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समाजयूरोप

यूएन: कार्यस्थल पर हिंसा और उत्पीड़न बड़े पैमाने पर मौजूद

७ दिसम्बर २०२२

संयुक्त राष्ट्र के वैश्विक सर्वेक्षण में कार्यस्थल पर हिंसा और उत्पीड़न को लेकर कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं, इसमें पाया गया कि कार्यस्थल पर व्यापक स्तर पर हिंसा और उत्पीड़न मौजूद है.

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कार्यस्थलों पर कर्मचारियों के साथ दुर्व्यवहार, हिंसा और उत्पीड़न पर वैश्विक सर्वेक्षण
कार्यस्थलों पर कर्मचारियों के साथ दुर्व्यवहार, हिंसा और उत्पीड़न पर वैश्विक सर्वेक्षणतस्वीर: Andriy Popov/PantherMedia/imago images

दुनिया भर में कार्यस्थलों पर कर्मचारियों के साथ दुर्व्यवहार, हिंसा और उत्पीड़न की घटनाओं में स्पष्ट रूप से वृद्धि हुई है. युवा अप्रवासी और महिलाएं इस स्थिति के सबसे अधिक शिकार हैं.

संयुक्त राष्ट्र अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन और गैर-सरकारी संगठन लॉयड्स रजिस्टर फाउंडेशन और गैलप की ताजा रिपोर्ट में पाया गया है कि कर्मचारियों को दुनिया भर के कार्यस्थलों में व्यापक हिंसा, उत्पीड़न और दुर्व्यवहार का शिकार होना पड़ रहा है.

इन दुर्व्यवहारों के शिकार ज्यादातर युवा प्रवासी और दिहाड़ी मजदूर होते हैं, खासकर महिलाएं. पिछले साल की सर्वेक्षण रिपोर्ट में कहा गया कि 121 देशों में लगभग 75,000 श्रमिकों में से 22 प्रतिशत ने कम से कम एक प्रकार की हिंसा या उत्पीड़न का अनुभव किया.

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तीन अंतरराष्ट्रीय संगठनों की 56 पन्नों की रिपोर्ट में कहा गया है, "कार्यस्थल पर हिंसा और उत्पीड़न एक व्यापक और अत्यधिक हानिकारक घटना है. इसके नकारात्मक शारीरिक और मनोवैज्ञानिक परिणाम दूरगामी हैं. श्रमिकों के खिलाफ हिंसा से श्रमिकों को जो मानसिक, भावनात्मक और शारीरिक नुकसान होता है और उत्पीड़न इन श्रमिकों के साथ-साथ श्रम बाजार को भी दूरगामी आर्थिक नुकसान पहुंचाता है. इससे उनका पेशेवर जीवन भी खतरे में आ जाता है. इससे कार्यस्थल और समाज को भी आर्थिक नुकसान होता है."

काम पर हिंसा और उत्पीड़न की घटनाओं पर जारी रिपोर्ट में विश्लेषकों ने कहा कि सर्वेक्षण में शामिल लोगों में से एक तिहाई ने कहा कि उन्होंने एक से अधिक बार हिंसा या उत्पीड़न का अनुभव किया है, जबकि 6.3 प्रतिशत ने कहा कि उन्होंने तीनों प्रकार के दुर्व्यवहार का सामना किया है. यानी पेशेवर जीवन के दौरान शारीरिक, मनोवैज्ञानिक और यौन हिंसा.

लिंग, विकलांगता, राष्ट्रीयता, जाति और रंग के आधार पर भेदभाव
लिंग, विकलांगता, राष्ट्रीयता, जाति और रंग के आधार पर भेदभावतस्वीर: fotolia

हिंसा का सबसे आम रूप

मनोवैज्ञानिक हिंसा और उत्पीड़न को पुरुषों और महिलाओं श्रमिकों दोनों द्वारा रिपोर्ट की जाने वाली हिंसा की सबसे आम घटना के रूप में पाया गया. रिपोर्ट में कहा गया है कि 17.9 प्रतिशत श्रमिकों ने अपने पेशे के दौरान किसी बिंदु पर इस स्थिति का अनुभव किया.

सर्वेक्षण में शामिल 8.5 प्रतिशत लोगों ने कहा कि उन्होंने शारीरिक हिंसा का अनुभव किया है. रिपोर्ट में कहा गया है कि पुरुषों की तुलना में महिलाओं को कार्यस्थल पर हिंसा और उत्पीड़न का अनुभव होने की अधिक संभावना है.

रिपोर्ट के अनुसार यौन हिंसा और उत्पीड़न का अनुभव करने वाले 6.3 प्रतिशत में से 8.2 प्रतिशत महिलाएं और 5 प्रतिशत पुरुष थे. कार्यस्थल पर हिंसा और उत्पीड़न का अनुभव करने वाले 60 प्रतिशत से अधिक लोगों ने कहा कि यह उनके साथ कई बार हुआ है और अधिकांश के लिए इनमें से आखिरी घटना पिछले पांच वर्षों के भीतर हुई है.

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भेदभाव किस आधार पर?

इस सर्वेक्षण में यह तथ्य भी सामने आया है कि जिन लोगों को अपने जीवन में किसी समय भेदभाव का सामना करना पड़ा, वे लिंग, किसी प्रकार की विकलांगता, राष्ट्रीयता, जाति, त्वचा के रंग या धर्म जैसे कारकों से प्रभावित थे. जिन लोगों के साथ इन आधारों पर भेदभाव किया गया था, उनके खिलाफ काम पर हिंसा या उत्पीड़न का अनुभव करने की संभावना उन लोगों की तुलना में अधिक थी जिनके साथ भेदभाव नहीं किया गया था.

संयुक्त राष्ट्र श्रम संगठन, लॉयड्स फाउंडेशन और गैलप ने कहा, "काम की दुनिया में हिंसा और उत्पीड़न पर आंकड़े दुर्लभ और कम प्रतिनिधित्व वाले हैं." इसलिए अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन ने लॉयड्स और गैलप के साथ मिलकर दुनिया भर में श्रमिकों के पहले अनुभवों को मापने के लिए यह शोध अभ्यास किया.

इन संगठनों का कहना है कि इस तरह के शोध आगे के शोध कार्य का मार्ग प्रशस्त करते हैं. इन संगठनों के बयान के मुताबिक, "आखिरकार, मजबूत साक्ष्य से अधिक प्रभावी कानून बनाने में मदद मिलेगी. ऐसी नीतियां और प्रथाएं जो हिंसा और उत्पीड़न को रोकने के उपायों को बढ़ावा देती हैं, उनके पीछे विशिष्ट गुटों के जोखिमों और मूल कारणों को संबोधित करती हैं और यह सुनिश्चित करती हैं कि पीड़ित इन अस्वीकार्य स्थितियों से निपटने में सक्षम हों."

एए/सीके (एपी, एएफपी)

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