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घरेलू नौकरों को कब मिलेंगे जीने के बुनियादी अधिकार

मनीष कुमार
२ सितम्बर २०२२

गरीब, कमजोर तबके से आने वाले घरेलू नौकर नौकरानियों को अकसर उत्पीड़न और दुर्व्यवहार झेलना पड़ता है. झारखंड की सुनीता का मामला भी इसी सिलसिले की एक कड़ी है. देश का कानून इस दुर्व्यवहार को रोक पाने में क्यों अक्षम है?

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घरेलू कामगार कई तरह के उत्पीड़न का शिकार होते हैं
घरेलू कामगारों को कम पैसे मिलते हैं और अकसर उनके काम के घंटे भी बहुत ज्यादा हैंतस्वीर: Divyakant Solanki/epa/dpa/picture alliance

झारखंड की राजधानी रांची में रिटायर्ड आईएएस अधिकारी की पत्नी सीमा पात्रा ने अपनी दिव्यांग घरेलू सहायिका सुनीता का जिस तरह उत्पीड़न किया उसने इन कामगारों के बुनियादी अधिकार पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया है. पात्रा बीजेपी की महिला विंग की राष्ट्रीय कार्यसमिति की सदस्य एवं बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ की राज्य संयोजिका भी हैं. 

नरक जैसी यातना

झारखंड के गुमला जिले की 29 वर्षीय आदिवासी महिला सुनीता पिछले आठ सालों से सीमा पात्रा के यहां घरेलू सहायिका का काम कर रही थी. आरोप है कि सीमा ने सुनीता को ना केवल बंधक बनाया, बल्कि उसे गर्म तवे से दागा, लोहे की छड़ से पीटा, जीभ से फर्श साफ करवाया और उसके दांत तोड़ दिए. सुनीता के बारे में कहा जा रहा है कि उसने तीन सालों से सूरज को भी नहीं देखा था.  22 अगस्त को सूचना मिलने पर पुलिस ने उसे वहां से निकाला. फिलहाल वह पुलिस सुरक्षा में रांची के एक अस्पताल की सर्जरी वार्ड में भर्ती है.

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अस्पताल में भर्ती सुनीता का वायरल हुआ वीडियो से लोगों को उसके साथ हुई ज्यादती का पता चला.  मामला सुर्खियों में आया तब बीजेपी ने पात्रा को पार्टी से निष्कासित कर दिया. अरगोड़ा थाने में एफआईआर दर्ज होने के बाद पात्रा को गिरफ्तार कर लिया गया है. उन्हें एससी-एसटी एक्ट मामले की विशेष अदालत में पेश करने के बाद 12 सितंबर तक के लिए जेल भेज दिया गया है.

घरेलू काम के लिये लड़कियां और औरतें अकसर पिछड़े और गरीब इलाकों से लाई जाती हैं
घरेलू कामगारों को अकसर मालिकों के यहां दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ता हैतस्वीर: Divyakant Solanki/epa/dpa/picture alliance

पुलिस को दिए बयान में पीड़ित युवती ने कहा है कि उसे यह पता नहीं है कि किस गलती की सजा के रूप में उसे नरक जैसी क्रूर यातनाएं दी गईं. वह काम छोड़ना चाहती थी. जब घर जाने की बात कहती थी, तो उसे बुरी तरह पीटा जाता था. उसने एक बार भागने की नाकाम कोशिश भी की थी.

उत्पीड़न की पराकाष्ठा यह हुई कि सीमा पात्रा के पुत्र आयुष्मान ने ही अपने एक मित्र को फोन कर सुनीता को बचाने की गुहार लगाई. पुलिस के सामने भी आयुष्मान ने अपनी मां पर पीड़िता को खुद का मूत्र पीने को विवश करने का आरोप लगाया. सीमा पात्रा ने इन आरोपों को खारिज किया और कहा कि उसका बेटा आयुष्मान मानसिक तौर पर बीमार है, उसने झूठे आरोप लगाए हैं.

