1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

भारत: लोकसभा में घटता मुसलमानों का प्रतिनिधित्व

आमिर अंसारी
७ जून २०२४

17वीं लोकसभा के मुकाबले 18वीं लोकसभा में मुसलमान सांसदों का प्रतिनिधित्व कम होगा. आखिर क्या कारण है कि पार्टियां कम मुसलमान उम्मीदवारों पर दांव लगा रही हैं.

https://p.dw.com/p/4gmYZ
पूर्व क्रिकेटर यूसुफ पठान सांसद चुने गए
पूर्व क्रिकेटर यूसुफ पठान सांसद चुने गएतस्वीर: Prabhakar Mani Tewari/DW

भारत के लोकसभा चुनाव 2024 में कुल 78 मुसलमान उम्मीदवार मैदान में थे और इनमें से सिर्फ 24 ही चुनाव जीत पाए. 2019 के लोकसभा चुनावों में राजनीतिक दलों ने 115 मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया था और 26 ने जीत हासिल की थी. जबकि 2014 में 23 मुस्लिम उम्मीदवार लोकसभा पहुंच पाए थे. 2014 के मुकाबले इस बार मुसलमानों का प्रतिनिधित्व थोड़ा बेहतर कहा जा सकता है लेकिन जानकार कहते हैं कि इसमें और सुधार की गुंजाइश है.

इस बार के आम चुनावों में मायावती की बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) ने 35 मुस्लिम उम्मीदवार उतारे, जो सभी पार्टियों में सबसे ज्यादा है. इनमें से आधे से ज्यादा (17) उत्तर प्रदेश में थे. इसके अलावा मध्य प्रदेश में चार, बिहार और दिल्ली में तीन-तीन, उत्तराखंड में दो और राजस्थान, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, झारखंड, तेलंगाना और गुजरात में एक-एक उम्मीदवार थे.

बीएसपी के बाद कांग्रेस ने 19 मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया, जिसमें सबसे अधिक बंगाल में छह थे. वहीं ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी ने मुसलमान समुदाय से छह लोगों को टिकट दिया. टीएमसी ने पश्चिम बंगाल में पांच और असम में एक को टिकट दिया.

घटता मुस्लिम प्रतिनिधित्व

समाजवादी पार्टी ने यूपी से तीन मुसलमान उम्मीदवार उतारे, जबकि चौथे को आंध्र प्रदेश से टिकट दिया. लेकिन मुरादाबाद में पार्टी ने पूर्व सांसद एसटी हसन का टिकट काटते हुए हिंदू उम्मीदवार को उनकी जगह उतारा.

तीसरी बार सरकार बनाने जा रहे नरेंद्र मोदी को इस बार गठबंधन सरकार का नेतृत्व करना होगा क्योंकि उनकी पार्टी के पास बहुमत नहीं है. नीतीश कुमार की जेडीयू और चंद्रबाबू नायडू की टीडीपी जैसी एनडीए की सहयोगी पार्टियों पर उनकी निर्भरता ज्यादा होगी.

बीजेपी ने 2019 में एक भी मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट नहीं दिया था, लेकिन इस बार उसने केरल की मलप्पुरम सीटे से डॉ. अब्दुल सलाम को टिकट दिया था. अब्दुल सलाम इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग के मोहम्मद बशीर से चुनाव हार गए.

1.4 अरब वाले देश भारत में मुसलमानों की आबादी करीब 20 करोड़ है और ऐसे में विश्लेषक कहते हैं कि लोकसभा की 543 सीटों में मौजूदा मुसलमान सांसदों का प्रतिशत कम है. राजनीति शास्त्र की प्रोफेसर जोया हसन डीडब्ल्यू से कहती हैं कि गैर बीजेपी सेकुलर पार्टियां मुसलमानों को कम टिकट देती हैं, उन्हें और टिकट देना चाहिए था. उन्होंने कहा, "जो हालात है उन्होंने (पार्टियों ने) यह सोचा कि अगर मुसलमानों को ज्यादा टिकट देंगे तो शायद और ज्यादा ध्रुवीकरण होगा और उससे उनका नुकसान होगा."

नगीना से चंद्रशेखर रावण की जीत के क्या मायने हैं?

"मुसलमानों की चिंताओं का ध्यान रखना होगा"

जोया हसन आगे कहती हैं, "इंडिया गठबंधन को 232 सीटें मिली हैं. चाहे उन्होंने उतने टिकट ना दिए हों, लेकिन उनको मुसलमानों की चिंताओं को ध्यान में रखना होगा. उन चिंताओं को महत्व देना चाहिए, यह जरूरी है. हमें यह लगता है कि लोकतंत्र में प्रतिनिधित्व बहुत महत्वपूर्ण है."

कांग्रेस के प्रवक्ता पंकज श्रीवास्तव ने विधायिका में मुसलमानों की भागीदारी कम होने पर चिंता तो जताई लेकिन साथ ही कहा कि कांग्रेस इतिहास में पहली बार 400 से कम सीटों पर चुनाव लड़ी है.

उन्होंने डीडब्ल्यू से कहा, "यह बड़ी चिंता की बात है कि मुसलमानों का विधायिका में प्रतिनिधित्व घट रहा है, तो यह हवा में नहीं हो रहा है. इस देश में एक ऐसी राजनीतिक पार्टी है जिसने मुसलमानों के खिलाफ युद्ध जैसा छेड़ रखा है. उन्हें दोयम दर्जे का नागरिक बनाने जैसा युद्ध छेड़ रखा है."

