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22 साल में 10वीं बार सूखे का संकट झेल रहा है झारखंड

मनीष कुमार
७ नवम्बर २०२२

अलग राज्य बनने से अब तक झारखंड करीब दस बार सूखे की मार झेल चुका है. इन 22 वर्षों में सूखे से निपटने और जल प्रबंधन की दिशा में ना तो कोई कारगर कदम उठाया गया और ना ही सिंचाई की पर्याप्त व्यवस्था हो सकी.

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सूखा झेलता झारखंड
22 साल में 10 बार सूखा देख चुका है झारखंड और कई इलाके बाढ़ से भी जूझते हैं (फाइल)तस्वीर: Ankita Mukhopadhyay/DW

राज्य में जब-जब सूखा पड़ता है, हाय-तौबा मचती है, राहत की घोषणा होती है, लंबी-चौड़ी कार्ययोजना बनती है और फिर कुछ दिन बाद सब लोग भूल जाते हैं. राज्य में खेती की ज्यादातर जमीन अब भी बारिश के पानी पर ही सिंचाई के लिए निर्भर है.

इस साल पूर्वी सिंहभूम व सिमडेगा जिले को छोड़ कर राज्य के 24 जिलों में 22 के 226 प्रखंडों को सूखाग्रस्त घोषित किया गया. अक्टूबर के आखिरी हफ्ते में राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकार की बैठक में कृषि विभाग की तरफ से जमीनी आकलन के बाद तैयार की गई रिपोर्ट के आधार पर इन्हें सूखाग्रस्त माना गया है.

राज्य सरकार तत्काल राहत के तौर पर प्रत्येक किसान परिवार को 3,500 रुपये देगी. किसानों को दी जाने वाली राहत पर करीब 1200 करोड़ की राशि खर्च होने का अनुमान है.  30 लाख से अधिक किसानों को इसका लाभ मिलेगा. जिन जिलों में 15 अगस्त तक 33 फीसद से कम क्षेत्र में धान की बुआई या रोपनी हुई, उसे सूखाग्रस्त घोषित किया गया.

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बारिश पर अत्यधिक निर्भरता

प्रदेश के कृषि मंत्री बादल ने मानसून सत्र के दौरान विधानसभा में एलान किया था कि 15 अगस्त तक बारिश की स्थिति देखने के बाद सरकार सूखे पर फैसला करेगी. जबकि, बारिश की स्थिति को देखते हुए विभिन्न जिलों को सूखाग्रस्त घोषित करने की मांग कई जिलों से उठने लगी थी. जुलाई के महीने तक 58 प्रतिशत कम बारिश हुई थी और बमुश्किल धान की दस प्रतिशत रोपनी हो सकी थी.

मौसम और अव्यवस्था की मार झेलता झारखंड
झारखंड के बड़े इलाके में गरीबी और बदहाली का बोलबाला हैतस्वीर: Ankita Mukhopadhyay/DW

झारखंड के लगभग 32,500 गांवों में रहने वाली राज्य की 80 प्रतिशत आबादी आजीविका के लिए खेती या इससे जुड़ी गतिविधियों पर आश्रित है. इस राज्य में कृषि अर्थव्यवस्था का आधार धान की खेती है जो बारिश पर निर्भर है. सिंचाई का मुख्य स्त्रोत कुआं, तालाब और नहरें हैं.

पलामू जिले के पाटन के राजहरा के अमरेश कहते हैं, ‘‘फसल के नुकसान के बाद सरकार राहत भर देती है, पूरे नुकसान की भरपाई तो नहीं होती. वैकल्पिक व्यवस्था नहीं है, हम सिंचाई के लिए मानसून पर निर्भर हैं."

रांची के चान्हो प्रखंड के रोशन टोप्पो कहते हैं, ‘‘किसान अब यही सोचता है कि किसी तरह कोई रोजगार मिल जाए, ताकि परिवार वालों का पेट भर सकें. खुद मेरे पास ही और कुछ दिनों के लिए ही अनाज बचा है. फिर मुझे भी फावड़ा उठाना ही होगा. खेती के चक्कर में रहे तो महाजनों के जाल में फंसना तय है.''

