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जातीय गणना: न्यायपालिका से टकराव के मूड में है बिहार सरकार

मनीष कुमार, पटना
६ मई २०२३

बिहार में जातीय जनगणना पर भले ही हाईकोर्ट ने रोक लगा दी है लेकिन ऐसा लग रहा है कि राज्य सरकार इस पर पीछे हटने के मूड में नहीं है. राज्य की गठबंधन सरकार हर हाल में जातीय जनगणना कराने पर आमादा है.

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हाईकोर्ट ने जाति आधारित जनगणना पर रोक लगा दी है
नीतीश कुमार जाति आधारित जनगणना को छोड़ने के मूड में नहीं हैंतस्वीर: Manuel Elías/ASSOCIATED PRESS/picture alliance

बिहार में चल रही जाति आधारित जनगणना पर पटना हाईकोर्ट ने रोक लगा दी है. अदालत ने अंतरिम आदेश में कहा है कि राज्य सरकार को जाति आधारित सर्वेक्षण कराने का कोई अधिकार नहीं है. इसकी आड़ में सेंसस कराया जा रहा है, जिसका अधिकार केवल संसद को है. ऐसा करना संघ की विधायी शक्ति पर अतिक्रमण होगा. कोर्ट ने सुनवाई की अगली तारीख तीन जुलाई तय की है.

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नीतीश सरकार लंबे अरसे से जातिगत जनगणना के पक्ष में रही है. बिहार विधानमंडल के दोनों सदनों में 18 फरवरी, 2019 और फिर 27 फरवरी, 2020 को जातीय जनगणना कराए जाने का प्रस्ताव पारित किया जा चुका है. वहीं, केंद्र सरकार इसके खिलाफ रही है. सर्वोच्च न्यायालय में एक हलफनामा दायर कर केंद्र सरकार ने स्पष्ट कर दिया था कि जातिगत जनगणना नहीं कराई जाएगी, क्योंकि ओबीसी जातियों की गिनती करना लंबा और कठिन कार्य है. तब नीतीश सरकार ने अपने दम पर जाति आधारित गणना कराने का निर्णय लिया और फिर जनवरी, 2023 से इसे शुरू किया गया.

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जाहिर है, अदालत के इस निर्देश से जातीय गणना को लेकर उत्साहित नीतीश सरकार को खासा झटका लगा है. इससे पहले जब इस गणना का विरोध किया जा रहा था तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने नाराजगी जताते हुए कहा था कि यह कवायद गुनाह नहीं है, इससे सभी को फायदा होगा. समझ में नहीं आ रहा, इसका विरोध क्यों किया जा रहा है. यह हमारे द्वारा की गई एक अच्छी पहल है. लोगों की आर्थिक स्थिति की पहचान के बाद उनको बहुत लाभ होगा, चाहे वह किसी जाति के हों. इससे किसी का नुकसान नहीं होगा.

पटना हाईकोर्ट के रोक के फैसले से पहले बिहार सरकार के जाति आधारित जनगणना के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई से इनकार करते हुए याचिकाकर्ता को पटना हाईकोर्ट जाने के लिए कहा था. 

हाईकोर्ट ने जाति आधारित जनगणना पर रोक लगा दी है
जेडीयू और आरजेडी गठबंधन सरकार जाति आधारित जनगणना चाहती हैतस्वीर: Santosh Kumar/Hindustan Times/IMAGO

"जाति हर प्रणाली का गियर बदलने वाली एक अदृश्य भुजा"

पटना उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के.विनोद चंद्रन और न्यायाधीश मधुरेश प्रसाद की खंडपीठ ने जनहित याचिकाओं पर सुनवाई के बाद अपने 31 पन्नों के आदेश में यशिका दत्त की एक पुस्तक की पंक्तियों का जिक्र किया, जिसमें जाति को हर प्रणाली का गियर बदलने वाली एक अदृश्य भुजा बताया गया है. इसके अलावा अदालत ने कहा कि राज्य सरकार की अधिसूचना से लगता है कि सरकार नेताओं के साथ लोगों का डाटा शेयर करना चाहती है जो चिंता का विषय है और निश्चित तौर पर इससे निजता के अधिकार पर बड़ा सवाल उठता है.