कांग्रेस द्वारा मुसलमानों को कम टिकट दिए जाने पर श्रीवास्तव कहते हैं, "इस लड़ाई में रणनीतिक तौर पर आपको कोई कमी दिख रही हो कि प्रतिनिधित्व नहीं है, लेकिन इस लड़ाई के जरिए ही ऐसी राजनीति को परास्त किया जा रहा है जो मुसलमानों को हर लिहाज से दोयम दर्जे का नागरिक बना रही है."

"नफरत की राजनीति हार गई"

जोया हसन कहती हैं कि इस चुनाव में बीजेपी की सांप्रदायिक लामबंदी की रणनीति की हार हुई है और यह बहुत बड़ी बात है. वो कहती हैं, "यह शिकस्त हिन्दी पट्टी में खास तौर से यूपी में हुई. अगर ऐसा ही होता है तो आगे हालात बदलेंगे, जिस तरह से चुनाव में मुसलमानों के खिलाफ नफरत फैलाने वाली जुबान का इस्तेमाल हुआ उसको लोगों ने एक तरह से नकारा है. इस चुनाव की कहानी यूपी है और यूपी में अयोध्या है, जहां बीजेपी हार गई."

हसन कहती हैं, "हमें हिंदुओं को भी इसके लिए श्रेय देना चाहिए. आप हिंदुओं को देखिए कि उन्होंने इनको शिकस्त दी है. मुसलमानों ने इनको वोट नहीं दिया है, उन्होंने इंडिया गठबंधन को वोट दिया जिसका उसे फायदा हुआ है. हिंदुओं ने इनके खिलाफ स्टैंड लिया है, सबसे बड़ी बात है कि यूपी में इनके खिलाफ खड़े हुए हैं, जो इनका सबसे बड़ा गढ़ है."

सिर्फ 24 मुसलमान सांसद

इस बार जो मुसलमान उम्मीदवार चुनाव जीते हैं उनमें से कुछ हैं-असम की धुबरी सीट से कांग्रेस के उम्मीदवार रकीबुल हसन, पश्चिम बंगाल की बहरामपुर लोकसभा सीट से पूर्व क्रिकेटर यूसुफ पठान (जिन्होंने कांग्रेस के दिग्गज नेता अधीर रंजन चौधरी को हराया), यूपी के सहारनपुर से कांग्रेस उम्मीदवार इमरान मसूद.

यूपी के कैराना से समाजवादी पार्टी की इकरा हसन ने जीत हासिल की. गाजीपुर से समाजवादी पार्टी के अफजल अंसारी ने जीत दर्ज की. रामपुर सीट से समाजवादी पार्टी के मोहिबुल्लाह, संभल से जिया उर रहमान. बिहार के कटिहार से कांग्रेस के वरिष्ठ नेता तारिक अनवर ने जीत दर्ज की. दो निर्दलीय मुसलमान उम्मीदवारों ने भी इस चुनाव में जीत का स्वाद चखा, उनमें हैं-बारामूला से इंजीनियर राशिद और लद्दाख से मोहम्मद हनीफा.

जब मुस्लिम उम्मीदवारों को पर्याप्त टिकट न देने के बारे में बात की जाती है तो "जीतने की क्षमता" का तर्क दिया जाता है. लेकिन वरिष्ठ पत्रकार मीनू जैन डीडब्ल्यू से कहती हैं, "मायावती ने तो इस बार काफी मुसलमान उम्मीदवार मैदान में उतारे चाहे जो भी उनका उद्देश्य रहा होगा, बीजेपी का सवाल ही नहीं बनता है. टिकट नहीं दिए जाने के आड़े हिंदुत्व की राजनीति आती है. पिछली लोकसभा के दौरान जिस उग्रता से हिंदुत्वादी राजनीति हुई तो उन्होंने (बीजेपी) साफ तौर से बता दिया कि वो इस एजेंडे पर है."

क्यों कम चुने जा रहे हैं मुसलमान सांसद

मुसलमानों को कम टिकट क्यों

कम टिकट दिए जाने के सवाल पर जैन कहती हैं, "शायद पार्टी को जितना ज्यादा टिकट देना चाहिए था या दे सकती थी या देना चाहती थी उससे वह रुकी, जीतने की क्षमता का सवाल हो गया. मुझे ऐसा लगता है कि उन्होंने सोचा होगा कि हमें यहां से उम्मीदवार नहीं उतारना चाहिए. नफरत का जो एजेंडा चल रहा है, सांप्रदायिकता का जो एजेंडा चल रहा है, यह उसका नतीजा है कि मुसलमानों का प्रतिनिधित्व कम हुआ है."

जैन कहती हैं कि अगर नीतीश कुमार और चंद्रबाबू के साथ मिलकर केंद्र में बीजेपी की सरकार बन जाती है तो माहौल बदल जाएगा. वह यह भी कहती हैं, "नफरत का खेल जो खुले तौर पर होता था वह नहीं होगा, हालांकि व्हाट्सएप पर नफरत वाले मैसेज फैलते रहेंगे." उनके मुताबिक चंद्रबाबू और नीतीश का बहुत बड़ा वोटबैंक मुसलमानों का है और दोनों किसी तरह का कोई समझौता नहीं करेंगे.

जैन के मुताबिक, "चंद्रबाबू और नीतीश की राजनीति मोदी के बिल्कुल विपरीत है. दोनों सामाजिक न्याय की बात करते हैं, दोनों नेताओं के एजेंडे अलग हैं, मोदी की राजनीति इसके उलट हैं. मोदी मुसलमानों के खिलाफ बहुत अपमानजनक बयान दे चुके हैं, मुसलमानों ने इस चुनाव में बहुत सब्र दिखाया है, अन्यथा इस देश में कुछ भी हो सकता था."