तेजाब हमले से उबरकर प्रज्ञा बनी अन्य पीड़ितों की तारणहार
७ जनवरी २०१९बारह साल पहले एक पागल एकतरफा प्रेमी ने प्रज्ञा सिंह पर एक रेल यात्रा के दौरान तेजाब फेंक दिया था. वह अप्रैल 2006 में उत्तर प्रदेश के अपने गृहनगर वाराणसी से दिल्ली जा रही थीं. आज वह तेजाब के जख्म से पीड़ित ऐसी लड़कियों के लिए उम्मीद की नई रोशनी बन चुकी हैं.
ऐसी 200 महिलाओं की मदद के अलावा उन्होंने तेजाब हमले की पीड़िताओं की 300 सर्जरी मुफ्त करवाई और उनको कानूनी व वित्तीय मदद करने के साथ-साथ उन्हें नौकरियां दिलवाकर दोबारा उनकी जिंदगी संवारी है.
प्रज्ञा ने आईएएनएस से बातचीत में कहा, "मेरी शादी के 12 दिनों बार यह भयानक घटना हुई. उस समय मैं 23 साल की थी. मैं ट्रेन में सो रही थी, तभी मेरे पूर्व-प्रेमी ने प्रतिशोध में मेरे चेहरे और शरीर पर तेजाब फेंक दिया. मैं कई सप्ताह तक गहन चिकित्सा कक्ष में पड़ी रही. बुरी तरह जल चुके मेरे मुंह और नाक को खुलने में दो साल से अधिक वक्त लग गया, जिस दौरान मेरी 15 सर्जरी की गई."
वह 2007 से बेंगलुरू में अपने पति और दो बेटियों के साथ रह रही हैं. प्रज्ञा ने तेजाब के जख्म से पीड़ित लड़कियों की जिंदगी में खुशहाली लाने के लिए 2013 में अतिजीवन फाउंडेशन की स्थापना की.
तेजाब हमले के सदमे से उबरने के लिए उनके सामने कॉस्मेटिक सर्जरी की एक उम्मीद की किरण थी, जिससे उनके घाव के निशान खत्म हो सकते थे और उनका चेहरा पहले ही जैसा बन सकता था, लेकिन उन्होंने अपनी उसी छवि के साथ आगे की जिंदगी जीना स्वीकार किया. उन्होंने कहा, "मुझे जल्द ही समझ में आ गया कि सर्जरी का कोई अंत नहीं है, जिससे सिर्फ चेहरा थोड़ा बदल सकता था और रूप में परिवर्तन हो सकता था. मैंने उसको स्वीकार किया, जो टल नहीं सकता, क्योंकि वास्तविक चेहरा सही सोच है."
अपने पैरों पर खड़े होने का संकल्प कर चुकीं प्रज्ञा ने जीवन के अनिवार्य अंगों के काम शुरू करने के बाद रिकंस्ट्रक्शन सर्जरी बंद कर दी. प्रज्ञा ने कहा, "पीड़ित बने रहने के बजाए मैंने ऐसे जघन्य अपराधों की पीड़िताओं के लिए बदलाव लाने की ठान ली. मैं खुशकिस्मत हूं कि मुझे एक मददगार परिवार मिला है, जिसने उपचार और सदमे से उबरने के दौर में आर्थिक और भावनात्मक रूप से मेरी मदद की."
तेजाब हमले 20 से 30 साल के बीच की उम्र की महिलाओं पर प्राय: ऐसे पुरुष करते हैं, जो प्रेम में ठोकर खाते हैं या उनके बीच परिवारिक शत्रुता हो या फिर दहेज प्रताड़ना व जमीन संबंधी विवाद हो.
प्रज्ञा ने कहा, "करीब 80 फीसदी तेजाब हमले महिलाओं पर होते हैं, जबकि 20 फीसदी मामलों के शिकार पुरुष बनते हैं." केमिकल स्टोर में बिकने वाले सल्फ्यूरिक एसिड या नाइट्रिक एसिड से त्वचा की ऊतकें गल जाती हैं और हड्डियां बाहर आ जाती हैं और इससे आंखों को नुकसान पहुंचता है और जिससे आंखों की रोशनी कम हो जाती है या लोग बिल्कुल अंधे हो जाते हैं. उन्होंने कहा, "गंभीर रूप से जलने पर कुछ पीड़ित 35-40 सर्जरी करवाते हैं. सर्जरी खर्चीली होती है, जिससे पीड़ित और उनके परिवार के सामने गंभीर संकट पैदा हो जाता है."
