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चीन पर निर्भरता घटाने में कितना गंभीर है जर्मनी

३ नवम्बर २०२२

ओलाफ शॉल्त्स जर्मनी का चांसलर बनने के बाद पहली बार चीन जा रहे हैं. उनकी इस यात्रा पर बारीकी से नजर रखी जा रही है ताकि यह पता लगाया जा सके कि जर्मनी चीन पर अपनी निर्भरता घटाने के मामले में कितना गंभीर है.

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Deutschland | G20 Gipfel in Hamburg 2017 | Olaf Scholz empfängt Xi Jinping
तस्वीर: Carsten Rehder/dpa/picture alliance

एशिया का उभरता सुपरपावर और साम्यवादी चीन यूरोपीय देशों के लिए कुछ मामलों में चिंता का कारण बन रहा है. यूरोप में यह मांग तेज हो रही है कि अब चीन पर निर्भरता घटाई जानी चाहिए. रूस के यूक्रेन पर हमले का बाद इसकी जरूरत और ज्यादा महसूस हुई है. जी7 समूह के नेताओं में ओलाफ शॉल्त्स पहले हैं जो कोराना महामारी के बाद चीन जा रहे हैं. चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के तीसरे कार्यकाल  पर कम्युनिस्ट पार्टी की मुहर लगने के बाद चांसलर शॉल्त्स की उनसे पहली मुलाकात होगी.

जर्मनी की चीन पर निर्भरता

एशिया और यूरोप की इन दो बड़ी अर्थवयवस्थाओं के बीच गहरे कारोबारी संबंध हैं. बीते दो दशकों में जर्मन कारों और मशीनों की चीन में बढ़ती मांग इसे और बढ़ा रही है. 2016 में चीन जर्मनी का सबसे बड़ा कारोबारी साझीदार बन गया था. फिलहाल दोनों देशों के बीच सालाना कारोबार 245 अरब यूरो से ज्यादा का है. हाल ही में एलएफओ थिंक टैंक के कराये सर्वे ने बताया है कि जर्मनी की करीब आधी औद्योगिक फर्म चीन से आयात पर काफी ज्यादा निर्भर हैं.

हालांकि शॉल्त्स का दौरा ऐसे वक्त में हो रहा है जब पश्चिमी देशों, खासकार जर्मनी और उसके बड़े सुरक्षा सहयोगी अमेरिका में चीन की कारोबारी नीतियों, मानवाधिकार और क्षेत्रीय महत्वाकांक्षाओं को लेकर चिंता गहरी हो रही है. इस वक्त जर्मन की भीतर भी चीन पर बढ़ती निर्भरता को लेकर चिंता बढ़ गई है.

चीन पर अपनी निर्भरता घटाने के प्रति कितना गंभीर है जर्मनी
ओलाफ शॉल्त्स एक दिन की यात्रा पर चीन जा रहे हैंतस्वीर: Yue Yuewei/Xinhua/IMAGO

जर्मनी की चिंताएं

रूस पर ऊर्जा के लिए अत्यधिक निर्भरता को देखने के बाद चीन के लिए भी सवाल पूछे जा रहे हैं. चीन के बारे में पूछने पर जर्मन विदेश मंत्री अनालेना बेयरबॉक ने जर्मन टीवी चैनल एआरडी से कहा, "यह बेहद जरूरी है कि हम ऐसे देश पर दोबारा कभी निर्भर ना हों जो हमारे मूल्यों को साझा नहीं करता."

एक दिन की यात्रा में शॉल्त्स चीनी प्रधानमंत्री ली केकियांग और राष्ट्रपति शी जिनपिंग दोनों से मुलाकात करेंगे. जर्मन सरकार के एक प्रवक्ता ने जानकारी दी है कि शॉल्त्स चीन पर अपने बाजार खोलने, मानवाधिकार की चिंताओं को दूर करने के लिए दबाव बनाने के साथ ही "तानाशाही" प्रवृत्तियों पर चर्चा करेंगे.

 जर्मन चांसलर ओलाफ शॉल्त्स ने कहा है कि चीन की यात्रा के दौरान वह "विवादित मुद्दों" की अनदेखी नहीं करेंगे. जर्मन अखबार फ्रांकफुर्टर अल्गेमाइने त्साइटुंग में चांसलर ने एक आलेख में लिखा है, "हम सहयोग चाहते हैं, जबकि यह दोनों के हितों में हो. हम विवादों की अनदेखी नहीं करेंगे." शाल्त्स ने "मुश्किल विषयों" की एक सूची बनाई है जिसे वो चीन के सामने उठायेंगे. इनमें नागरिक स्वतंत्रतार,  शिनजियांग के अल्पसंख्यकों के अधिकार के साथ मुक्त और उचित विश्व व्यापार भी शामिल है. 