हाई कोर्ट का यह भी कहना था कि जब कानून बनाने की शक्ति विधायिका को है और एकमत से सत्ता पक्ष व विपक्ष सर्वे कराने को राजी थे तो कानून क्यों नहीं बनाया गया. अगली तारीख पर अदालत इस पर विचार करेगी कि सर्वे पर जो राशि खर्च की जा रही है, उसे कानून की स्वीकृति है या नहीं. जो सवाल पूछे जा रहे हैं, उससे कहीं निजता का उल्लंघन तो नहीं है और क्या कानूनी प्रावधान के अनुसार सर्वे कराया जा रहा है.

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सरकार गंभीर, पहले सुनवाई के लिए याचिका दायर

इस प्रकरण पर गंभीर बिहार सरकार ने हाईकोर्ट में एक याचिका दायर कर इस मामले में जल्द सुनवाई करने की अपील की है. सरकार इस गणना को लेकर कितनी गंभीर है, इस बात का पता आरजेडी (राष्ट्रीय जनता दल) प्रमुख लालू प्रसाद के ट्वीट से चलता है. इसमें उन्होंने साफ कहा है, ‘‘जातीय गणना बहुसंख्यक जनता की मांग है और यह होकर रहेगी.''

वहीं, जेडीयू के प्रदेश अध्यक्ष उमेश कुशवाहा का कहना है, ‘‘बिहार सरकार हर कानूनी लड़ाई लड़ने को तैयार है. यह अंतिम फैसला नहीं है.'' जानकार बताते हैं कि आरजेडी प्रमुख और सरकार के तेवर से साफ है कि अगर हाईकोर्ट से अगर पक्ष में फैसला नहीं आया तो राज्य सरकार इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाएगी.

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सबके अपने-अपने दांव

हाईकोर्ट के निर्देश पर बिहार में सभी दलों ने अलग-अलग तरीके से प्रतिक्रिया व्यक्त की है. चूंकि, कोई भी पार्टी प्रत्यक्ष तौर पर इस कवायद की विरोधी नहीं है, इसलिए विपक्षी दलों ने इसका ठीकरा सरकार के सिर फोड़ा है तो सत्ता पक्ष ने हर हाल में जातीय गणना कराए जाने की बात कही है. बीजेपी के वरिष्ठ नेता सुशील कुमार मोदी ने कहा कि इस मुद्दे पर राज्य सरकार कोर्ट में सही ढंग से अपना पक्ष नहीं रख पाई.  उनका यह भी कहना है कि विरोधी पक्ष से जब मुकुल रोहतगी जैसे वरिष्ठ अधिवक्ता बहस के लिए आये थे तो जवाब देने के लिए वैसे ही वकील को क्यों नहीं रखा गया.  

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दूसरी तरफ आरजेडी के वरिष्ठ नेता मनोज झा ने हाईकोर्ट के अंतरिम रोक के फैसले को दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए कहा है कि यह मांग एकांगी नहीं है, हाईकोर्ट को इसे देखना चाहिए था. सरकार की सहयोगी भाकपा-माले ने भी फैसले को दुर्भाग्यपूर्ण बताया है. पार्टी के राज्य सचिव कुणाल ने कहा, ‘‘1931 के बाद से देश में जाति गणना हुई ही नहीं है. जबकि दलित-पिछड़ी जातियों के लिए चल रही सरकारी योजनाओं व आरक्षण को तर्कसंगत बनाने तथा इनके सामाजिक स्तर में सुधार के लिए यह बेहद जरूरी थी.''

राजनीतिक समीक्षक डॉ. वीके सिंह कहते हैं, ‘‘कोई भी पार्टी इस जाति आधारित गणना के विरोध में नहीं है, सब इसके हिमायती हैं. क्षेत्रीय पार्टियां तो इन मुद्दों को जीवित रखकर ही राजनीति कर सकती हैं, यह उनकी मजबूरी है. इसके लिए वे किसी भी हद तक जा सकती हैं. जबकि, बीजेपी को डर है कि उनका हिन्दूवादी अभियान इससे कहीं बिखर ना जाये. इसलिए ही वह इसे जातिवादी उन्माद फैलाने की नीतीश सरकार की कोशिश करार देती है.''