पहले भी हुई हैं ऐसी घटनायें

यह पहली बार नहीं है जब घरेलू नौकर या नौकरानियों के इस तरह के उत्पीड़न की खबर सामने आई हो. दिल्ली की वो घटना भी लोग अभी भूले नहीं होंगे जिसमें एक महिला चिकित्सक ने अपने यहां चार महीने से घरेलू सहायिका के रूप में काम कर रही नाबालिग लडकी के हाथ जगह-जगह पर जला दिए थे. दिल्ली महिला आयोग की कोशिश से उसे बचाया जा सका था.

दिल्ली में ही झारखंड की एक और आदिवासी लडकी सोनी की हत्या वेतन के पैसे मांगने पर कर दी गई थी. उसकी हत्या उसी ने की थी, जिसने उसे काम पर रखवाया था. घर के मालिक से वह सोनी का वेतन ले लेता था, लेकिन उसे नहीं देता था. ऐसी कई अन्य घटनाएं सुर्खियां बनती रही हैं.

देश में उनकी सुरक्षा के लिये कानून हैं लेकिन उनका पालन नहीं होता
कम उम्र की लड़कियों के साथ अकसर मार पिटाई भी होती हैतस्वीर: Leber Gerhard/Sodapix/picture alliance

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दोतरफा पिसते कामगार

अशिक्षा, गरीबी व बेरोजगारी की मारी ये लड़कियां मानव तस्करों के जाल में आसानी से फंस जाती हैं. प्लेसमेंट एजेंसियों की आड़ में काम करने वाले दलाल अच्छी नौकरी दिलाने के नाम पर उन्हें महानगरों में ले जाते हैं.

आंकड़े बताते हैं कि सबसे ज्यादा अमानवीय व्यवहार दिल्ली और हरियाणा में काम करने गईं लड़कियों के साथ होता है. घरों के मालिक तो इनके साथ अमानवीय व्यवहार करते ही हैं, प्लेसमेंट एजेंसियों के लोग भी इनके पैसे रख लेते हैं, उन्हें घर नहीं जाने देते तथा परिजनों से बात तक नहीं करने देते.

कई बार तो उन्हें बेच दिया जाता है. इसके बाद वे एक से दूसरे के हाथों बिकती चली जाती हैं. यहां तक कि इन लड़कियों का इस्तेमाल सरोगेसी में भी किया जा रहा है. झारखंड के गुमला में बाल कल्याण समिति के सामने ऐसे मामले आ चुके हैं. दो ऐसी लड़कियां सामने आईं थीं, जिनका कहना था कि मानव तस्कर उन्हें काम कराने के नाम पर ले गए थे, लेकिन उनसे सरोगेसी के माध्यम से बच्चा पैदा करवाया गया. एक ने दस तो दूसरी ने छह बच्चे पैदा करने की बात स्वीकारी थी.

एक्शन अगेंस्ट ट्रैफिकिंग एंड सेक्सुअल एक्सप्लॉयटेशन ऑफ चिल्ड्रेन (एटीएसईसी) के झारखंड कोऑर्डिनेटर संजय मिश्रा के अनुसार केवल दिल्ली में ही एक हजार से अधिक फर्जी प्लेसमेंट एजेंसियां हैं, जो दलाल के माध्यम से लड़कियों को मंगाते हैं. नाम जाहिर नहीं करने की शर्त पर पटना में ऐसी प्लेसमेंट एजेंसी चलाने वाली महिला कहती हैं, ‘‘रोजगार नहीं मिलेगा तो लोग बाहर जाएंगे ही. सवाल सिस्टम का है. हम अपनी लड़कियों को जिनके यहां भेजते हैं, उनसे एग्रीमेंट करते हैं, जिसमें वेतन से लेकर उनकी छुट्टी और उन्हें दी जाने वाली सुविधाओं के बारे में सब कुछ तय रहता है. ना हम गड़बड़ कर सकते हैं और ना ही उन्हें रखने वाले.''

