हैं और मां गृहणी हैं. वे भी आगे मॉडलिंग या एक्टिंग करने के बजाए चार्टर्ड अकाउंटेंट बनना चाहते हैं. इसी तरह अंजनी को भी एक्टिंग पसंद तो है लेकिन वे कहती हैं, "एक्टर नहीं बनी तो डॉक्टर बनूंगीं."

साइकोलॉजिस्ट हिमानी कुलकर्णी कहती हैं, "भारत में नेपोटिज्म और स्ट्रगल को लेकर कहानियां इतनी आम हैं कि लोग पूरे विश्वास के साथ एक्टर बनने की बात नहीं कह पाते. लेकिन दूसरों को अपना हुनर दिखाकर जरूर जानना चाहते हैं कि वे हमारे बारे में क्या सोचते हैं."

कंटेंट में धार्मिक और जातीय टच

इन इंस्टा रील्स और वीडियोज में धार्मिक, जातीय और अस्मितावादी कंटेट भी होता है. 21 साल की उम्र से ही वीडियो बनाते आ रहे मध्यप्रदेश के बडवानी जिले के राजा कहते हैं, "मेरे वीडियो आदिवासी कल्चर के इर्द-गिर्द होते हैं. आदिवासी कल्चर के अलावा वीडियोज में 'प्यार-मोहब्बत' और 'हल्की-फुल्की छेड़छाड़' भी होती है." इसी तरह हिंदी महीने सावन में बनाए वीडियोज में प्रियांशी के माथे पर चंदन तिलक लगा रहता है.

इस पर हिमानी कहती हैं, "जो बातें जेन जी और जेन अल्फा के बच्चे अपने वीडियोज में कर ले रहे हैं वो मिलेनियल्स (साल 1980 के बाद पैदा हुए लोग) के लिए भी कहनी मुश्किल थी. रिश्तों, जेंडर और भविष्य ही नहीं अस्मिता पर भी ये कंटेट क्रिएटर स्पष्ट तौर पर अपनी सोच रख रहे हैं. इन रील्स में 'जिंदगी क्या है', 'दोस्ती क्या है', 'प्यार क्या है' जैसी बातें आम है. उनके पास भले ही शब्द न हों लेकिन कविताओं, गीतों के जरिए वे अपनी सोच को सामने रख रहे हैं."
हालांकि हिमानी यह भी कहती हैं कि कंटेंट क्रिएटर 30-40 फीसदी ऐसा कंटेंट अपने विचार और भावना के चलते बनाते हैं. ऐसे कंटेट बनाने के पीछे 60-70 फीसदी वजह इसका दर्शकों को पसंद आना होता है."

परिवार का पूरा सपोर्ट

हमने जिन इंस्टाग्रामर से बात की उनमें से ज्यादातर कहते हैं कि उन्हें परिवार से पूरा सपोर्ट मिलता है और कोई रोकटोक नहीं होती. फैज कहते हैं, "कभी-कभी नंबर इधर-उधर हो जाते हैं लेकिन घर पर डांट नहीं पड़ती." अभी 8वीं क्लास में पढ़ने वाली अंजनी तो साफ-साफ कहती हैं, "जितना समय पढ़ाई पर लगाती हूं, उतना ही इंस्टाग्राम पर भी देती हूं. क्लास में टॉपर तो नहीं हूं लेकिन खराब मार्क्स भी नहीं आते."

ये कंटेंट क्रिएटर अपनी प्राइवेसी को लेकर भी बहुत सजग हैं. गोरखपुर की ज्यादातर लड़कियों ने अपना अकाउंट प्राइवेट कर रखा है और दिल्ली की अंजनी बताती हैं कि उनका मुख्य अकाउंट प्राइवेट है और आम इंस्टाग्राम सर्फिंग के लिए वे एक फेक इंस्टा आईडी का इस्तेमाल करती हैं.

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