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समाज

कोरोना भी नहीं तोड़ पाया एसिड अटैक सर्वाइवर के हौसले

आमिर अंसारी
२८ जुलाई २०२०

लॉकडाउन के कारण एसिड अटैक पीड़ितों का काम बंद हो गया और वे भी अन्य लोगों की तरह घरों में रहने को मजबूर हैं लेकिन इस दौरान वे नया कौशल सीख कर आगे बढ़ने की कोशिश में हैं.

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तस्वीर: stopacidattacks.org

उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर के पास एक गांव की रहने वाली 26 साल की रूपा पर उसकी ही सौतेली मां ने 3 अगस्त 2008 को तेजाब फेंक दिया था. एसिड अटैक में रूपा बुरी तरह से जख्मी हो गई थी. इतने सालों बाद तेजाब के घाव तो भर गए लेकिन उसके दिल के किसी कोने में वह खौफनाक मंजर आज भी मौजूद है. रूपा कहती हैं कि उसकी सौतेली मां ने उसे जान से मारने के इरादे से एसिड अटैक किया था लेकिन वह इसमें कामयाब नहीं हो पाई और ना ही वह रूपा के हौसलों को डिगा पाई.

इस हादसे को 12 साल बीत गए हैं. अब रूपा अपने जीवन में बहुत आगे निकल चुकी हैं. वह एसिड अटैक सर्वाइवर तो हैं लेकिन उनमें आत्मविश्वास की कमी नहीं है. रूपा की ही तरह कुछ और सर्वाइवर्स हैं जिनकी कहानी कमोबेश ऐसी ही है. 

कोरोना वायरस के खिलाफ जब 24 मार्च को देशभर में लॉकडाउन का ऐलान हुआ तो रूपा जिस कैफे में काम करती है वह भी बंद हो गया. रूपा जिस कैफे में काम करती है वह एसिड अटैक पीड़ित ही चलाती हैं, ताज महल के शहर आगरा में शीरोज हैंगआउट नाम से यह कैफे पर्यटकों के बीच काफी लोकप्रिय है.

शीरोज हैंगआउट की शुरूआत 2014 में इस मकसद के साथ हुई थी कि वह पीड़ितों को स्वावलंबी बनाए और उन्हें समाज में दोबारा खड़ा होने का मौका दे. कोरोना वायरस की वजह से जब सब रेस्तरां और होटल बंद हुए तो आगरा में भी शीरोज हैंगआउट को बंद कर दिया गया और वहां काम करने वाली पीड़ित युवतियां अपने-अपने परिवार के पास वापस चली गई. रूपा ने अपने परिवार के पास नहीं लौटकर आगरा में ही रहने का फैसला किया.

रूपा कहती हैं, "लॉकडाउन के बाद ज्यादातर पीड़ित अपने परिवार के पास वापस लौट गईं. मैं आगरा में किराये के मकान में रहती हूं." आगरा के शीरोज हैंगआउट कैफे में 10 सर्वाइवर काम करती हैं, एक और कैफे जो कि लखनऊ में हाल ही के साल में खुला है वहां 15 लड़कियां काम करती हैं और नोएडा स्थित शीरोज होम में पांच पीड़ित काम करती हैं. आगरा में फिलहाल पर्यटकों का आना बंद है इसलिए वहां शीरोज हैंगआउट नहीं खुला है जबकि लखनऊ स्थित कैफे को खोल दिया गया है और वह कम कर्मचारियों के साथ काम कर रहा है. दरअसल सर्वाइवर्स की सेहत को देखते हुए ऐसा किया गया है.

Indien Sheroes Säureopfer
शीरोज हैंगआउट, आगरा में विदेशी पर्यटक के साथ सर्वाइवर्स. तस्वीर: DW/A. Ansari

आर्थिक संकट 

एसिड अटैक पीड़ितों के सामने लॉकडाउन के दौरान सबसे बड़ी चुनौती आर्थिक संकट से जुड़ी थी. लॉकडाउन के दौरान कैफे बंद होने के कारण वहां काम करने वाली युवतियां की परेशानी को देखते हुए छांव फाउंडेशन जो कि स्टॉप एसिड अटैक अभियान चलाता है, उसने कैफे में काम करने वाली पीड़ितों को हर महीने एक निश्चित रकम देना शुरू किया. छांव फाउंडेशन के निदेशक आशीष शुक्ला डीडब्ल्यू से कहते हैं, "छांव फाउंडेशन की करीब 70 फीसदी आय शीरोज कैफे से आती थी, इसी आय से कैफे का संचालन, सर्वाइवर की सैलरी और अन्य खर्च निकल जाते थे. साथ ही सर्वाइवर्स का ट्रेनिंग कार्यक्रम, इलाज का खर्च और उनके बच्चों की पढ़ाई का खर्च भी इसी आय से निकलता था. और कुछ पैसे डोनेशन के माध्यम से मिलते थे."

आशीष बताते हैं कि कोविड-19 से जब सामान्य जनजीवन प्रभावित हुआ है तो शीरोज कैफे और वहां काम करने वाली पीड़ित भी प्रभावित हुईं हैं. आशीष कहते हैं, "हम लोग पीड़ितों के साथ 2014 से काम कर रहे हैं और संकट के समय में हमारी नैतिक जिम्मेदारी भी बनती है कि हम उन्हें उस स्थिति में ना पहुंचाए जिस स्थिति से ये सभी निकल कर आईं हैं. ऐसे में हमारे पास रिजर्व फंड जो कि इलाज और शिक्षा के लिए थे, हमने उस फंड का इस्तेमाल करते हुए एक निर्धारित राशि देने का फैसला किया जिससे उनकी आजीविका प्रभावित ना हो."