उनका फाउंडेशन तेजाब हमले के पीड़ितों को पूरी मदद करता है. तेजाब से जले मरीजों को गुणवत्तापूर्ण चिकित्सा सुविधा प्रदान करने के लिए उन्होंने देशभर में 15 निजी अस्पतालों से समझौता किया है. इन अस्पतालों का संचालन निजी दान पर होता है और वहां सर्जरी का खर्च वहन करने से लाचार महिलाओं पर होने वाले खर्च भी अस्पताल की ओर से किया जाता है.
उत्तर प्रदेश के बलरामपुर की दीपमाला (28) पर उनके पति ने 2014 में तेजाब से हमला कर दिया था. उन्होंने बताया, "मेरे पति को जब मालूम हुआ कि बलरामपुर के सरकारी स्कूल की अध्यापिका के तौर पर मैं उनसे ज्यादा कमाती हूं तो वह खुद को असुरक्षित महसूस करने लगे और उन्होंने मेरे ऊपर तेजाब फेंक दिया." इलाज का खर्च उठाने में असमर्थ दीपमाला को जब फाउंडेशन के बारे में अपने एक मित्र से मालूम हुआ तो वह वहां पहुंचीं. उन्होंने कहा, "प्रज्ञा तब से मुझसे संपर्क करती रही हैं और फाउंडेशन ने मेरी 10 सर्जरी का पूरा खर्च वहन किया है, जिससे मेरा और मेरे परिवार का हौसला बढ़ा."
अपनी नौकरी पर बलरामपुर लौटने से पहले उन्होंने कंप्यूटर साइंस का कोर्स किया. दीपमाला अब फाउंडेशन की संयोजक के रूप से तेजाब हमले की अन्य पीड़िताओं की मदद करती हैं.
उन्होंने कहा, "फाउंडेशन और प्रज्ञा ने इलाज से लेकर कानूनी लड़ाई तक में मेरा साथ दिया, जिसके बाद मेरे पति को 14 साल कारावास की सजा मिली."
दीपमाला ने तेजाब हमले की पीड़िता 23 की साल रेशमा खातून को फाउंडेशन के पास भेजा. रेशमा जब 19 साल की थी तभी शादी का प्रस्ताव ठुकराने पर एक आदमी ने उन पर तेजाब से हमला कर दिया था.
नोएडा की रेशमा ने आईएएनएस को बताया, "प्रज्ञा जैसी महिला को देखकर प्रेरणा मिलती है, जो अन्य महिलाओं और पुरुषों को प्रेरित करती हैं कि तेजाब हमले के जख्मों से जिंदगी रुकती नहीं है." प्रज्ञा ने कहा, "हमारे सात फील्ड वर्कर तेजाब हमले से पीड़ित हैं. वे जब पीड़ितों के घर जाती हैं तो उनके और उनके परिवारों का हौसला बढ़ता है."
केंद्रीय गृह मंत्रालय के तहत आने वाले नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के अनुसार, 2016 में महिलाओं पर तेजाब हमले के 200 मामले दर्ज किए गए, हालांकि गैर सरकारी संगठनों का अनुमान है कि देश भर में यह आंकड़ा 500 से 1,000 के बीच है.
सर्वोच्च न्यायालय ने 2015 में एक आदेश में राज्यों को निर्देश दिया था कि तेजाब हमलों के शिकार लोगों को नौकरियों में अशक्त नहीं माना जाए. इसके बाद भारत की प्रमुख कंपनियां जो जलन के मरीजों को नौकरियां देने से हिचकिचाती थीं, उनके दरवाजे खुल गए हैं. हालांकि प्रज्ञा ने कहा, "उद्योग में इन पीड़ितों को नौकरी दिलवाना चुनौतीपूर्ण कार्य है, क्योंकि कई कॉरपोरेट उनको नौकरी देना नहीं चाहते हैं. कुछ कंपनियां उनको नौकरियां देने के लिए सामने आ रही हैं, लेकिन उनको काम के लिए अक्षम मानते हुए कम मजदूरी दे रही हैं."
--आईएएनएस