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जून-जुलाई में बहुत कम बारिश

छायावृष्टि (शैडो रेन) वाले राज्य झारखंड में धान की बुआई अगस्त महीने के 15 तारीख तक होती है. यह अंतिम समय सीमा है. वैसे इसके लिए मुफीद समय 31 जुलाई ही है. इसके बाद की जाने वाली खेती में उत्पादकता प्रभावित होती है. कृषि विभाग की रिपोर्ट के अनुसार राज्य में इस साल 31 जुलाई तक 18 लाख हेक्टेयर जमीन पर धान की बुआई का लक्ष्य तय किया गया था, जिसके मुकाबले करीब पौने तीन लाख हेक्टेयर जमीन पर ही बुआई संभव हो सकी.

मौसम की मार जेलता झारखंड
प्राकृति संसाधनों से भरपूर होने के बाद भी मुश्किलों में है झारखंडतस्वीर: Altaf Qadri/AP Photo/picture alliance

अगस्त माह में इस आंकड़े में कुछ इजाफा जरूर हुआ. किंतु यह भी लक्ष्य का करीब 30 प्रतिशत ही था. जानकार बताते हैं कि बीते दस सालों में पहली बार ऐसा हुआ है कि जून-जुलाई में किसी भी दिन 24 घंटे के दौरान 65 मिलीमीटर से अधिक बारिश नहीं हुई. इन दोनों महीनों में सामान्य 319 मिमी बारिश की तुलना में महज 79.5 मिमी ही वर्षा हुई. सूखाग्रस्त घोषित 226 में 154 प्रखंडों की स्थिति ज्यादा खतरनाक बताई गई है, जबकि 72 प्रखंडों में आंशिक सूखे की स्थिति है.

यहां 33 प्रतिशत तक फसलों का नुकसान हुआ है. वहीं, गंभीर नुकसान वाली श्रेणी में उन प्रखंडों को शामिल किया गया है, जहां 50 प्रतिशत से अधिक की क्षति का अनुमान है. संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन टू कॉम्बैट डेजर्टिफिकेशन (यूएनसीसीडी) के लिए पार्टियों के 15 वें सम्मेलन (सीओपी 15) में जारी रिपोर्ट के अनुसार सदी की शुरुआत के बाद से दुनियाभर में सूखे की आवृत्ति और अवधि खतरनाक रूप से बढ़ गई है. प्राकृतिक आपदाओं में 15 प्रतिशत योगदान सूखे का है.

क्या है सूखे से मुकाबले की रणनीति

बीते दिनों नीति आयोग की बैठक में झारखंड ने सूखे की स्थिति से निपटने और सिंचाई सुविधा विकसित करने के लिए विशेष पैकेज की मांग की. कहा गया कि प्रदेश में महज 20 प्रतिशत खेती योग्य जमीन पर ही सिंचाई की सुविधा है.

राज्य में करीब पांच लाख हेक्टेयर जमीन पर सिर्फ बारिश के पानी से ही खेती की जाती है. इस जमीन पर सिंचाई की सुविधा उपलब्ध करा कर फसलों के विविधिकरण के तहत बाद के दिनों में भी अन्न उपजाना संभव हो सकता है.

कृषि विशेषज्ञ भुवनेश्वर प्रसाद का कहना है, ‘‘अगर धान को बचाए रखना संभव नहीं हो पा रहा है तो झारखंड को दलहन-तिलहन जैसे फसलों की खेती की दिशा में आगे बढ़ना चाहिए. राज्य में इसकी अपार संभावना है.'' कृषि विभाग पहले ही शॉर्ट टर्म कल्टीवेशन प्लान के तहत नए सिरे से किसानों को कम समय में होने वाले प्रभेदों का बिचड़ा उपलब्ध कराने का निर्देश दे चुका है.

इसके अलावा सरकार फसल राहत योजना के तहत भी किसानों को सीधे उनके खाते में तय राशि का भुगतान कर रही है. सरकार ने मनरेगा के तहत कच्चे कार्यों पर लगी रोक हटाने का भी निर्देश दिया है, ताकि ग्रामीण इलाकों में कच्ची सड़कों, तालाबों और जलकुंडों का निर्माण और मरम्मत कर अधिक से अधिक रोजगार सृजित किया जा सके.

पूरे राज्य में एक लाख कुओं व एक लाख तालाबों के निर्माण का निर्णय भी किया गया है. इसके अलावा युद्धस्तर पर चापाकलों (हैंडपंप) तथा चेक डैम को दुरुस्त करने को कहा गया है. 2021-22 का आर्थिक सर्वेक्षण भी बताता है कि बेहतर सिंचाई सुविधाओं और जल व भूमि प्रबंधन का विवेकपूर्ण इस्तेमाल राज्य में कृषि उत्पादकता में सुधार कर सकता है.