असंगठित और अशिक्षित कामगार अपने हक की लड़ाई नहीं लड़ पाते
पढ़े लिखे लोगों के परिवार भी घरेलू कामगारों के साथ अच्छा व्यवहार नहीं करतेतस्वीर: PUNIT PARANJPE/AFP

घर से निकलना मजबूरी

पटना में एक डॉक्टर दंपति के यहां घरेलू नौकरानी का काम करने वाली झारखंड की युवती अभिलाषा (बदला हुआ नाम) के घर में पांच भाई बहन और हैं. पिता के पास बहुत थोड़ी जमीन है, मां बीमार रहती है. एक बहन की किसी तरह शादी हुई. महाजन का कर्ज भी है. अभिलाषा बताती हैं, "गांव के पास बहुत कोशिश की, कोई काम नहीं मिला. रिश्ते की एक महिला ने पटना में काम दिलाने का वादा किया, तीनों बहनें पटना चली आईं. मैं तीन साल से यहां हूं.'' यहीं काम क्यों पूछने पर उसका सीधा जवाब था, ‘‘चौथी के आगे पढ़ नहीं पाई तो करती क्या. पैसे के लिए काम तो करना ही पड़ेगा.''

अपनी दो बहनों के बारे में पूछने पर अभिलाषा थोड़ी उदास हो गई और बताया कि एक बहन तो कई घरों में गई, लेकिन उसके साथ अच्छा व्यवहार नहीं हुआ. वह अभी रांची में एक अस्पताल में काम कर रही है. सबसे छोटी मुजफ्फरपुर में एक अधिकारी की बूढ़ी मां की देखभाल कर रही है.

एक निजी कंपनी के बड़े अधिकारी के घर का कामकाज संभालने वाली झारखंड की रूपा (बदला हुआ नाम) बताती है, ‘‘परेशानी तो है. काम का कोई घंटा तय नहीं है. घर के लोगों के अनुसार सोना-जागना पड़ता है. अपार्टमेंट में नीचे कॉमन बाथरूम में जाना पड़ता है. फर्श पर सोना पड़ता है, लेकिन मैं फिर भी ठीक हूं. गांव जाने पर पता चलता है कि जो दिल्ली-मुंबई गईं, उनमें कई बरसों से घर लौट कर नहीं आईं."

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डोमेस्टिक वर्कर एक्ट पर अमल जरूरी

घरेलू कामगार अधिकतर पिछड़े इलाकों और कमजोर समुदायों से आते हैं. जिनमें अधिकांश अशिक्षित या फिर कम पढ़े-लिखे, अकुशल व असंगठित होते हैं. इस कारण वे श्रम बाजार को नहीं समझ पाते हैं. इसलिए इन्हें कम वेतन, अधिक काम के घंटे, हिंसा-दुर्व्यवहार यहां तक कि यौन उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है. छुट्टी या इलाज की सुविधा की बात तो ये सोच भी नहीं पाते हैं.

दरअसल, घरेलू कामगारों को किसी श्रम कानून के दायरे में शामिल नहीं किया गया है. बिहार-झारखंड जैसे राज्य में इनके लिए घरेलू वर्कर एक्ट के तहत न्यूनतम वेतन तय किया गया है, साथ ही कई अन्य प्रावधान भी किये गये हैं. सिस्टम की कमी के कारण इसका बार-बार उल्लंघन ही किया जाता है. अर्थशास्त्र के प्रोफेसर विपिन कुमार कहते हैं, ‘‘पूंजीवादी व्यवस्था और जातियों- उपजातियों में बंटा हमारा समाज समानता की इजाजत आसानी से नहीं देता है. घरेलू कामगार जिस श्रेणी से आते हैं, उन्हें अधिकारों के हस्तांतरण में वक्त लगेगा.''

समाजशास्त्र विषय में शोध कर रहीं कंचन रॉय कहतीं हैं, ‘‘यह नहीं कहा जा सकता कि केवल कानून से किसी घर या कार्यस्थल पर इनके प्रति व्यवहार में बदलाव आ जाएगा, समाज को अपना नजरिया बदलना होगा.'' इनके सेफ माइग्रेशन के लिए एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट को हर जगह सक्रिय रहना होगा. रही बात, इन्हें दी जानी वाली सुविधाओं की तो मौजूदा कानून का ही अनुपालन कड़ाई से सुनिश्चित किया जाए, तो एक हद तक इनकी स्थिति में सुधार आना तय है."