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भारत ने एप्पल और सैमसंग को दिया बड़ा झटका

४ अगस्त २०२३

एप्पल और सैमसंग जैसी कंपनियों को झटका देते हुए भारत ने कंप्यूटर आयात के लिए लाइसेंस लेना जरूरी कर दिया है.

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दिल्ली में एप्पल स्टोर
एप्पल भारत के इलेक्ट्रॉनिक्स सामान के बाजार में बड़ी हिस्सेदार हैतस्वीर: Rouf Fida/DW

भारत ने कहा है कि लैपटॉप, टैबलेट्स और पर्सनल कंप्यूटर का आयात करने के लिए अब लाइसेंस लेना होगा. यह फैसला फौरी प्रभाव से लागू हो गया है. इस फैसले का एप्पल, डेल और सैमसंग जैसी कंपनियों पर काफी असर पड़ सकता है, क्योंकि भारत चाहता है कि वे उसके यहां ही निर्माण करें.

अभी तक जो नियम थे, उनके मुताबिक इन कंपनियों पर लैपटॉप और अन्य कंप्यूटर आयात करने को लेकर किसी तरह की पाबंदी नहीं थी. लेकिन नये नियमों के तहत उन्हें हर प्रॉडक्ट का आयात करने के लिए लाइसेंस लेना होगा. भारत ने ऐसे ही नियम 2020 में टीवी के आयात पर भी लगाये थे. एक अधिकारी ने नाम ना छापने की शर्त पर बताया कि जो ऑर्डर दिये जा चुके हैं उन्हें 31 अगस्त तक बिना लाइसेंस के आयात करने की अनुमति होगी.

कंपनियां हैं चिंतित

कंपनियों का कहना है कि लाइसेंस राज उनके व्यापार में बाधक हो सकता है क्योंकि तब उन्हें हर नये मॉडल के लिए लॉन्च करने के बाद लाइसेंस लेना होगा. यह फैसला भारत में त्योहारों का मौसम शुरू होने से ठीक पहले आया है, जो कंपनियों को और ज्यादा परेशान कर रहा है क्योंकि इस मौके पर बड़े पैमाने पर खरीदारी होती है और कंपनियां कई नये मॉडल भी बाजार में उतारती हैं.

अपने नोटिफिकेशन में भारत सरकार ने इस फैसले के पीछे कोई वजह नहीं बतायी है. हालांकि भारत पिछले कुछ सालों से कंपनियों को भारत में ही अपने उत्पादों के निर्माण को लेकर प्रोत्साहित कर रहा है. उसकी मेक इन इंडिया योजना के तहत आयात को हतोत्साहित किया जा रहा है. भारत मूल्य के लिहाज से दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा आयातक है.

वैकल्पिक व्यवस्था की तैयारी

भारत मेंइलेक्ट्रॉनिक्स का सामान बड़ी मात्रा में आयात होता है. इस साल अप्रैल से जून के बीच 19.7 अरब डॉलर के इलेक्ट्रॉनिक उपकरण आयात किये गये, जो पिछले साल की इसी अवधि से 6.25 फीसदी ज्यादा हैं. रिसर्च फर्म काउंटरपॉइंट का अनुमान है कि भारत में लैपटॉप और पर्सनल कंप्यूटर (पीसी) का बाजार आठ अरब डॉलर का होगा, जिसमें दो तिहाई हिस्सा आयात किया जाएगा. एप्पल, डेल और सैमसंग इस बाजार के सबसे बड़े हिस्से पर काबिज हैं जबकि एसर, एलजी, लेनोवो और एपची भी भारतीय बाजार के बड़े खिलाड़ी हैं.

रिसर्च कंपनी एमके ग्लोबल में अर्थशास्त्री माधवी अरोड़ा ने कहा कि ऐसा लगता है कि सरकार उन उत्पादों के लिए वैकल्पिक व्यवस्था तैयार करना चाहती है, जो देश में बड़ी संख्या में आयात किये जाते हैं.

इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों के व्यापारियों के संगठन एमएआईटी (MAIT) के पूर्व महानिदेशक अली अख्तर जाफरी ने कहा, "इस फैसले की मूल भावना भारत में मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देना है. यह सिर्फ कहना नहीं है, बल्कि धकेलना है.”

घरेलू कंपनियों का फायदा

सरकार का ताजा कदम उन कंपनियों के लिए फायदेमंद होगा जो बड़ी कंपनियों के लिए मैन्युफैक्चरिंग करती हैं. मसलन, डिक्सन टेक्नोलॉजीज कंपनी का शेयर समाचार आने के बाद 7 फीसदी बढ़ गया.

भारत ने अपनी मेक इन इंडिया योजना को बढ़ावा देने के लिए कई प्रोत्साहन योजनाएं चला रखी हैं. मसनल आईटी हार्डवेयर का भारत में निर्माण के लिए निवेश करने वाली कंपनियों के लिए एक विशेष योजना है जिसमें कुल 2 अरब डॉलर का योगदान सरकार की तरफ से दिया जाता है.

यह भारत सरकार की अहम योजनाओं में से है, जिसके जरिये भारत दुनिया में इलेक्ट्रॉनिक्स सामान के बड़े सप्लायरों में शामिल होना चाहता है. उसका लक्ष्य 2026 तक अपनी निर्माण क्षमता को सालाना 300 अरब डॉलर तक ले जाना है.

साथ ही भारत आयात को भी कम करना चाहता है. इसलिए पिछले कुछ सालों में उसने इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरणों के आयात पर भारी टैक्स लगाये हैं. इनमें मोबाइल फोन जैसे उत्पाद भी शामिल हैं.

वीके/एए (रॉयटर्स)

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