चीन पर निर्भरता घटाने पर कितना गंभीर है जर्मनी
चीन की कंपनी के हैंबर्ग पोर्ट में हिस्सेदारी खरीदने पर जर्मनी में काफी हो हल्ला मचातस्वीर: Georg Wendt/dpa/picture alliance

जर्मनी ने चीन के प्रति पूर्व चांसलर अंगेला मैर्केल के जमाने से चले आ रहे रुख में बदलाव की शुरुआत पहले ही कर दी है. बीते दो दशकों में पहली बार जर्मनी ने अपने जंगी जहाज को विवादित दक्षिण चीन सागर में भेजा है. चांसलर शॉल्त्स की सरकार पहली बार चीन रणनीति का खाका तैयार कर रही है. इसके लिए गठबंधन में चीन के प्रति सख्त रुख बनाने पर हुई सहमति को आधार बनाया गया है. इसमें खासतौर से ताइवान, हांगकांग औरशिनजियांग में मानवाधिकारों के उल्लंघन जैसे मुद्दों को शामिल किया गया है. जर्मन चांसलर ने एशिया के अपने पहले दौरे पर जापान गये जबकि उनके पूर्ववर्ती चीन जाते रहे हैं, इसे भी नीतियों में बदलाव का संकेत माना गया है.

कारोबारी रवैया

हालांकि इन सबके बाद भी सत्ताधारी गठबंधन के कुछ सदस्यों को लगता है कि शॉल्त्स ने चीन से दूरी बढ़ाने के शुरुआती संकेत तो दिये लेकिन मैर्केल का जो चीन के प्रति कारोबारी रवैया था उससे ज्यादा दूर वह नहीं जायेंगे. इस यात्रा में शॉल्त्स के साथ एक कारोबारी प्रतिनिधिमंडल भी है इनमें फोल्क्सवागन, बीएएसएफ, सीमेंस, डॉयचे बैंक, बीएमडब्ल्यू, मर्क और बायोन्टेक जैसी कंपनियों को मुख्य कार्यकारी अधिकारी शामिल हैं.

एक सरकारी अधिकारी ने यह भी जानकारी दी कि किसी कंपनी के साथ कोई करार की योजना नहीं बनी है. हालांकि म्यूनिख के वर्ल्ड उइगुर कांग्रेस के अध्यक्ष डोल्कुन इसा का कहना है, "अपने साथ कारोबारी प्रतिनिधिमंडल को ले जाने का फैसला दिखाता है कि उनके लिए मुनाफा मानवाधिकार से बड़ा है." इसा की दलील है कि शॉल्त्स शिनिजियांग में हो रहे जनसंहार की अनदेखी कर रहे हैं. चीन ऐसी किसी दुर्व्यवहार या दमन से इनकार करता है.

चीन पर निर्भरता घटाने में कितना गंभीर है जर्मनी
कहा जा रहा है कि फ्रेंच राष्ट्रपति ने शॉल्त्स से साथ में चीन चलने को कहा थातस्वीर: Thibault Camus/AP Photo/picture alliance

शॉल्त्स का चीन के प्रति रुख

हाल ही में जर्मन चांसलर ने हैम्बर्ग पोर्ट के एक टर्मिनल में चीनी कंपनी कॉस्को के निवेश पर भी मुहर लगा दी, जबकि सत्ताधारी गठबंधन में शामिल उनके सहयोगी इसके विरोध में थे. गठबंधन में शामिल जूनियर पार्टनर ग्रीन पार्टी और एफडीपी चीन के प्रति लंबे समय से सख्त रवैया दिखा रहे हैं.

निवेश को मंजूरी मिलने के बाद जर्मनी में काफी हो हल्ला हुआ. एफडीपी के महासचिव बिजान दिजिर सराइ ने तो इस फैसले के साथ ही शॉल्त्स के इस वक्त चीन जाने की भी आलोचना की है मगर शॉल्त्स का कहना है कि एक ही बार में चीन के जर्मनी में हर निवेश को रोका नहीं जा सकता.

फ्रांस और जर्मनी के सूत्रों से जानकारी मिली है कि फ्रेंच राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों ने शॉल्त्स को सलाह दी थी कि वो साथ में बीजिंग चलें जिससे कि चीन को यूरोपीय संघ की एकता का संदेश दिया जा सके. इसके साथ ही चीन की उन कोशिशों को भी इससे झटका लगेगा जिसमें वह एक देश के खिलाफ दूसरे देश का इस्तेमाल करने की कोशिश करता है. हालांकि सूत्रों का कहना है कि जर्मन चांसलर ने माक्रों का यह प्रस्ताव ठुकरा दिया. वैसेफ्रांस के साथ भी जर्मनी के रिश्तों में दूरिया बढ़ने की बातें कही जा रही हैं. 

एनआर/ओएसजे (रॉयटर्स)

दोस्ती से प्रतिद्वंद्विता की ओर बढ़ते दिख रहे चीन और जर्मनी