छांव फाउंडेशन ने लॉकडाउन के शुरूआत में शीरोज कैफे और शीरोज होम के साथ काम करने वाली युवतियों को 10 हजार रुपये दो महीने तक दिए. इसके बाद फाउंडेशन ने साथ ही साथ वैकल्पिक रास्ते भी तलाशने शुरू कर दिए जिससे पीड़ितों को कुछ नया सीखने को मिल सके. आशीष कहते हैं कि लॉकडाउन के दौरान फाउंडेशन ने पीड़ितों के लिए ऑनलाइन ट्रेनिंग कार्यक्रम शुरू किए. कार्यक्रम के तहत पीड़ितों को सोशल मीडिया की ट्रेनिंग, हैंडीक्राफ्ट्स आइटम बनाने की ट्रेनिंग, मनोवैज्ञानिकों और अन्य अलग-अलग एक्सपर्ट के साथ सत्र कराए जाने लगे. हालांकि फाउंडेशन के पास जितने फंड बचे हुए थे वह भी धीरे-धीरे कर खत्म हो गए.  

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ताज महल के पास शीरोज हैंगआउट पर्यटकों के बीच लोकप्रिय है. तस्वीर: DW/A. Ansari

क्राउडफंडिंग से मदद 

छांव फाउंडेशन ने एसिड अटैक पीड़ितों की मदद के लिए क्राउडफंडिंग मंच मिलाप पर ऑनलाइन फंड इकट्ठा करने के लिए अभियान की शुरूआत की और इसके जरिए 10 लाख रुपये इकट्ठा किए गए. फांउडेशन इस रकम से अपने साथ जुड़ी पीड़ितों को अगले छह महीने एक निश्चित राशि देने की स्थिति में पहुंच गया है. यही नहीं ब्रिटेन स्थित एक चैरिटी के साथ भी छांव फाउंडेशन ने धनराशि इकट्ठा करने के कार्यक्रम पर काम किया. चैरिटी ए-सिस्टरहुड ने एक ऑनलाइन धनराशि इकट्ठा करने के मकसद के साथ सर्वाइवर के बारे में जागरुकता फैलाने के लिए कार्यक्रम का आयोजन किया और पैसे जमा किए. हालांकि अभी यह राशि छांव फाउंडेशन तक पहुंचने की प्रक्रिया में है.

आम होटल और रेस्तरां के साथ शीरोज कैफे पर आर्थिक संकट है. पैसों की कमी के कारण आगरा स्थित शीरोज हैंगआउट का किराया बकाया है, लखनऊ स्थित शीरोज कैफे और नोएडा स्थित शीरोज होम का भी किराया बकाया है. छांव फाउंडेशन पर वेतन देने के साथ-साथ किराया देने का भी दबाव है. कैफे में पीड़ितों के अलावा सामान्य कर्मचारी भी काम करते हैं.

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शीरोज हैंगआउट में सर्वाइवर्स द्वारा बनाए गए प्रोडक्ट्स भी बेचे जाते हैं. तस्वीर: DW/A. Ansari

भारत में एसिड हमले थमते क्यों नहीं

देश में एसिड से हमला जघन्य अपराधों में से एक है. यह खासकर महिलाओं से बदला लेने के इरादे से अंजाम दिया जाता है. दक्षिण एशिया के कई देशों में ऐसे मामले दर्ज किए जाते रहे हैं. भारत में 2013 तक एसिड हमला अलग अपराध की श्रेणी में नहीं आता था. एसिड हमलों को लेकर कानून को सख्त बनाने के लिए भारतीय दंड संहिता कानून की धारा 326 में कुछ बदलाव किया गया था. बदलाव के बाद 326 ए और 326 बी अस्तित्व में आया. 326 ए के तहत प्रावधान है कि अगर किसी शख्स ने जानबूझकर किसी अन्य व्यक्ति पर एसिड हमला किया और उसे स्थायी या आंशिक रूप में नुकसान पहुंचाया तो वह गंभीर अपराध माना जाएगा. इस कानून के तहत दोषी को कम से कम 10 साल की सजा और अधिकतम उम्र कैद हो सकती है.

326 बी के तहत अगर कोई एसिड हमले का दोषी पाया जाता है तो दोषी को कम से कम पांच साल की सजा हो सकती है. दोनों कानून में जुर्माने का भी प्रावधान है. साथ ही सुप्रीम कोर्ट एसिड की बिक्री को लेकर सख्त दिशा निर्देश भी जारी कर चुका है. दुकानदार को एसिड उसी शख्स को बेचना है जब वह अपना पहचान पत्र दिखाए और दुकानदार को बिक्री का भी रिकॉर्ड रखने का आदेश है. 

आशीष कहते हैं, "एसिड की बिक्री को लेकर दुकानदारों में खास जागरुकता नहीं है. हमने अभियान भी चलाया लेकिन उसका प्रभाव दुकानदारों पर नहीं पड़ता है." आशीष के मुताबिक एसिड की बिक्री को रोकने के लिए कई चुनौतियां हैं सबसे बड़ी चुनौती सख्ती को जमीनी स्तर पर लागू करने की है. सख्त कानून के बावजूद राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो के मुताबिक 2018 में एसिड हमलों के 228 मामले दर्ज किए गए थे.

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